ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 13 अप्रैल 2011

सबके जिंदगी से जुड़ा है ज्योतिष











सबके जिंदगी  से जुड़ा है ज्योतिष मानव शरीर और ब्रह्मांड की समानता पर पुराणों तथा धर्मग्रंथों में व्यापक विचार हुआ है। जो ब्रह्मांड में है, वह मानव शरीर में भी है। ब्रह्मांड को समझने का श्रेष्ठ साधन मानव शरीर ही है। समाज वैज्ञानिकों ने भी सावययी-सादृश्यता के सिद्धांत को इसी आधार पर निर्मित किया है। मानव शरीर व संपूर्ण समाज को एक-दूसरे का प्रतिबिंब माना है।

शरीर व समाज की समानता को 'सावययी-सादृश्यता' का नाम दिया है। सौरमंडल को ज्योतिष भली-भाँति जानता है। इसी सौरमंडल में व्याप्त पंचतत्वों को प्रकृति ने मानव निर्माण हेतु पृथ्वी को प्रदान किए हैं। मानव शरीर जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु तथा आकाश तत्व से निर्मित हुआ है। ज्योतिष ने सौरमंडल के ग्रहों, राशियों तथा नक्षत्रों में इन तत्वों का साक्षात्कार कर अपने प्राकृतिक सिद्धांतों का निर्माण किया है।

ज्योतिष का फलित भाग इन ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों के मानव शरीर पर प्रभाव का अध्ययन करता है। जो पंचतत्व इन ग्रह-नक्षत्रों व राशियों में हैं, वे ही मानव शरीर में भी हैं, तो निश्चित ही इनका मानव शरीर पर गहरा प्रभाव है। भारतीय ज्योतिष ने सात ग्रहों को प्राथमिकता दी है- रवि, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि। राहु एवं केतु 'छाया ग्रह' हैं। पाश्चात्य ज्योतिष जगत में यूरेनस, नेपच्यून तथा प्लूटो का भी महत्व है।

ज्योतिष ने पंचतत्वों में प्रधानता के आधार पर ग्रहों में इन तत्वों को अनुभव किया है- रवि तथा मंगल अग्नि तत्व के ग्रह हैं। अग्नि तत्व शरीर की ऊर्जा तथा जीने की शक्ति का कारक है। अग्नि तत्व की कमी शरीर के विकास को अवरुद्ध कर रोगों से लड़ने की शक्ति कम करती है। शुक्र व चंद्रमा जल तत्व के कारक हैं। शरीर में व्याप्त जल पर चंद्रमा का आधिपत्य है। शरीर में स्थित 'जल' शरीर का पोषण करता है। जल तत्व की कमी आलस्य व तनाव उत्पन्न कर शरीर की संचार व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है। जल व मन दोनों चंचल हैं, इसलिए चंद्रमा को मन का कारक तत्व प्रदान किया है। शुक्राणु जल में ही जीवित रहते हैं, जो सृष्टि के विकास व निर्माण में महत्वपूर्ण हैं। 'शुक्र' कामजीवन का कारक है। यही कारण है कि शुक्र के अस्त होने पर विवाह के मुहूर्त नहीं निकलते हैं।

बृहस्पति एवं राहू आकाश तत्व से संबंध रखते हैं। ये व्यक्ति के पर्यावरण तथा आध्यात्मिक जीवन से सीधा संबंध रखते हैं। बुध 'पृथ्वी-तत्व' का कारक है। यह बुद्धि क्षमता तथा निर्णय लेने की शक्ति शरीर को देता है। इस तत्व की कमी बुद्धिमत्ता तथा निर्णय क्षमता पर विपरीत असर डालती है। शनि वायु तत्व का कारक है। शरीर में व्याप्त वायु पर इसका आधिपत्य है। केतु को मंगलवत माना जाता है।
मानव जीवन में कुछ गुण मूल प्रकृति के रूप में मौजूद होते हैं। प्रत्येक मनुष्य में प्राकृतिक रूप से आत्मा, मन, बल, वाणी, ज्ञान, काम तथा दुःख विद्यमान होते हैं। यह ग्रहों पर निर्भर करता है कि मानव जीवन में इनकी मात्रा कितनी है, विशेष रूप से प्रथम दो तत्वों को छोड़कर, क्योंकि आत्मा से ही शरीर है, यह रवि का अधिकार क्षेत्र है। मन चंद्रमा का है। मंगल- बल, वाणी- बुध, ज्ञान- बृहस्पति, काम- शुक्र तथा दुःख पर शनि का आधिपत्य है।

आधुनिक मनोविज्ञान मानव की चार मूल प्रवृत्तियाँ मानता है- भय, भूख, यौन व सुरक्षा। भय पर शनि व केतु का आधिपत्य है। भूख पर रवि एवं बृहस्पति, यौन पर शुक्र तथा सुरक्षा पर चंद्र, मंगल तथा बुध का आधिपत्य है। मानव शरीर के विभिन्ना धातु तत्वों का भी ब्रह्मांड के ग्रहों से सीधा संबंध है। शरीर की हड्डियों पर रवि, खून पर चंद्रमा, शरीर के मांस पर मंगल, त्वचा पर बुध, चर्बी पर बृहस्पति, वीर्य पर शुक्र तथा स्नायुमंडल शनि से संबंध रखता है।

राहू एवं केतु चेतना से संबंधित हैं। शरीर आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष से पीड़ित हो सकता है, जो विभिन्ना रोगों के रूप में प्रकट होता है- वात, पित्त एवं कफ। रवि, मंगल- पित्त, चंद्रमा- कफ, शनि- वायु, बुध- त्रिदोष, शुक्र- कफ एवं वात तथा बृहस्पति- कफ और पित्त का अधिपति है। शरीर की आंतरिक स्वास्थ्य रचना इन प्रवृत्तियों तथा ग्रहों के उचित तालमेल पर ही निर्भर है।

आध्यात्मिक व सामाजिक जीवन के मान से सत्व, रज तथा तमो गुण मानव के मौलिक गुण माने गए हैं। बृहस्पति, रवि, चंद्रमा तथा नेपच्यून सतोगुण, शुक्र, बुध तथा प्लूटो रजोगुण तथा शेष तमोगुण के प्रतिनिधि हैं। जहाँ तक राशियों का प्रश्न है मेष, सिंह व धनु अग्नि तत्व, वृषभ, कन्या व मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला व कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक व मीन जल तत्व की राशियाँ हैं। आकाश तत्व इन सभी में 12 प्रतिशत प्राप्त होता है।

नक्षत्रों का भी तत्व के आधार पर विभाजन भारतीय ज्योतिष में किया है- अश्विनी, मृगसर, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा वायु तत्व के नक्षत्र हैं। भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, पूर्वाषाढ़ा तथा दोनों भाद्रपद अग्नि तत्व के नक्षत्र हैं। रोहिणी, अनुराधा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा पृथ्वी तत्व के तथा शेष जल तत्व के नक्षत्र हैं। आकाश तत्व इन सभी नक्षत्रों में 12 प्रतिशत प्राप्त होता है।

अध्यात्म ज्योतिष जीवात्मा तथा परमात्मा के एकाकार होने को 'मोक्ष' कहता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए ब्रह्मांड तथा शरीर के आंतरिक व बाह्य रहस्यों को समझना आवश्यक है। मानव शरीर ब्रह्मांड के पंचतत्वों से निर्मित होता है और इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है। ग्रहों, राशियों व नक्षत्रों के तत्वों का ज्ञान, इसका प्रभाव मानव के अंतिम लक्ष्य मोक्ष का मार्गदर्शन करता है। भौतिक जगत में परमात्मा मानव जीवन देकर मोक्ष का अवसर प्रदान करता है। यहाँ ग्रह-नक्षत्रों का सकारात्मक प्रभाव सहयोग देता है, नकारात्मक प्रभाव व्यवधान उत्पन्ना करते हैं। शनि एवं केतु मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा जाता है। यह प्रतीकात्मक है। नेत्र व्यक्ति को अच्छा व बुरा देखने तथा समझने का शक्तिशाली माध्यम है। आंतरिक व बाह्य रहस्यों को देखने में नेत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्राचीन ज्योतिष के सभी सिद्धांत योगियों व ऋषियों ने सिर्फ नेत्र से देखकर तथा योगमार्ग से अनुभव करके बनाए हैं, बिना कोई वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से। यह अपने आप में आंतरिक व बाह्य रहस्यों में ज्योतिष के महत्व को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है।



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