ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 10 जुलाई 2018

जहां प्रभु श्रीराम ने " निसिचर हीन करउँ महि " का प्रण किया था वह पावन तीर्थ है 'रामटेक' और यही है वह इकलौता मंदिर जिसके गर्भगृह में रखा गया है भोंसले राजाओं का 'शस्त्र-शस्त्र' (जरुर पढें यह रोचक एवं तथ्यपरक आलेख)🙏

चौबेजी कहिन:- जहां प्रभु श्रीराम ने "
निसिचर हीन करउँ महि " का प्रण किया था वह पावन तीर्थ है 'रामटेक' और यही है वह इकलौता मंदिर जिसके गर्भगृह में रखा गया है भोंसले राजाओं का 'शस्त्र-शस्त्र' (जरुर पढें यह रोचक एवं तथ्यपरक आलेख)🙏

11/07/2018
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ प्रण कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमहि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥ अरण्य काण्ड
भावार्थ श्री रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा-जाकर उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥
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श्रीरामचरितमानस के तृतीय सोपान अरण्य काण्ड मे प्रभु श्रीराम ने जिस स्थान पर समस्त पृथ्वी को 'निसिचर हीन' करने का संकल्प लिया, वह पवित्र स्थान 'रामटेक' है, जो महाराष्ट्र में स्थित है, इसी स्थान पर कविकुल गुरु महाकवि कालिदास जी ने 'मेघदूत' काव्य का वर्णन किया। मुझे इस पावन भूमि पर कल (10/07/2018) प्रभु श्रीराम का दर्शन एवं महाकवि कालिदास स्मारक का पावन *सौभाग्य* प्राप्त हुआ, जिसका पूरा श्रेय आदरणीय डॉ. नरेन्द्र प्रसाद दीक्षित, पूर्व कुलपति (दुर्ग विश्वविद्यालय, छ.ग.) जी के सान्निध्य को जाता है और इस ऐतिहासिक 'रामटेक यात्रा' को चिरंजीवी बनाने में अहम भूमिका श्री देशदीपक सिंह जी की रही।
विश्व का यह एक इकलौता मंदिर है जहां श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में अस्त्र-शास्त्र रखा गया है । 'रामटेक' स्थित भगवान श्रीराम के इस ऐतिहासिक तीर्थ के बारे में जितना कहा जाए वह कम है, दुर्ग विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति रहे डॉ. नरेन्द्र प्रसाद दीक्षित ने बताया की तीसरी शताब्दी में यहां 'वाकाटक नरेशों ' का किला था।
वाकाटक शब्द का प्रयोग प्राचीन भारत के एक राजवंश के लिए किया जाता है जिसने तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक शासन किया था।  स्यात्‌ वकाट नामक मध्यभारत में यह स्थान रहा हो, जहाँ पर शासन करनेवाला वंश वाकाटक कहलाया। अतएव प्रथम राजा को अजंता लेख में "वाकाटक वंशकेतु:" कहा गया है। इस राजवंश का शासन मध्यप्रदेश के अधिक भूभाग तथा प्राचीन बरार (आंध्र प्रदेश) पर विस्तृत था, जिसके सर्वप्रथम शासक विन्ध्यशक्ति का नाम वायुपुराण तथा अजंता के लेख में  मिलता है। संभवत: विंध्य पर्वतीय भाग पर शासन करने के कारण प्रथम राजा 'विंध्यशक्ति' की पदवी से विभूषित किया गया। डॉ. दीक्षित कहते हैं यदि बात की जाए काव्यों के रचनाकारों की तो महाकवि कालिदास जी के 'मेघदूत' काव्य में इस पर्वत श्रृंखला को 'रामगिरि' के रुप में प्रतिष्ठित किया तो अन्य काव्यों में जैसे प्राकृत काव्य तथा सुभाषित को "वैदर्भी शैली" का नाम दिया गया है। वाकाटकनरेश वैदिक धर्म के अनुयायी थे, इसीलिए अनेक यज्ञों का विवरण लेखों में मिलता है। कला के क्षेत्र में भी इसका कार्य प्रशंसनीय रहा है।
श्री देशदीपक सिंह जी ने बताया कि 28/9/1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना के बाद प.पू. डॉक्टर हेडगेवार जी इस ऐतिहासिक तीर्थ 'रामटेक' आये थे। बार-बार इस पावन भूमि पर डॉक्टर हेडगेवार जी इसलिए आते थे क्योंकि भारत माता के रक्षार्थ मुगलों से कई बार 'भोंसले' राजाओं ने युद्ध किया, आज भी इस मंदिर में 'भोंसले' राजाओं के 'अस्त्र-शस्त्र' इस मंदिर के गर्भगृह में देखें जा सकते हैं। श्री देशदीपक जी ने इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक जुड़ाव के बारे बताया कि- इंडियन एंटी क्वेरी खंड 37 पेज 204 के अनुसार यह लेख 80 पंक्तियों का है परन्तु बहुत सी मिट गई है। लेख के अधिक अंश में रामटेक के तीर्थो का वर्णन है। जिसमें हैहय वंशी राजा ब्रम्हदेव के सम्बन्ध में है जो रायपुर और खल्लारी के लेख में आते है। उसमें रामटेक में लक्ष्मण मंदिर का जिक्र किया गया है।
वनवास के समय राम के 'टिकने का स्थान' या 'पड़ाव' को 'रामटेक' कहा जाता है। कुछ विद्वानों के मत में यह महाकवि कालिदास के 'मेघदूत' में वर्णित रामगिरि है। यहाँ विस्तीर्ण पर्वतीय प्रदेश में अनेक छोट-छोटे सरोवर स्थित हैं, जो शायद 'पूर्वमेघ' में उल्लिखित 'जनकतनया स्नान पुण्योदकेषु' में निर्दिष्ट जलाशय हैं। इस पवित्र तीर्थ में भगवान श्रीराम वनवास काल में राम, लक्ष्मण तथा सीता इस स्थान पर रहे थे। रामचंद्र जी का एक सुंदर मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। मंदिर के निकट विशाल वराह की मूर्ति के आकार में कटा हुआ एक शैलखंड स्थित है। रामटेक को 'सिंदूरगिरि' भी कहते हैं। इसके पूर्व की ओर 'सुरनदी' या 'सूर्यनदी' बहती है। इस स्थान पर एक ऊंचा टीला है, जिसे गुप्तकालीन बताया जाता है। चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने रामगिरि की यात्रा की थी। इस तथ्य की जानकारी 'रिद्धपुर' के ताम्रपत्र लेख से होती है। प्राचीन जनश्रुति के अनुसार रामचंद्र जी ने शंबूक का वध इसी स्थान पर किया था। रामटेक में जैन मन्दिर भी है। कुछ विद्वानों का मत है कि कालिदास के 'मेघदूत' का रामगिरि यही है।
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका शांतिनगर भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबाइल नं.9827198828

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