वगैर सात फेरों के लाई गयीं उज्ज्वला...तिवारी के
पद प्रतिष्ठा को जलाकर भस्म कर सकती है
कहा जाता है कि- मनुष्य को जीवन में बहुत संभल कर चलना चाहिए.। प्रतिष्ठित व्यक्तित्व को संभलने की जरुरत होती है। स्वामी विवेकानन्द जी के साथ भी कई बार ऐसी घटनाएँ हुईं होंगी इस लिए उन्होंने...अधिक न बोलते हुए अथवा किसी वर्ग विशेष का नाम न लेते हुए उन्होंने मात्र यही कहा कि- ''पर्वत के शिखरों से गिरा व्क्ति एक बार उठने की कोशिश कर सकता है परन्तु चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति समाज के नजरों से गिरा हुआ कदापि नहीं उठ सकता।'' उनकी बात आज प्रासंगिक है शायद इस बात का खयाल ''श्री एन.डी.तिवारी'' जी को रहता तो यह नौबत नहीं आती।
इस पूरे प्रसंग में एक दूसरा भी पहलु है, वह है...--शास्त्रों में स्त्री को सावित्री, पूज्या और यहां तक की - ''यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता''...कह कर और महत्त्व दिया गया। किन्तु साथ ही यह भी कहा गया कि स्त्री अग्नि से भी अधिक जलाने की क्षमता वाली ''अग्निशिखा'' भी कहा गया, अर्थात् यदि आग और तिनके को एक साथ रखोगे तो निश्चित ही आग की क्षमता उस तिनके अथवा काष्ठ से अधिक होती है अतः प्रभुत्त्वशाली आग उस काष्ठ रुपी तिवारी के पद-प्रतिष्ठा को जलाकर भस्म कर देगी। यदि उसी ''अग्निशिखा'' (उज्ज्वला शर्मा) रुपी स्त्री को अग्नि के सात फेरे लगाकर घर में देवी स्वरुप लाया जाय और उससे 'रोहित' जैसा पुत्र पैदा होगा तो इस प्रकार के कोर्ट के असंख्य फेरे नहीं लगाने पड़ेंगे। मित्रों किसी भी प्रकार की फिसलन न हो इसका हमेशा खयाल रखें नहीं तो आग में ममता नहीं होती पर सात फेरे लेकर बनी माँ के अन्दर ममता अवश्य होती है। अतएव पुनः ऐसी घटना न हो उसके लिए कोर्ट का फैसला काबिले तारीफ है जो उभयपक्षी (स्त्री-पुरुष) वर्ग के मर्यादा हेतु संबल का काम करेगा। पं.विनोद चौबे
सत्यमेव जयते नानृतं
सत्येन पन्था विततो देवयानः |
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ||६||
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