ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

सूर्य पुत्र शनि काले क्यों हैं? 23 पर्यायवाची नामों का जप करें और शनि की कृपा प्राप्त करें।

ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

सूर्य पुत्र शनि काले क्यों हैं? 23 पर्यायवाची नामों का जप करें और शनि की कृपा प्राप्त करें।

ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)
सूर्यपुत्र श्री शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के वंश  मे हुआ था इस लिए इनका गोत्र कश्यप है । यह  क्षत्रीय वर्ण और भगवान सूर्य तथा माता छाया के मध्य ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सोराश्र्ट्र के शिंगनापुर में जन्म हुआ है ॥ (इनके जन्म स्थान को लेकर मतैक्य है) इनके भाई मृत्यु देव यमराज हैं और बहन पवित्र नदी यमुना और भद्रा है ॥ गिद्ध ओर भैंसा दोनों ही प्रिय वाहन है ॥ इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से हुआ । सभी देवी-देवताओं में सूर्य का रूप परम तेजस्वी है। सूर्य की पूजा करने से भक्तों का रूप भी उनके जैसा ही तेजस्वी और गौर वर्ण हो जाता है। सूर्य देव सभी को तेज प्रदान करते हैं परंतु उनके पुत्र शनि का रूप श्याम वर्ण बताया गया है। सूर्य पुत्र होने के बाद भी शनि का रंग काला है, इस संबंध में शास्त्रों में कथा बताई गई है।
इस कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ। सूर्य का रूप परम तेजस्वी था, जिसे देख पाना सामान्य आंखों के लिए संभव नहीं था। इसी वजह से संज्ञा उनके तेज का सामना नहीं कर पाती थी। कुछ समय बाद देवी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ। यह तीन संतान मनु, यम और यमुना के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी संज्ञा के लिए सूर्य देव का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में लगा दिया और खुद वहां से चली गई। कुछ समय पश्चात संज्ञा की छाया के गर्भ से ही शनि देव का जन्म हुआ। क्योंकि छाया का स्वरूप काला ही होता है इसी वजह से शनि भी श्याम वर्ण हुए।
ये चंद्रमा परस्पर निकट होने के कारण अलग - अलग दृश्यमान नहीं है , पर ये स्वतंत्र रूप से मेरे चारो ओर घूमते है , मेरे चारो ओर वलय मैं चमकते चंद्रमा ऐसे लगते है जेसे की मैंने अपने कंठ मैं सफ़ेद मोतियों का हार पहन रखा है ॥
भगवान शनिदेव को लगभग कई नामों से पुकारा जाता है किन्तु मैं आप लोगों प्रमुख यत्किञ्चित नामों को आपके सामने रखने जा रहा हुँ। जो इन नामों का प्रतिदिन अथवा हर शनिवार को जप अथवा पाठ करता है उनको भगवान शनिदेव की अतिशय कृपा मिलती है, और वह सुखी, समृद्धि से युक्त हो जाता है। 1.शनेश्चराय , 2. सोराय , 3.कृष्णाय ,4. यम, 5.पिप्प्लाश्रय, 6. कोण्स्थ, 7. सोरि,8. शश्नेश्चर,9. कृष्ण रोदरांतक, 10. मंद ,11. पिंगल कंटक ,12. यमागज ,13. रविपुत्र ,14. सूर्यपुत्र, 15. दायातयज, 16. अकेसुवन, 17. असित सोकि, 18. निलिकाय , 19. नीलांजन , 20. निलकाय ,21. कुशांग , 22. कपिलाक्ष ,23. मंदगामी नाम से पुकारा जाता है

 कुछ रोचक जानकारियाँ भगवान शनिदेव की जुबानीः

शनिउवाचः मेरा आधिपत्य मकर तथा कुंभ राशि पे है । पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद मेरे नक्षत्र है , मैं पेर से विकलांग हूँ ॥ हाथ मैं मध्यमा अंगुली को शनि यानि की मेरी अंगुली कहा जाता है ॥ मेरा शुभ प्रिय रत्न नीलम ओर काले अश्व की नाल की अंगूठी इसी मैं पहनी जाती है ॥ मध्यमा अंगुली करे ठीक नीचे के स्थान को शनि पर्वत सामुद्रिक शास्त्र मैं बताया गया है , हथेली मैं इस पर्वत का उभरापन असाधाण प्रवृतियों का सूचक है ॥ वत्स ये भी ध्यान रखना की मध्यमा अंगुली को ही जो की मेरी है सामुद्रिक शास्त्र मैं भाग्य सूचक बताया गया है ॥

किसी की भी हथेली मैं भाग्य रेखा मेरे इसी पर्वत पे आके समाप्त होती है ॥ मेरा पर्वत अगर जातक की हथेली मैं उन्न्त ओर पुष्ट हो तो जातक सत्यवादी , दूसरों के मन की बाते जानने वाला , परोपकारी ,न्यायाधीश , जादूगर ओर तंत्र मैं रुचि रखने वाला, संपति या जमीन जायदाद का काम करने वाला , धातुओं , खनिज , लवण , रत्न आदि से संबन्धित कार्य करने वाला होता है ॥ अगर मेरा शनि पर्वत आपकी हथेली पे दबा हुआ है तो यह अपना विपरीत प्रभाव डालता है ।
शनि पर्वत का किसी जातक की हथेली पे ना होना असफलता का सूचक है
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)

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