देखना धर्मक्षेत्र में कुरुक्षेत्र सेंध न लगा दे...।
''स्थित्यदनाभ्यां च ''।।1।3।7।.
स्थित्यदनाभ्याम् - एक ही शरीर में साक्षी रुप से स्थित और दूसरे के द्वारा सुख- दुःखप्रद विषयका उपभोग बताया गया है, इसलिए, च- भी(जीवात्मा और परमात्मा का भेद सिद्ध होता है)। इसी आत्मा और परमात्मा का व्याख्या मुण्डकोपनिषद तथा श्वेताश्वरोपनिषद(4।6) में कहा गया है कि-
'' द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
तयोरन्यः पिप्पलं स्वादुवत्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति।। ''
अर्थात एक साथ रहते हुए भी परस्पर सख्यभाव रखने वाले दो पक्षी (जीवात्मा और परमात्मा) एक ही शरीर रुपी वृक्ष का आश्रय लेकर रहते हैं। उन दोनों में से एक (जीवात्मा) तो उस वृक्षके करमफलस्वरुप सुख-दुःखों का स्वाद ले लेकर (आसक्तिपूर्वक) उपभोग करता है, किन्तु दूसरा (परमात्मा) न खाता हुआ, न उपभोग करता हुआ केवल दर्शक के रुप में देखता रहता है। मित्रों इसी जीवात्मा और परमात्मा के पार्स्परिक द्वन्द्व युद्ध को महाभारत में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र का होना बताया गया जैसा कि के श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है ...धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। अर्थात मनुष्य के के साथ दोनों ही क्षेत्र सदा रहते हैं परन्तु कर्मफलगत धर्मक्षेत्र की प्रबलता नाश का कारण बनता है और धर्मक्षेत्र की प्रबलता मनुष्य को मोक्ष प्रदान कर 84 लाख योनि के भ्रमण (जन्म-मरण) से मुक्त करता है। जरुरत है ..जीवन में धर्मक्षेत्र को प्रबल बनाने की।
- पं.विनोद चौबे
आज हरियाली अमावश्या है तो आईए मित्रों अब भगवान शिव के विराट रुप का दर्शन करने का प्रयत्न करते हैं
भगवान शिव के विराट रुप का दर्शन
जगत पिता के नाम से हम भगवान शिव को पुकारते हैं। भगवान शिव को सर्वव्यापी व लोग कल्याण का प्रतीक माना जाता है जो पूर्ण ब्रह्म है। धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ऐसा मानते हैं कि शिव शब्द की उत्पत्ति ''वंश कांतौ ''धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- सबको चाहने वाला और जिसे सभी चाहते है। शिव शब्द का ध्यान मात्र ही सबको अखंड, आनंद, परम मंगल, परम कल्याण देता है।
शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है। शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है। भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर, घुवमेश्वर हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है। कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। यूनानी, रोमन, चीनी, जापानी संस्कृतियों में भी शिव की पूजा व शिवलिंगों के प्रमाण मिले हैं। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा। भगवान शिव की महिमा प्रत्येक भारतीय से जूङा है। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती है। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक मानव के लिए जरूरी है।
शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है। शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है। भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर, घुवमेश्वर हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है। कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। यूनानी, रोमन, चीनी, जापानी संस्कृतियों में भी शिव की पूजा व शिवलिंगों के प्रमाण मिले हैं। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा। भगवान शिव की महिमा प्रत्येक भारतीय से जूङा है। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती है। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक मानव के लिए जरूरी है।
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