ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 22 जून 2018

चौबे जी कहिन:- 'भीमसेनी (निर्जला) एकादशी' व्रत इन्द्रियों के विग्रह का महापर्व है। दिनभर अर्गर-बर्गर, इज्जा-पिज़्ज़ा और तैलिय खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले 'वृकोदरों' महिने में तीन दिन व्रत जरुर करो..🙏

अब आईए विषय प्रवेश करें😊 भारत वेदभूमि है, देवभूमि है, योगभूमि है, यज्ञभूमि है, त्यागभूमि है, और आध्यात्मिकता से पूर्ण पूरी दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाने वाला वैज्ञानिक-ऋषि परम्पराओं की पवित्र भूमि भारत है, हे मां भारती प्रणाम 🙏 एकादशी का अर्थ है ग्यारहवीं अर्थात् - ग्यारह दिन यानी संख्या हुई 11जिसमें 5 कर्मेंद्रियां + 5 ज्ञानेन्द्रियां + 1मन =11अर्थात् कर्म, ज्ञान तथा मन को अपने अधिकार में करने वाला दिन है एकादशी। वर्ष में कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष दोनों मिलकर 24 एकादशियां होती है और पुरुषोत्तम मास होने से कुल 26 एकादशी व्रत किया जाता है, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी से इस व्रत का आरंभ किया जाता है, इन एकादशियों में आज यानी 'भीम‍सेनी एकादशी' व्रत है जिसे निर्जला व्रत किया जाता है, महाभारतीय पांच पाण्डवों में 'भीम' ने इस व्रत को किया था, इसलिए 'भीमसेनी' एकादशी व्रत नाम पड़ा । भीम को 'वृक' कहा गया है अर्थात् भोजन अधिक करने वाला या यूं कहें कि वगैर भोजन किसे वह एक दिन भी नहीं रह पाते थे, बावजूद ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को वे निर्जला एकादशी व्रत किया करते थे, अर्थात् आज के इस आधुनिक परिवेश में 'भीम' के बदलते स्वरूप हम सभी तो हैं जो तरह-तरह के पकवान खाने वाले 'वृकोदर' रुपी जीव हैं, जो दिन भर कुछ ना कुछ अर्गर-बर्गर, इज्जा-पिज़्ज़ा आदि आदि तैलिय खाद्य पदार्थ खाते ही रहते हैं, इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने हर माह में पड़ने वाले तीन दिन एकादशी (2 दिन) एवं पुर्णिमा (1 दिन) इन तीन दिन हर व्यक्ति को इन्द्रिय-निग्रह करने के लिए 'व्रत' रखने का विधान बताया। ताकि चित्त-शुद्धि और उदर विकार से मुक्ति मिल सके! 'व्रत’ शब्द ‘वृ’ धातुसे बना है । भिन्न-भिन्न अर्थ हैं संकल्प, इच्छा, आज्ञापालन, उपासना, प्रतिज्ञा इत्यादि अब आईए आज 'चौबेजी कहिन' में इस विषय को विस्तार से समझने का प्रयास करें, ऐतरेय ब्राह्मणग्रंथमें 'यज्ञात् भवति पर्जन्यः’ ऐसा वचन है अर्थात ‘व्रत’ एक यज्ञ है, इसलिए इससे पर्जन्य, विश्वशांति जैसे लाभ होते हैं । यज्ञ विधि का फल है स्वर्गप्राप्ति, जो मृत्युपश्चात प्राप्त होता है । किन्तु व्रतोंके संदर्भमें ऐसा नहीं है । व्रतोंके फल व्रतकर्ता को इसी जन्म में ही प्राप्त होते हैं । क्योंकि वैदिक यज्ञ कुछ ही लोग कर पाते है; परंतु व्रत कोई भी कर सकता है, इस दृष्टिसे यज्ञकी तुलनामें यह व्रत श्रेष्ठ है ।

न किंचिद्विद्यते राजन्सर्वकामप्रदं नृणाम्।।
एकाशनं दशम्यां च नंदायां निर्जलं व्रतम् ।।१२।।
पारणं चैव भद्रायां कृत्वा विष्णुसमा नराः।।
श्रद्धावान्यस्तु कुरुते कामदाया व्रतं शुभम् ।।१३।।
वांछितं लभते सोऽपि इहलोके परत्र च।।
पवित्रा पावनी ह्येषा महापातकनाशिनी ।।१४।। उपरोक्त प्रसंग में एकादशी व्रत की महनियता का वर्णन किया गया है। वास्तव में जितने भी व्रत उपवास आदि पुराणों में बताए गए हैं उन सबका अभिप्राय व्यक्तियों को अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करना ही रहा है ।

इस प्रकार व्रत रखते हुए भीमसेनी एकादशी का हर सनातन धर्मावलंबियों को इस व्रत का पूण्लाभ अवश्य लेना चाहिए, पौराणिक साहित्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी कहीं ना कहीं मानव जाति को लाभान्वित करने वाले हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति को हर माह में कम से कम तीन दिन व्रत रखना ही चाहिए, इससे सत्वगुणी व्यक्तित्व प्रादुर्भाव होता है, और सच्चरित्रता का विकास भी। अगले ''चौबेजी कहिन" में 'उपवास' शब्द की व्याख्यात्मक आलेख प्रस्तुत करुंगा।। सनातन धर्म की जय।। भारत माता की जय।। वंदेमातरम् 🚩।। आपका दिन शुभ हो 🙏🌷


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