ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
''जहाँ एक तरफ संस्कृत को प्रभावी बनाने जुटी हुई है, छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामंडलम के अध्यक्ष डॉ.गणेश कौशिक और सचिव डॉ.सुरेश कुमार शर्मा प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर सामाजिक संगठनों एवं आमजनसाधारण को प्रोत्साहित कर संस्कृत के पुनरूद्धार के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं वहीं, कुछ लोग धरातली संस्कृत के जागरण, पठन पाठन एवं अकादमिकल संस्कृत के छात्रों को सहयोग व मार्गदर्शन देने के बजाय नेताओं की चाटूकारिता, मंचों पर आसीन हो किमती पुष्पहार पहनने में ही गौरव समझते हैं। ''
छत्तीसगढ़ के पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता और विश्वविद्यालयीन कार्य प्रणाली के प्रति उदासीनता आये दिन समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती ही रहती है, कभी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) से मिले करोड़ों रुपयों के लैप्स का मामला हो, अथवा नकल मारकर थीसिस तैयार करने वाले डॉ. गुरूदास तोलानी की पीएचडी उपाधि , जिसे बाद में विश्वविद्यालय को पीएचडी निरस्त कर उनके गाइड डॉ. एसएस खनूजा को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
उल्लेखनीय है कि शासकीय गजानंद महाविद्यालय भाटापारा के सहायक प्राध्यापक डॉ. तोलानी को वर्ष 2006 में 'ग्रामीण विकास में बिलासपुर-रायपुर क्षेत्रीय बैंक की भूमिका (रायपुर जिले के विशेष संदर्भ में)Ó विषय पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की थी। इस पर शासकीय सत्यनारायण अग्रवाल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय कोहका-नेवरा के प्राध्यापक डॉ. डीके वर्मा ने आपत्ति की थी। उन्होंने डॉ. तोलानी पर अपने थीसिस की नकल करने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से भी इसकी शिकायत की थी। डॉ. वर्मा के मुताबिक उन्होंने 'बिलासपुर-रायपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के कार्यों का आर्थिक विश्लेषण: समस्याएं एवं संभावनाएंÓ शीर्षक से अपना शोध पेश किया था। इस पर उन्हें वर्ष 1997 में पीएचडी की उपाधि दी गई थी। डॉ. तोलानी ने मिलते-जुलते शोध के नाम पर उनसे थीसिस ली थी, लेकिन उसकी नकल कर डाला। डॉ. तोलानी के शोध निदेशक डॉ. खनूजा थे। इन सभी तथ्यों के जांॅच के बाद विश्वविद्यालय ने डॉ. तोलानी के पीएचडी को निरस्त करने का निर्णय लिया था, जो विश्वविद्यालय के लापरवाही का ज्वलंत नमूना है।
दिलचस्प बात यह है कि जहाँ एक तरफ संस्कृत को प्रभावी बनाने जुटी हुई है, छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामंडलम के अध्यक्ष डॉ.गणेश कौशिक और सचिव डॉ.सुरेश कुमार शर्मा प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर सामाजिक संगठनों एवं आमजनसाधारण को प्रोत्साहित कर संस्कृत के पुनरूद्धार के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं वहीं, कुछ लोग धरातली संस्कृत के जागरण, पठन पाठन एवं अकादमिकल संस्कृत के छात्रों को सहयोग व मार्गदर्शन देने के बजाय नेताओं की चाटूकारिता, मंचों पर आसीन हो किमती पुष्पहार पहनने में ही गौरव समझते हैं।
संस्कृत में पीएचडी करने का ख्वाब लिए 31 स्टूडेंट छह माह से भटक रहे, जिनमें 15 छात्रों का ही रजिस्ट्रेशन हो पया बाकि 16 छात्र आज भी वेटिंग में हैं। हालाकि संस्कृत में पीएचडी के लिए बाकायदे पिछले वर्ष 5 गाइड थे जो अब 6 गाइड घोषित किए गये हैं, कायदे से छह स्टूडेंट प्रति गाइड दिए जा सकते हैं। यू.जी.सी. के नये संशोधन आने की वजह से प्रशासनिक कार्यों का हवाला दे गइड(मार्गदर्शक) कतराते हैं। सबसे दु:खद बात तो यह है कि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के छात्रों में पढऩे वाले भी संस्कृत और गणित के एक भी छात्र जो एम.ए. में 50 से 60 प्रतिशत अंको से पास हुए थे, वे भी पास नहीं हो सके जो विश्वविद्यालय के द्वारा कराये जाने वाले पठन-पाठन पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते है, जो हास्यास्पद है।
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने पिछले दिन प्री पीएचडी के नतीजे घोषित कर दिए। नतीजे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी अपलोड हैं। नतीजों से विद्यार्थियों के होश उड़ गए है। गणित विषय में 113 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी। इनमें से एक भी सफ ल नहीं हो सका है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने नतीजों की सूचना सभी केन्द्रों को भेज दी। नतीजे उम्मीदवारों के पक्ष में नहीं हैं। गणित ही नहीं, दर्शनशास्त्र और कम्प्यूटर साइंस ने भी विद्यार्थियों को झटका लगाया है। दोनों विषयों में केवल एक-एक उम्मीदवारों से प्रीपीएचडी उत्तीर्ण की है। दर्शनशास्त्र विषय में आठ और कम्प्यूटर साइंस विषय में 35 परीक्षार्थी शामिल हुए थे। सबसे अधिक 60 उम्मीदवार हिंदी विषय में सफल हुए हैं। बायोटेक्नोलॉजी के नतीजे भी संतोषजनक हैं। इसमें 26 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। इसी प्रकार वाणिज्य में 25, भूगोल में 23, प्रबंधन में 21, राजनीति में 16, शिक्षा व अंग्रेजी में 12-12, पुरस्कालय विज्ञान में नौ और बॉटनी में आठ परीक्षार्थी सफल हुए। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय ने दूसरी बार 22 अप्रैल को प्रीपीएचडी का आयोजन किया था। इसमें करीब 2300 परीक्षार्थी शामिल हुए थे।
खाली सीटें:
अंग्रेजी में 26 सीटें, हिंदी 55, संस्कृत 14, दर्शनशास्त्र 28, भाषा विज्ञान 9, ग्रंथालय एवं सूचना विज्ञान एक, इतिहास 21, राजनीति विज्ञान 45, अर्थशास्त्र 47, समाजशास्त्र 68, भूगोल 31, मनोविज्ञान 23, भौतिकी 57, रसायनशास्त्र 55, गणित 94, भूविज्ञान 29, सांख्यिकी 24, इलेक्ट्रानिक्स एक, कम्प्यूटर साइंस तीन, वनस्पति विज्ञान 39, एंथ्रेपोलॉली पांच, बायोसाइंस 21 , बायोटेक्नोलॉजी दो, वाणिज्य 84, गृहविज्ञान 33, शिक्षा एक और शारीरिक शिक्षा की एक सीट शामिल है।
उल्लेखनीय है कि शासकीय गजानंद महाविद्यालय भाटापारा के सहायक प्राध्यापक डॉ. तोलानी को वर्ष 2006 में 'ग्रामीण विकास में बिलासपुर-रायपुर क्षेत्रीय बैंक की भूमिका (रायपुर जिले के विशेष संदर्भ में)Ó विषय पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की थी। इस पर शासकीय सत्यनारायण अग्रवाल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय कोहका-नेवरा के प्राध्यापक डॉ. डीके वर्मा ने आपत्ति की थी। उन्होंने डॉ. तोलानी पर अपने थीसिस की नकल करने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से भी इसकी शिकायत की थी। डॉ. वर्मा के मुताबिक उन्होंने 'बिलासपुर-रायपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के कार्यों का आर्थिक विश्लेषण: समस्याएं एवं संभावनाएंÓ शीर्षक से अपना शोध पेश किया था। इस पर उन्हें वर्ष 1997 में पीएचडी की उपाधि दी गई थी। डॉ. तोलानी ने मिलते-जुलते शोध के नाम पर उनसे थीसिस ली थी, लेकिन उसकी नकल कर डाला। डॉ. तोलानी के शोध निदेशक डॉ. खनूजा थे। इन सभी तथ्यों के जांॅच के बाद विश्वविद्यालय ने डॉ. तोलानी के पीएचडी को निरस्त करने का निर्णय लिया था, जो विश्वविद्यालय के लापरवाही का ज्वलंत नमूना है।
दिलचस्प बात यह है कि जहाँ एक तरफ संस्कृत को प्रभावी बनाने जुटी हुई है, छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामंडलम के अध्यक्ष डॉ.गणेश कौशिक और सचिव डॉ.सुरेश कुमार शर्मा प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर सामाजिक संगठनों एवं आमजनसाधारण को प्रोत्साहित कर संस्कृत के पुनरूद्धार के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं वहीं, कुछ लोग धरातली संस्कृत के जागरण, पठन पाठन एवं अकादमिकल संस्कृत के छात्रों को सहयोग व मार्गदर्शन देने के बजाय नेताओं की चाटूकारिता, मंचों पर आसीन हो किमती पुष्पहार पहनने में ही गौरव समझते हैं।
संस्कृत में पीएचडी करने का ख्वाब लिए 31 स्टूडेंट छह माह से भटक रहे, जिनमें 15 छात्रों का ही रजिस्ट्रेशन हो पया बाकि 16 छात्र आज भी वेटिंग में हैं। हालाकि संस्कृत में पीएचडी के लिए बाकायदे पिछले वर्ष 5 गाइड थे जो अब 6 गाइड घोषित किए गये हैं, कायदे से छह स्टूडेंट प्रति गाइड दिए जा सकते हैं। यू.जी.सी. के नये संशोधन आने की वजह से प्रशासनिक कार्यों का हवाला दे गइड(मार्गदर्शक) कतराते हैं। सबसे दु:खद बात तो यह है कि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के छात्रों में पढऩे वाले भी संस्कृत और गणित के एक भी छात्र जो एम.ए. में 50 से 60 प्रतिशत अंको से पास हुए थे, वे भी पास नहीं हो सके जो विश्वविद्यालय के द्वारा कराये जाने वाले पठन-पाठन पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते है, जो हास्यास्पद है।
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने पिछले दिन प्री पीएचडी के नतीजे घोषित कर दिए। नतीजे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी अपलोड हैं। नतीजों से विद्यार्थियों के होश उड़ गए है। गणित विषय में 113 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी। इनमें से एक भी सफ ल नहीं हो सका है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने नतीजों की सूचना सभी केन्द्रों को भेज दी। नतीजे उम्मीदवारों के पक्ष में नहीं हैं। गणित ही नहीं, दर्शनशास्त्र और कम्प्यूटर साइंस ने भी विद्यार्थियों को झटका लगाया है। दोनों विषयों में केवल एक-एक उम्मीदवारों से प्रीपीएचडी उत्तीर्ण की है। दर्शनशास्त्र विषय में आठ और कम्प्यूटर साइंस विषय में 35 परीक्षार्थी शामिल हुए थे। सबसे अधिक 60 उम्मीदवार हिंदी विषय में सफल हुए हैं। बायोटेक्नोलॉजी के नतीजे भी संतोषजनक हैं। इसमें 26 छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। इसी प्रकार वाणिज्य में 25, भूगोल में 23, प्रबंधन में 21, राजनीति में 16, शिक्षा व अंग्रेजी में 12-12, पुरस्कालय विज्ञान में नौ और बॉटनी में आठ परीक्षार्थी सफल हुए। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय ने दूसरी बार 22 अप्रैल को प्रीपीएचडी का आयोजन किया था। इसमें करीब 2300 परीक्षार्थी शामिल हुए थे।
कठिन है डगर:
प्रीपीएचडी उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों की राह अभी आसान नहीं हुई है। सफ ल उम्मीदवारों को पीएचडी शुरू करने से पहले गाइड तलाशना होगा। गाइड अनुमति देंगे, तभी आगे की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। दो बार प्रीपीएचडी होने के बाद अधिकांश गाइडों के पास सीटें फु ल हो गई हैं। इस स्थिति में नए विद्यार्थियों की राह में मुश्किलें खड़ी हो जाएगी।खाली सीटें:
अंग्रेजी में 26 सीटें, हिंदी 55, संस्कृत 14, दर्शनशास्त्र 28, भाषा विज्ञान 9, ग्रंथालय एवं सूचना विज्ञान एक, इतिहास 21, राजनीति विज्ञान 45, अर्थशास्त्र 47, समाजशास्त्र 68, भूगोल 31, मनोविज्ञान 23, भौतिकी 57, रसायनशास्त्र 55, गणित 94, भूविज्ञान 29, सांख्यिकी 24, इलेक्ट्रानिक्स एक, कम्प्यूटर साइंस तीन, वनस्पति विज्ञान 39, एंथ्रेपोलॉली पांच, बायोसाइंस 21 , बायोटेक्नोलॉजी दो, वाणिज्य 84, गृहविज्ञान 33, शिक्षा एक और शारीरिक शिक्षा की एक सीट शामिल है।
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