न किंचिद्विद्यते राजन्सर्वकामप्रदं नृणाम्।।
एकाशनं दशम्यां च नंदायां निर्जलं व्रतम् ।।१२।।
पारणं चैव भद्रायां कृत्वा विष्णुसमा नराः।।
श्रद्धावान्यस्तु कुरुते कामदाया व्रतं शुभम् ।।१३।।
वांछितं लभते सोऽपि इहलोके परत्र च।।
पवित्रा पावनी ह्येषा महापातकनाशिनी ।।१४।। उपरोक्त प्रसंग में एकादशी व्रत की महनियता का वर्णन किया गया है। वास्तव में जितने भी व्रत उपवास आदि पुराणों में बताए गए हैं उन सबका अभिप्राय व्यक्तियों को अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करके आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करना ही रहा है ।
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