चौबेजी कहिन:- निराकार से साकार की ओर चलें और 'पब' की पाश्चात्य संस्कृति से बच्चों को 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति की ओर लाने के लिए पौराणिक प्रसंगों से बच्चों को जोड़ें..
“ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि।।
“जो शुभ्र तेजो से युक्त तीक्ष्ण,वेधक रूप वाले, श्रेष्ठबल-सम्पन्न और शत्रु का संहार करने वाले है। हे अग्निदेव! आप उन मरुतो के साथ यहाँ पधारें।”
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि- ऐसे असंख्य तथ्यों ने ही मूर्ति पूजा विरोधी नरेंद्र को 'स्वामी विवेकानंद' बनाया जिन्होंने भारत को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया! हां एक कथित बाबा की भेष में व्यापारी-कलियुगीन-अत्त्पुरुष जिस तरह से वेदांग 'ज्योतिष' एवं की 'पौराणिक' संदर्भों पर गाहे-बगाहे निरर्थक टिप्पणी करता है वह दरअसल वेद का सुविधानुसारी व्याख्या करता है उसके बहकावे में ना आएं खैर, आईए विषय पर वापस चलते हैं, तो वेदों में यह कहा गया है कि- वेदों के गर्भ से ही पुराणों का प्राकट्य हुआ-
“ऋच: सामानि च्छंदांसि पुराणं यजुषा सह। उच्छिष्टाञ्जज्ञिरे दिवि देवा दिविश्रित:।।” (अथ. 11|9)
इस श्लोक में वैदिक मुनियों नें कहा कि पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था।
“इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपर्बंहयेत्” (बृहदारण्यकोपनिषद्)
अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि आप लोग अपने बच्चों को पौराणिक कथाओं प्रसंगों से भरसक जोड़ने काम करें ताकि वह बच्चा युवा होने बाद भी 'प्रात: प्रणाम' की भारतीय संस्कृति का अवगाहक बने बजाय 'पब' के पाश्चात्य संस्कृति की! वेदों को जानने का प्रथम सीढ़ी है पौराणिक कथाएं, जरा सोचिएगा! यह लेख अच्छा लगे तो शेयर जरुर करें, और हे, दुर्गम राक्षसों कॉपी पेस्ट मत करना नहीं तो तुम्हारा बौद्धिक सर्वनाश करने 'दुर्गा' जी का प्राकट्य हो जायेगा, क्योंकि मार्कण्डेय पुराण का 'दुर्गम' भी कॉपी पेस्टीहा अराजक तत्व था, कभी इस विषय पर भी चर्चा करुंगा, अस्तु!
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई-दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं- 9827198828
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