चौबेजी कहिन:- 'मृत्यु से भयभीत ना हों'
'Must Include in Sunday Study' 'मनन' करने वाले को 'मनुष्य' कहा जाता है, मननशीलता के अभाव में 'मनुष्य' आकृति में 'पशु' है, प्रस्तुत है कठोपनिषद के 'नचिकेता-यमराज' का रोचक प्रसंग!
महर्षि वाजश्रवा के पौत्र एवं उद्दालक का पुत्र 'नचिकेता' अत्यन्त बुद्धिमान एवं सात्त्विक था।
तैत्तिरीय उपनिषद् में 'मृत्यु' को 'अतिथि' के रुप में प्रतिष्ठित किया है !
अतिथिदेवो भव (तै० उप० १.११.२)
जहां नचिकेता को यमराज तीन वरदान देता है। कठोपनिषद् के उपाख्यान तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण के उपाख्यान में पर्याप्त समानता है। तैत्तिरीय ब्राह्मण के उपाख्यान में यमराज मृत्यु पर विजय के लिए कुछ यज्ञादि का उपाय कहता है, किन्तु कठोपनिषद् कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर ब्रह्मज्ञान की महत्ता को प्रतिष्ठित करता है। उपनिषदों में कर्मकाण्ड को ज्ञान की अपेक्षा अत्यन्त निकृष्ट कहा गया है।
यद्यपि यम-नचिकेता-संवाद ऋग्वेद तथा तै० ब्राह्मण में भी एक कल्पित उपाख्यान के रुप में ही है, कठोपनिषद् के ऋषि ने इसे एक आलंकारिक शैली में प्रस्तुत करके इस काव्यात्मक सौंदर्य का रोचक पुट दे दिया है। कठोपनिषद् जैसे श्रेष्ठ ज्ञान-ग्रन्थ का समारंभ रोचक, हृदयग्राही एवं सुन्दर होना उसके अनुरुप् ही है। मृत्यु के यथार्थ को समझाने के लिए साक्षात् मृत्यु के देवता यमराज को यमाचार्य के रुप में प्रस्तुत करना कठोपनिषद् के प्रणेता का अनुपम नाटकीय कौशल है। यह कल्पनाशक्ति के प्रयाग का भव्य स्वरुप् है।
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