ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 11 जुलाई 2017

"शारदा देश'' यानी ''कश्मीर'' को  ''आतंक की आग में ढकेल दिया....इन सत्ता के भूखे भेड़ियों ने''


आजादी के बाद से ही देश के ''गद्दारों'' ने जिसे ''शारदा देश'' कहा जाता था उस ''कश्मीर'' से कश्मीरी पण्डितों को खदेड़वा दिया और सेक्युलरिज्म का माला जपते -जपते तुष्टिकरण से सत्ता हथियाने के फेर में  कश्मीर को  ''आतंक की आग में ढकेल दिया....इन सत्ता के भूखे भेड़ियों ने''

अमरनाथ के यात्रियों पर हुये हमले में मारे गये शिव-भक्तों के परिजनों को टेलीविज़न पर रोते बिलखते देख हमारी धर्मपत्नी श्रीमती रम्भा चौबे ने नम आंखों और रूंधे कण्ठ से मुझसे प्रश्न किया कि - कश्मीर में केवल आतंकी ही रहते हैं क्या..? और इसके पूर्व क्या कश्मीर का इतिहास आतंक ही रहा है क्या.? सुबह जब टेलीविज़न खोलो बस एक ही समाचार आता है 'जम्मू एण्ड कश्मीर' में यहां आतंकी हमला हुआ...., वहां आतंकी हमला .हुआ... और अब तो हद हो गई अमरनाथ बाबा बर्फानी के भक्तों पर भी हमले होने लगे हैं....?     

 मित्रों, यह प्रश्न एक सामान्य भारतीय नागरीक का है, यानी 'जम्मू एण्ड कश्मीर' के असल इतिहास को कथित सेक्युलरिज्म ने ऐसा रौंदा और  तुष्टिकरण की घिनौनी राजनीति ने ऐसा नफ़रत का जहर घोला की कश्मीर आतंक का गढ बन चुका है...  

 तब मुझे आचार्य अभिनव गुप्त जी का स्मरण आया और मैंने....अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रम्भा चौबे जी को विस्तृत व समसामयिक तथा प्रागतैहासिक 'शारदा देश'' यानी 'कश्मीर' की यात्रा कराने चल पड़ा...   कश्मीर जिसे ज्ञान-भूमि यानी  ''शारदा देश'' के नाम से जाना जाता था जो 'कन्नौज प्रांत' से 'कश्मीर' तक अमन चैन व सनातन व संस्कृति की उर्वरा भूमि रही आज उस उर्वरा भूमि को " भारतीय स्वतंत्रता के लिये आजाद, भगत, राजगुरू, सुखदेव तथा रामप्रसाद बिस्मिल सहित असंख्य नवयुवकों ने अपने प्राण की आहूति दी उनका स्मरण तो भारत के इन गद्दारों ने करना तक मुनासीब नहीं समझा और गाहे-बेगाहे इनका स्मरण किया भी तो नाम मात्र का.. क्योंकि स्वतंत्र भारत के गलियों से लेकर उच्च संस्थानों तक अधिकतर संस्थानों का  नामकरण अपने 'नाम' किया...खैर यह तो उनके 'भग्न- मानसिकता' का परिचायक है  इन 'गद्दारों' ने भारतीय इतिहास के साथ ऐसा खिलवाड़ किया की 'अकबर' को महान बताया और 'महाराणा प्रताप' के शौर्य को म्यूट कर दिया गया, 

वैसे ही अचानक ना जाने क्या हुआ की 'आजाद हिन्द फौज के संस्थापक श्री सुबाष चन्द्र बोस जी' का विमान क्रेस होने की अपुष्ट खबर आई ..जो आज भी 'राज़' बना हुआ है.??

.वैसे ही 'जम्मू एण्ड कश्मीर' का मुद्दा ऐसा विवादित किया गया की वहां आजादी के बाद अब तक असंख्य भारतीय सैनिक शहीद हुये और आज भी वह स्थिति बनी हुई है...और जब कोई 'रक्तबीज राक्षस लश्कर का आतंकी मारा जाता है तो वही देश के गद्दार नेता धर्म की राजनीति, तुष्टिकरण की राजनीति पर आमादा हो जाते हैं और मीडिया भी प्रायोजित ढंग से बड़ी कव्हरेज दिखाती है ...अरे  सत्ता के भूखे गद्दारों ने उसे 'कश्मीर ' का पवित्र ज्ञान-भूमि को...  रक्त-रंजित इतिहास के रुप में उलट-पुलट कर रखने का कुत्सित प्रयास किया..

 नफ़रत भरी कथित सेक्यूलरिज्म के पैरोकारों को घड़ियाली आंसू बहाने की बजाय .. अमरनाथ यात्रा के श्रद्धालुओं पर लश्कर आतंकी 'अबु स्माईल ' नामक 'रक्तबीज' राक्षस ने कायराना हमला किया इससे ज्यादा ध्यान उसको छुपाकर रखने वाले गद्दारों की भूमिका अहम है उनका पक्ष लेना बंद करें और  जिसकी वजह से 'अबु स्माईल' वहां तक पहुंचा ! पहले उनका सख्ती से विरोध कर उन्हे करें...!

  क्योंकि...  भारतीय सत्ता पर बने रहने की हर कोशीश करने वाले देश के गद्दारों ने कभी '' कन्नौज से कश्मीर के पवित्र ज्ञान-भूमि 'शारदा देश' के  सनातनी-इतिहास के पन्नों को पलट कर देखने की ख़ीदमत नहीं की ... क्योंकि उनके सत्ता-प्राप्ति में रोड़ा बन जाता...और भारत की वैश्विक मंच पर कश्मीर जिसे आध्यात्मिक पवित्र भूमि 'शारदा देश' कहा जाता था उसे ''आतंकी साये के प्रदेश के रुप में बदनाम किया जाना लक्ष्य था! तभी तो वहां से ज्ञान-तपस्वी, मां शारदा के वरद पुत्र कश्मीरी पण्डितो को खदेड़ा गया और आज ''मोदी सरकार के कुशल नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं''

खैर, आईये कश्मीर का आध्यात्मिक पवित्र ज्ञान-भूमि के तपस्वी आचार्य अभिनव गुप्त जी चर्चा करते हैं.(ध्यानपूर्वक श्रीमती रम्भा चौबे जी सुनती हुईं गंभीर मुद्रा में) 

 ..आप श्री अभिनव गुप्त जी को वगैर समझे कश्मीर को नहीं समझ पायेंगे.......तो आईये 950 ईसा पूर्व कश्मीर के पवित्र ज्ञान-भूमि पर जन्मे महान दार्शनिक शेषावतारी श्री अभिनव गुप्त जी के जीवन चरित्र के माध्यम से आपको 'कश्मीर' की यात्रा कराता हुं.

मुझे आदरणीय श्री जवाहर लाल कौल जी के एक लेख 'श्रद्धादीप समर्पण'  लेख ने बहुत प्रभावित किया उसके कुछ अंश को उन्हीं के शब्दों में रखना चाहुंगा... भारत की ज्ञान-परंपरा में आचार्य अभिनवगुप्त एवं कश्मीर की स्थिति को एक ‘संगम-तीर्थ’ के रुपक से बताया जा सकता है। जैसे कश्मीर (शारदा देश) संपूर्ण भारत का ‘सर्वज्ञ पीठ’ है, वैसे ही आचार्य अभिनव गुप्त संपूर्ण भारतवर्ष की सभी ज्ञान-विधाओं एवं साधनों की परंपराओं के सर्वोपरि समादृत आचार्य हैं। कश्मीर केवल शैवदर्शन की ही नहीं, अपितु बौद्ध, मीमांसक, नैयायिक, सिद्ध, तांत्रिक, सूफी आदि परंपराओं का भी संगम रहा है। आचार्य अभिनवगुप्त भी अद्वैत आगम एवं प्रत्यभिज्ञा –दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य तो हैं ही, साथ ही उनमें एक से अधिक ज्ञान-विधाओं का भी समाहार है। भारतीय ज्ञान दर्शन में यदि कहीं कोई ग्रंथि है, कोई पूर्व पक्ष और सिद्धांत पक्ष का निष्कर्ष विहीन वाद चला आ रहा है और यदि किसी ऐसे विषय पर आचार्य अभिनवगुप्त ने अपना मत प्रस्तुत किया हो तो वह ‘वाद’ स्वीकार करने योग्य निर्णय को प्राप्त कर लेता है। उदाहरण के लिए साहित्य में उनकी भरतमुनिकृत रस-सूत्र की व्याख्या देखी जा सकती है जिसे ‘अभिव्यक्तिवाद’ के नाम से जाना जाता है। भारतीय ज्ञान एवं साधना की अनेक धाराएं अभिनवगुप्तपादाचार्य के विराट् व्यक्तित्व में आ मिलती है और एक सशक्त धारा के रुप में आगे चल पड़ती है।

       आचार्य अभिनवगुप्त के पूर्वज अत्रिगुप्त (8वीं शताब्दी) कन्नौज प्रांत के निवासी थे। यह समय राजा यशोवर्मन का था। अभिनवगुप्त कई शास्त्रों के विद्वान थे और शैवशासन पर उनका विशेष अधिकार था। कश्मीर नरेश ललितादित्य ने 740 ई. जब कान्यकुब्ज प्रदेश को जीतकर काश्मीर के अंतर्गत मिला लिया तो उन्होंने अत्रिगुप्त से कश्मीर में चलकर निवास की प्रार्थना की। वितस्ता (झेलम) के तट पर भगवान शितांशुमौलि (शिव) के मंदिर के सम्मुख एक विशाल भवन अत्रिगुप्त के लिये निर्मित कराया गया। इसी यशस्वी कुल में अभिनवगुप्त का जन्म लगभग 200 वर्ष बाद (950 ई.) हुआ। उनके पिता का नाम नरसिंहगुप्त तथा माता का नाम विमला था।

     भगवान् पतञ्जलि की तरह आचार्य अभिनवगुप्त भी शेषावतार कहे जाते हैं। शेषनाग ज्ञान-संस्कृति के रक्षक हैं। अभिनवगुप्त के टीकाकार आचार्य जयरथ ने उन्हें ‘योगिनीभू’ कहा है। इस रुप में तो वे स्वयं ही शिव के अवतार के रुप में प्रतिष्ठित हैं। आचार्य अभिनवगुप्त के ज्ञान की प्रामाणिकता इस संदर्भ में है कि उन्होंने अपने काल के मूर्धन्य आचार्यों-गुरूओं से ज्ञान की कई विधाओं में शिक्षा-दीक्षा ली थी। उनके पितृवर श्री नरसिंहगुप्त उनके व्याकरण के गुरू थे। इसी प्रकार लक्ष्मणगुप्त प्रत्यभिज्ञाशास्त्र के तथा शंभुनाथ (जालंधर पीठ) उनके कौल-संप्रदाय –साधना के गुरू थे। उन्होंने अपने ग्रंथों में अपने नौ गुरूओं का सादर उल्लेख किया है। भारतवर्ष के किसी एक आचार्य में विविध ज्ञान विधाओं का समाहार मिलना दुर्लभ है। यही स्थिति शारदा क्षेत्र काश्मीर की भी है। इस अकेले क्षेत्र से जितने आचार्य हुए हैं उतने देश के किसी अन्य क्षेत्र से नहीं हुए| जैसी गौरवशाली आचार्य अभिनवगुप्त की गुरु परम्परा रही है वैसी ही उनकी शिष्य परंपरा भी है| उनके प्रमुख शिष्यों में क्षेमराज , क्षेमेन्द्र एवं मधुराजयोगी हैं| यही परंपरा सुभटदत्त (12वीं शताब्ती) जयरथ, शोभाकर-गुप्त महेश्वरानन्द (12वीं शताब्दी), भास्कर कंठ (18वीं शताब्दी) प्रभृति आचार्यों से होती हुई स्वामी लक्ष्मण जू तक आती है |

      दुर्भाग्यवश यह विशद एवं अमूल्य ज्ञान राशि इतिहास के घटनाक्रमों में धीरे-धीरे हाशिये पर चली गई | यह केवल कश्मीर के घटनाक्रमों के कारण नहीं हुआ | चौदहवीं शताब्दी के अद्वैत वेदान्त के आचार्य सायण -माधव (माधवाचार्य) ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'सर्वदर्शन सङ्ग्रह' में सोलह दार्शनिक परम्पराओं का विनिवेचन शांकर-वेदांत की दृष्टि से किया है| आधुनिक विश्वविद्यालयी पद्धति केवल षड्दर्शन तक ही भारतीय दर्शन का विस्तार मानती है और इन्हे ही आस्तिक दर्शन और नास्तिक दर्शन के द्वन्द्व-युद्ध के रूप में प्रस्तुत करती है|आगमोक्त दार्शनिक परम्पराएँ जिनमें शैव, शाक्त, पंचरात्र आदि हैं, वे कही विस्मृत होते चले गए| आज कश्मीर में कुछ एक कश्मीरी  पंडित परिवारों को छोड़ दें, तो अभिनवगुप्त के नाम से भी लोग अपरिचित हैं| भारत को छोड़ पूरे विश्व में अभिनवगुप्त और काश्मीर दर्शन का अध्यापन आधुनिक काल में होता रहा है लेकिन कश्मीर विश्वविद्यालय में, उनके अपने वास-स्थान में उनकी अपनी उपलब्धियों को संजोनेवाला कोई नहीं है। काश्मीरी आचार्यों के अवदान के बिना भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन अपूर्ण और भ्रामक सिद्ध होगा। ऐसे कश्मीर और उनकी ज्ञान परंपरा के प्रति अज्ञान और उदासीनता कहीं से भी श्रेयस्कर नहीं है।...

 आज कश्मीर को उसकी असल 'कश्मीरी़यत की पूर्व संस्कृति पर छोड़कर वहां से धारा ३७० हटा लिया जाय और कश्मीरी पण्डितों को घर-वापसी करा दिया जाय तो'' तो पुन: कश्मीर 'शारदा देश' हो जायेगा और वह ' आध्यात्मिक पवित्र ज्ञान-भूमि की उन्नत सनातन संस्कृति की कृषि भूमि बन जायेगी'

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ)

दूरभाष क्रमांक -09827198828

(कृपया इस लेख को कोई कॉपी-पेस्ट करते पाये तो आप पर  http://jyotishkasurya.blogspot.in/2017/07/blog-post_11.html?m=1   ' ज्योतिष का सूर्य' वैधानिक कार्यवाही करने को बाध्य होगी)

       

सोमवार, 10 जुलाई 2017

सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्त्व है......

सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्त्व है......

आज दिनांक 10/7/2017 को प्रथम दिवस सोमवार से  सावन माह प्रारंभ हुआ पूरा ब्रह्माण्ड शिवमय हो कर डमरु के ताल पर नटराज नृत्य करता हुआ  'बोल बम' ...'बोल बम' का निनाद चहुंओर  गूंज रहा है.. इस सावन माह की विशीष्टता  कई मायने में बेहद अहम है क्योंकि इस सावन में पांच सोमवार का होना और दूसरा रक्षाबंधन यानी श्रावणी अर्थात् श्रावण पुर्णिमा के दिन खण्ड चन्द्र ग्रहण का होना विशेष दुर्लभ संयोग का विषय है..क्योंकि शैव संप्रदाय के सशक्त मेंबर यानी भक्त 'शशी' यानी चन्द्र को ''विधुरपि विधीयोगात् ग्रस्यते राहुणाअसौ"  राहु ग्रसेगा..यानी 'खण्ड चन्द्र ग्रहण'  हो रहा है अत: यह रोचक पहलु है! आईये अब थोड़ा विस्तृत चर्चा करें....

 पांच सोमवार.. !
१- आज ही है , २- १७ जुलाई २०१७ को, ३- २६ जुलाई २०१७, ४- ३१ जुलाई २०१७ को और अन्तिम यानी ५- वाँ सोमवार ७अगस्त २०१७ श्रावण की पुर्णिमा को हो रहा है...यानी सावन की शुरुआत भी सोमवार से औऱ समापन भी सोमवार को है, जो अपने आप में बेहद फलप्रद है !

रक्षाबंधन में भद्रा का पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं है ..... 
कॉपी पेस्ट में पारंगत कुछ कथित गुगल पण्डितों द्वारा भद्रा को लेकर एक बार फिर भ्रम फैलाया जा रहा है कि ७ अगस्त २०१७ को भद्रा है जिसकी वजह से रक्षाबंधन का मुहूर्त अल्प काल का ही है लेकिन ऐसा उनका " पोंगा पाण्डित्य" है मैं पण्डित विनोद चौबे, भिलाई बहुत ही जिम्मेदारी से कहना का चाहता हुं की "श्रावणी उपाकर्म या सावन पुर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र का होना नितांत आवश्यक है, जैसे हरितालिका व्रत में हस्त नक्षत्र का होना स्वाभाविक है" ऐसे में श्रवण नक्षत्र यानी ७ अगस्त २०१७ को मकरगत चंद्र होंगे जबकि 'मेष मकर वृष कर्कट स्वर्गे' के अनुसार भद्रा का निवास स्वर्ग लोक में रहेगा अर्थात् भद्रा का कोई प्रभाव रक्षाबंधन पर नहीं होगा अत: प्रात: काल से दोपहर १बजकर ५० मिनट तक राखी बांधने का शुभ मुहूर्त रहेगा क्योंकि इसके बाद खण्ड चन्द्र ग्रहण का सूतक लग जायेगा ९घंटे के सूतक के उपरांत रात्रि १० बजकर ५० मिनट से ग्रहण का स्पर्श होगा औऱ रात्रि १२ बजकर ५० मिनट पर ग्रहण का मोक्ष यानी समापन होगा! ग्रहण में या सूतक में किसी भी प्रकार का शुभ कर्म वर्जित है....!

भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है साथ ही ग्रह जनित दोषों और रोगों से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद अनुसार शिव हैं –सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। भगवान शंकर सर्व कल्याणकारी देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।
भगवान शिव को शुक्लयजुर्वेद अत्यन्त प्रिय है कहा भी गया है वेदः शिवः शिवो वेदः। इसी कारण ऋषियों ने शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया है यथा –
यजुर्मयो हृदयं देवो यजुर्भिः शत्रुद्रियैः।
पूजनीयो महारुद्रो सन्ततिश्रेयमिच्छता।।
शुकलयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है ।जाबालोपनिषद में याज्ञवल्क्य ने कहा –शतरुद्रियेणेति अर्थात शतरुद्रिय के सतत पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। परन्तु जो भक्त यजुर्वेदीय विधि-विधान से पूजा करने में असमर्थ हैं या इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान शिव के षडाक्षरी मंत्र– ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होते है। शिव भक्त इस दिन अवश्य ही शिवजी का अभिषेक करते हैं।

क्या है ? रुद्राभिषेक ...??

अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है –  स्नान  करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में  ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा  प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी  जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय  माना गया है।
रुद्राभिषेक क्यों करते हैं?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:  अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।

रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु  के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु  ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान  रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो  हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए।  कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार ––
एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता रपार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए  रुद्राभिषेक करता  है  वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है  अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।

रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा!

पुराणों में रूद्राभिषेक द्रव्य पदार्थों का अलग अलग फल...
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जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।

जल से रुद्राभिषेक करने पर —               वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर —        रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
दही से अभिषेक करने पर —                  पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक  करने पर —     लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए।
 तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर —     मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से —     बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेककरने से   —                   पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा  मनोकामनाएं  पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से —             ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से —                       वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से —      रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से   —-         पाप क्षय हेतू।

इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते हैं।

रक्षाबंधन कब मनायें.?
सर्व प्रथम नित्य किये जाने वाले पूजन अर्चन संपन्न होने के बाद अपने कुल पुरोहित के द्वारा प्रथम रक्षा सूत्र बंधवाना चाहिये तदुपरान्त बहने अपने भाईयों को नीचे दिये गये मंत्र को बोलते हुए...
''येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल: !
तेन त्वामि प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल !!"
इसी मंत्र का उच्चारण करते हुए ७अगस्त २०१७ सोमवार को   निर्विवाद रुप से प्रात:काल से दोपहर १ बजकर ५० मिनट तक शुभ मुहूर्त इसी शुभ समय में राखी बांधना चाहिये ! इस विषय की विस्तृत चर्चा मैंने प्रारंभ में ही कर दी है!
http://jyotishkasurya.blogspot.in/2017/07/blog-post.html
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क-२६, शांति नगर, भिलाई, जिला-दुर्ग ,छत्तीसगढ़
दूरभाष क्रमांक- ९८२७१९८८२८

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

कुरूद रोड कोहका भिलाई स्थित दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर 'सुन्दरकाण्ड' के 'सुन्दर' के शब्द का रहस्योद्घाटन.......

कुरूद रोड कोहका भिलाई स्थित दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर 'सुन्दरकाण्ड' के 'सुन्दर' के शब्द का रहस्योद्घाटन.......

(श्री शिवनारायण प्रजापति एवं श्री नोहर यादव से आध्यात्मिक चर्चा )

*अन्तर्नाद* के सभी साथियों को गुरु पुर्णीमा के पूर्व प्रभात की मंगल कामनाओं सहीत श्री हनुमान जी महाज के 'सीता खोज'' में छुपे कुछ रहस्यों को समझने  का प्रयास करते हैं..

बात २००६ के अप्रैल मांह की है, छत्तीसगढ के भिलाई स्थित कुरूद रोड मे श्री दक्षिणेश्वर यानी दक्षिणमुखी हनुमान जी का सिद्ध मंदिर है, वहां बैठकर कुछ प्रबुद्ध जनों के बीच श्री हनुमद चर्चा चल रही थी..उसी समय श्री शिवनारायण प्रजापति एवं श्री नोहर यादव जी ने प्रश्न किया कि -गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में सात सोपानों के अलग अलग घटना स्थल, मुख्य पात्र, या आध्यात्मिक वैशिश्ट्यपूर्ण कथाप्रसंगों के आधार पर सोपानों के नाम रखे लेकिन.आचार्य जी सुन्दरकाण्ड का नाम 'सुन्दर' क्यों रखे ? कृपया इस रहस्य को विस्तृत समझायें ! 

मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और मैंने उन दोनों हनुमद् भक्तों श्री शिवनारायण प्रजापति एवं श्री नोहर यादव जी को इस गूढ़ रहस्य के बारे में  विस्तृत विषय-वस्तु को आप सभी के समक्ष रख रहा हुं......

भगवान हनुमानजी, माता सीता की खोज में लंका गए थें और लंका ''त्रिकुटाचल'' पर्वत पर बसी हुई थी। "त्रिकुटाचल" पर्वत मतलब 3 पर्वत यानी लंका में तीन पर्वत थें। पहला "सुबैल" पर्वत, जहां कें भूमि में युद्ध हुआ था। दुसरा " नील " पर्वत, जहां पर राक्षसों कें महल बसें हुए थें । और तीसरा पर्वत "सुंदर " पर्वत,जहां अशोक वाटिका स्थित थी। इसी अशोक वाटिका में हनुमानजी की माता सीता से भेंट हुई थी ।सुंदरकाण्ड की यहीं सबसें प्रमुख घटना थी, इसलिए इसका सुंदरकाण्ड नाम सुंदरकाण्ड रखा गया है ।

-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क-26, हाऊस नं. 1299, शांतिनगर, भिलाई, जिला - दुर्ग (छ.ग.)

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चीन के 'भीतरघाती-शौर्य' का वर्णन करने वाले 'जयचंदो' ..तुम लोग ये समझ जाओ हमारे देश की सवा सौ करोड़ जनता 'महाराणाप्रताप' है......

चीन के 'भीतरघाती-शौर्य' का वर्णन करने वाले 'जयचंदो' ..तुम लोग ये समझ जाओ हमारे देश की सवा सौ करोड़ जनता 'महाराणाप्रताप' है......

लानत है हमारे देश की कुछ डरपोक मीडिया जो आये दिन चीन के भीतरघाती शौर्य का प्रदर्शन करने के लिये मानो इन लोगों को बड़ी धनराशि सी जिनपिंग ने  मुहैया कराई हो ! कथित तौर पर अरे चीन परश्त बिकाऊ मीडिया चिन्ता मत करो 1962 मे चीन ने भारत के पीठ में छुरा घोंपने काम किया वो भी इसलिये की उस समय तुम्हीं लोग कर्ण के सारथी साम्ब की भांति चीन के भीतरघाती शौर्य का इतना गुणगान करके ऐसा माहौल बनाया की हमारे देश के तात्कालिन नेतृत्व का मनोबल गिर गया जैसा की कर्ण जैसा महारथी के सारथी साम्ब ने बार बार अर्जुन के शौर्य का गुणगान करके कर्ण जैसे महारथी का मनोबल गिराने का काम किया था....ठीक उसी तरह आज साम्ब की भूमिका में हमारे देश की कुछ चीन परस्त बिकाऊ मीडिया बार बार ड्रैगन का चित्र स्क्रीन पर लगाकर चीन के पास ये है, वो है, फलाना है, ढिमका है..और वहीं चीन की मीडिया बतौर जीनपिंग की प्रवक्ता 1962 वाले हालात कर देने की भारत को धमकी दे रहा है...लेकिन 1962 की हालात कुछ और थी आज के हालात कुछ और है क्योंकि उस समय बात ''चीनी चीनी भाई भाई' की बात करके पीठ में छुरा घोंपा और हमारी मीडिया लगातार ''पीठ'' की चर्चा करती रही लेकिन आज दौर बदला है वक्त ने करवट ले ली है, आज चर्चा ''पीठ की नहीं  56 ईंच की सीना की होती है'' हमारे देश की सेना  और नेतृत्व 1962 में भी सशक्त व सक्षम थी और आज तो और सशक्त व विदेश नीति सफलता के पायदान पर खड़ा होकर दिमक की मान में छुपे ड्रेगन को ललकार रही है..कैलाश मान सरोवर मार्ग को अवरुद्ध करने एवं सिक्किम में कायरों सरीखे एलओसी पर चहलकदमी  और भारतीय होने का स्वांग रचने वाले कुछ चाईना परश्त मीडिया रुपी जयचंदों के माध्यम से अपने ''भीतरघाती - शौर्य '' का प्रदर्शन मत करो...भारत के सवा सौ करोड़ महाराणाप्रताप जैसे यहां के देशभक्त नागरीकों से ही निपट लो जब बचोगे तब ना हमारी सेना से लड़ोगे.अब हम भारतीयों भरसक प्रयास करना होगा की ''चीनी भाई भाई की जगह चीनी सामानों की विदाई विदाई'' 

चीन तुम हमारे संयम का परीक्षा मत लो..आओ जरा भारतीय इतिहास में तुमको ले चलता हुं..जब अफझल खान के आक्रमण के समय छत्रपति शिवाजीमहाराज ने अद्भुत संयम दिखाया था । प्रताप गढ़ के घनेजंगल में उसे घेरने की योजना की । अफझल ने बहुत उकसाने का प्रयत्न किया । उसी प्रकार चीन और पाकिस्तान के उकावे में आकर भारतीय प्रधानमंत्री युद्ध नहीं लड़ने वाले क्योंकि नरेन्द्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में  आधुनिक तकनीकि से लैस भारतीय सैन्य बल  नौजवान  होकर विश्व की सामरिक सम्पन्न व प्रभुत्वशाली देशों की श्रेणी खड़े होकर 'महाशक्ति' बन चुका भारत अब योग के माध्यम से पूरे विश्व में ''विश्व गुरू' बनने का मार्ग अख्तियार कर चुका है, एक टैक्स, एक राष्ट्र की धमक अब विश्व बाजार में भारतीय रुपये की कीमत बढी है...ऐसे में हे ड्रेगन भक्त चीन तुम देवी भक्त भारत को युद्ध के लिये मत उकसाओ !

हे चीन तुम्हे पुन: महाराज शिवाजी की ओर ले चलता हुं.....जब अफझल नें कीकलदेवी तुलजा भवानी का मंदिर भी तोड़ दिया । पर महाराज डिगे नहीं । 'वॉच एण्ड वेट' प्रतीक्षा करते रहे सही समय और अवसर की ! समय आने पर अफझल की बलि माता को देने के बाद सब भग्न मंदिरों का जीर्णोद्धार किया । ये तो अच्छा ही था कि उन दिनों २४ घंटे बकबक करने वालेख़बरिया चैनल भी नहीं थे और घर बैठे रणनीति बखारने हेतु सामाजिक माध्यम भी नहीं थे । आज भी हमें हमारी सेना पर विश्वास रखने की आवश्यकता है ।   पिछले कुछ दिनों से वोटबैंक ने कुछ नेताओं को इस कदर अंधा किये है कि इन लोगों ने जयचंदों की भांति अपनी ही सेना पर ''शब्द बांण''  खूब हमले किये हैं...जो दु:खद तो है ही भारतीय जनमानस आक्रोशित भी है !                                                                                                                 खैर,  जैसे शिवाजीमहाराज ने अपने समय पर अपने द्वारा तय स्थान परकार्यवाही की वही बात तो हमारे सेनानायक ने कही, ”मुँहतोड़ जवाब देंगे । और 'सर्जिकल स्ट्राईक ' करके जता भी दिया है...बाकि ऐसे असंख्य उपलब्धियां हमारी सेना ने की है!  पर समय भी हम तय करेंगे औरस्थान भी ”

          आज सोशल मिडिया के युग में हम जैसे देशभक्तों को भी इन मामलों में संयम रखने की आवश्यकता है। भावुकता में आकर इतना ऐसा गलत बयानी ना करें जिससे 'वैश्विक कूट नीति' पर बुरा असर पड़ने से भारत प्रभावित हो!   हमको निश्चित रूप से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्तकरना चाहिए। लेकिन भावनाओं को अभिव्यक्त करतेसमय हमारे सैनिकों के बलिदान के कारण आक्रमणकारीउन कायरों के विरुद्ध अपना पराक्रम होना चाहिए।नक्सलवादियों के ऊपर हमारा आक्रोश होना चाहिए । नक्सलवाद को दूर से, वैचारिक रूप से, बौद्धिक रूप सेसंबल प्रदान करनेवाले कम्युनिस्टों को, बाहर देश से उन्हेंपैसा देनेवाले ISI और चीन के विरुद्ध हमारा आक्रोशहोना चाहिए।  ना कि हमारी सेना, CRPF, रक्षामंत्री,गृहमंत्री, मुख्यमंत्री या हमारे प्रधानमंत्री के विरुद्ध । हमारा आक्रोश शत्रु के विरुद्ध हो, अपनों के विरुद्ध ना होयह संयम हमको अपने मन में रखना पड़ेगा। पाकिस्तानके विरुद्ध हम बात करें । आज की मोदी सरकार रबर स्टेम्प की सरकार नहीं बल्कि पूर्ण बहुमत वाली सशक्त व कठोर निर्णय लेने वाली  सरकार है इस सरकार ने कईयों बार हर मोर्चे  पर विरोध और जवाब देने के अलावां समयानुसारसकठोर कार्वाही करके जवाब भी दिया है.. हां विपक्ष को अपनी सरकार पर दबाव बनाये यहतर्क ठीक है। लेकिन आज इस दबाव का ये मतलब नहीं की सवा सौ करोड़ भारतीय लोगों का चुना हुआ                                                      प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जहां एक ओर इजराईल में मित्रता प्रगाढ करने का काम कर रहे थे वहीं  छुट्टी से वापस भारत लौटे एक नेता मोदी जी को 'कमजोर नेता' बताकर सत्तावापसी की जमीन ढूंढ रहे हैं जो किसी     भी दृष्टि से ठीक नहीं है! 

- पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, जिला - दुर्ग (छ.ग.)

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गुरुपुर्णीमा के पावन अवसर पर आप सभी को बहुत बहुत बधाई....

!!गुरुस्तोत्र ॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ २॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३॥

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ४॥

चिन्मयं व्यापि यत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ५॥

सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजितपदाम्बुजः । वेदान्ताम्बुजसूर्यो यः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ६॥

चैतन्यश्शाश्वतश्शान्तः व्योमातीतो निरञ्जनः । बिन्दुनादकलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ७॥

ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मबन्धविदाहिने । आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ९॥

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापनं सारसम्पदः । गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १०॥

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः । तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ११॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः । मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १२॥

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् । गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १३॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥ १४॥ ॥

!! इति श्रीगुरुस्तोत्रम् ॥