ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

...जब भगवान कृष्ण भी अपने ही परिजनों के सामने असहाय हुए..।

...जब भगवान कृष्ण भी अपने ही परिजनों के सामने असहाय हुए..।


मित्रों सुप्रभात, कहा जाता है कि - विश्व के सभी शक्तिशाली महान योद्धाओं पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अपनों से ही हार का सामना करना पड़ता है। भगवान कृष्ण भी अपनों से हार की इस पीड़ा को देवर्ष नारद से बताकर हम सभी को संदेश देना चाहते हैं कि- ऐसा मेरे भी साथ हुआ है अतः आप सभी मेरे भक्त इस परिस्थिति से घहड़ाएं नहीं बल्कि अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, आत्महत्या करने के बजाय, समाधान कर धर्म का पालन करें।

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा नारद कृष्ण संवाद ने कृष्ण के सम्बन्ध में कई बातें हमें स्पष्ट संकेत देती हैं कि कृष्ण ने भी एक सहज संघ मुखिया के रूप में ही समस्याओं से जूझते हुए समय व्यतीत किया होगा । मित्रों, श्रीकृष्ण मंझले भाई थे। उनके बड़े भाई का नाम बलराम था जो अपनी शक्ति में ही मस्त रहते थे। उनसे छोटे का नाम 'गद' था। वे अत्यंत सुकुमार होने के कारण श्रम से दूर भागते थे। श्रीकृष्ण के बेटे प्रद्युम्न अपने दैहिक सौंदर्य से मदासक्त थे। कृष्ण अपने राज्य का आधा धन ही लेते थे, शेष यादववंशी उसका उपभोग करते थे। श्रीकृष्ण के जीवन में भी ऐसे क्षण आये जब उन्होंने अपने जीवन का असंतोष नारद के सम्मुख कह सुनाया और पूछा कि यादववंशी लोगों के परस्पर द्वेष तथा अलगाव के विषय में उन्हें क्या करना चाहिए। नारद ने उन्हें सहनशीलता का उपदेश देकर एकता बनाये रखने को कहा।
महाभारत शांति पर्व अध्याय-82:
''अरणीमग्निकामो वा मन्थाति हृदयं मम। वाचा दुरूक्तं देवर्षे तन्मे दहति नित्यदा ॥6॥''
हे देवर्षि ! जैसे पुरुष अग्नि की इच्छा से अरणी काष्ठ मथता है; वैसे ही उन जाति-लोगों के कहे हुए कठोर वचन से मेरा हृदय सदा मथता तथा जलता हुआ रहता है ॥6॥

''बलं संकर्षणे नित्यं सौकुमार्य पुनर्गदे। रूपेण मत्त: प्रद्युम्न: सोऽसहायोऽस्मि नारद ॥7॥''
हे नारद ! बड़े भाई बलराम सदा बल से, गद सुकुमारता से और प्रद्युम्न रूप से मतवाले हुए है; इससे इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हुआ हूँ। ॥7॥
जरूरत है, इस विषम परिस्थिति में अधर्म रुपी आत्महत्या, हिंसा के अलावा समाधान की आवश्यकता है। -ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई
(आपको कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें)

कोई टिप्पणी नहीं: