''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका. 36 वाँ अंक |
प्रिय पाठकों,
हम अपने लक्ष्य को केन्द्र बनाते हुए आकर्षक साज-सज्जा के साथ, सुवाच्य, पाठ्य सामग्रियों से भरपूर संयुक्तांक जून-जुलाई-2012 (36वाँ अंक) आपको समर्पित हैं। आपके द्वारा हमें समय समय पर सदैव प्रेम भरा सहयोग अनेकानेक विधाओं से मिलता रहा है। मैं आभारी हूँ उन देश के सुविख्यात साहित्यकार, पत्रकार एवं स्वतंत्र विचारक और हिन्दू संस्कृति का ताना - बाना बुनते हुए अपनी लेखनी से सरल शब्दों में लेख सामग्रीयाँ आप सभी को इस पत्रिका के माध्यम से देते रहे हैं। साथ ही आपने उन्हे सराहा भी।
अभी वर्तमान में श्रावण मास चल रहा है जिसमें भगवान शिव की आराधना अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि कहा गया है - भाभी मेट सकहिं त्रिपुरारी अर्थात् भाग्य को बनाने वाले ब्रह्मा में वह शक्ति नहीं है जो भाग्य को बदल दें। किन्तु भगवान शिव ही एक ऐसे देवाधिदेव महादेव हैं जो भाग्य को भी पलट सकते हैं।
अब बात करते हैं वैदिक परम्पराओं की-'वेद: शिव: शिवो वेद:'' अर्थात् वेद ही शिव हैं और शिव ही वेद अत: शिव वेदस्वरूप हैं। वेद ही नारायण का साक्षात् रूप हैं- ' वेदो नारायण: साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम'' इस तथ्य के अनुसार शिव-नारायण में कोई भेद नहीं हैं, क्योंकि वेदको परमात्मप्रभु का नि:श्वास माना गया है। वेद अपौरेषय व अनादि शास्वत सनातन है। शिव और रूद्र ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रूद्र इसलिए कहा गया है कि- यह रूद्र भगवान शिव रूत् यानि दु:ख को विनष्ट कर देते हैं- 'रूतम् दु:खम्, द्रावयति- नाशयतीति रूद्र:'' । अतएव अभी वर्तमान में सावन माहऔर आगामी आने वाला भादो में अधिकमास दोनों माह में रुद्रीपाठ का विशेष महत्त्व को ध्यान में रखते हुए रूद्रीपाठ के विषय में रुचिप्रद विशेष सामग्री के अलावा देश में चल रहे सम-सामयिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक लेख अलग-अलग सन्दर्भों पर आलेख 'ज्योतिष का सूर्य' अपने परम्परा का निर्वाह करते हुए इस अंक में शामिल कर विगत तीन वर्षों से निरन्तर गतिशीलता पर कायम है, साथ ही आपके सराहना भरे पत्र हजारों की तादाद में हमारे लेखकों के साथ हमें भी गौरवान्वित होने को विवश कर देता है। आशा करता हूं कि इसी प्रकार आपका प्यार हमें मिलता रहेगा।
आज हम तीन वर्ष पूर्ण कर चौथे वर्ष की ओर चल पड़े हैं, जो अत्यन्त सौभाग्य और सुयोग का विषय है। इस अवसर पर मैं सम्पादक मण्डल के सभी सम्मानित सदस्यों को सहृदय धन्यवाद देते हुए, संरक्षक श्री विजय बघेल (संसदीय सचिव (गृह, जेल एवं सहकारिता), श्री के.के. झा एवं सलाहकार सम्पादक द्वय श्री बबन प्रसाद मिश्रजी, श्री संजय द्विवेदी और सलाहकार रविन्द्र सिंह ठाकुर , श्री नागेन्द्र प्रसाद मिश्र , श्री प्रमोद चौबे सहित उन तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुपसे सहयोग करने वाले समस्त सहयोगियों का आभारी हूँ।
उपरोक्त इस खुशनुमा बेला में मैं काफी भावविभोर हो मात्र यही कहना चाहूंगा कि-
हम अपने लक्ष्य को केन्द्र बनाते हुए आकर्षक साज-सज्जा के साथ, सुवाच्य, पाठ्य सामग्रियों से भरपूर संयुक्तांक जून-जुलाई-2012 (36वाँ अंक) आपको समर्पित हैं। आपके द्वारा हमें समय समय पर सदैव प्रेम भरा सहयोग अनेकानेक विधाओं से मिलता रहा है। मैं आभारी हूँ उन देश के सुविख्यात साहित्यकार, पत्रकार एवं स्वतंत्र विचारक और हिन्दू संस्कृति का ताना - बाना बुनते हुए अपनी लेखनी से सरल शब्दों में लेख सामग्रीयाँ आप सभी को इस पत्रिका के माध्यम से देते रहे हैं। साथ ही आपने उन्हे सराहा भी।
अभी वर्तमान में श्रावण मास चल रहा है जिसमें भगवान शिव की आराधना अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि कहा गया है - भाभी मेट सकहिं त्रिपुरारी अर्थात् भाग्य को बनाने वाले ब्रह्मा में वह शक्ति नहीं है जो भाग्य को बदल दें। किन्तु भगवान शिव ही एक ऐसे देवाधिदेव महादेव हैं जो भाग्य को भी पलट सकते हैं।
अब बात करते हैं वैदिक परम्पराओं की-'वेद: शिव: शिवो वेद:'' अर्थात् वेद ही शिव हैं और शिव ही वेद अत: शिव वेदस्वरूप हैं। वेद ही नारायण का साक्षात् रूप हैं- ' वेदो नारायण: साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम'' इस तथ्य के अनुसार शिव-नारायण में कोई भेद नहीं हैं, क्योंकि वेदको परमात्मप्रभु का नि:श्वास माना गया है। वेद अपौरेषय व अनादि शास्वत सनातन है। शिव और रूद्र ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रूद्र इसलिए कहा गया है कि- यह रूद्र भगवान शिव रूत् यानि दु:ख को विनष्ट कर देते हैं- 'रूतम् दु:खम्, द्रावयति- नाशयतीति रूद्र:'' । अतएव अभी वर्तमान में सावन माहऔर आगामी आने वाला भादो में अधिकमास दोनों माह में रुद्रीपाठ का विशेष महत्त्व को ध्यान में रखते हुए रूद्रीपाठ के विषय में रुचिप्रद विशेष सामग्री के अलावा देश में चल रहे सम-सामयिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक लेख अलग-अलग सन्दर्भों पर आलेख 'ज्योतिष का सूर्य' अपने परम्परा का निर्वाह करते हुए इस अंक में शामिल कर विगत तीन वर्षों से निरन्तर गतिशीलता पर कायम है, साथ ही आपके सराहना भरे पत्र हजारों की तादाद में हमारे लेखकों के साथ हमें भी गौरवान्वित होने को विवश कर देता है। आशा करता हूं कि इसी प्रकार आपका प्यार हमें मिलता रहेगा।
आज हम तीन वर्ष पूर्ण कर चौथे वर्ष की ओर चल पड़े हैं, जो अत्यन्त सौभाग्य और सुयोग का विषय है। इस अवसर पर मैं सम्पादक मण्डल के सभी सम्मानित सदस्यों को सहृदय धन्यवाद देते हुए, संरक्षक श्री विजय बघेल (संसदीय सचिव (गृह, जेल एवं सहकारिता), श्री के.के. झा एवं सलाहकार सम्पादक द्वय श्री बबन प्रसाद मिश्रजी, श्री संजय द्विवेदी और सलाहकार रविन्द्र सिंह ठाकुर , श्री नागेन्द्र प्रसाद मिश्र , श्री प्रमोद चौबे सहित उन तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुपसे सहयोग करने वाले समस्त सहयोगियों का आभारी हूँ।
उपरोक्त इस खुशनुमा बेला में मैं काफी भावविभोर हो मात्र यही कहना चाहूंगा कि-
यूं ही बरसता रहे सावन की बरसात,होता रहे 'ज्योतिष का सूर्य' का अभिषेक।
शक्ति मिले हनुमन्त से, उदित सूर्य का हो प्रभात,
अज्ञान तिमिर को चीरता, बीते बरस अनेक।।
दें हमें आशीष, हो गगनाधीन, आप करें आत्मसात,
ज्योतिषामयनम् चक्षु:, की दिव्य ज्योति हो अनेक।
आज हम हैं आभारी आपका, जो मिला आपका साथ,
हम बनें उनके अनुगामी, जो हैं सनातन ब्रह्म एक।।
ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। इति शुभम् भवतु कल्याणम्।।
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