ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 17 दिसंबर 2012

नवलखा हार बनवा दो

नवलखा हार बनवा दो..........


  प्रिय पाठकों,
यह अंक  वार्षिक राशिफल नक्षत्र-2013 के रुप में आप सभी को समर्पित है, आंग्ल नूतन वर्ष-2013 की शुभकामनाओं के साथ मैं इस अंक के माध्यम से भारतीय हिन्दू नववर्ष के ज्योतिषिय आॅकलन को भी मैने जोड़ने का प्रयास किया है, अर्थात् उसे ही आधार बनाकर ग्रह जनित शुभाशुभ प्रभावों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है। मुझे आशा ही नहीं वरन् पुरा विश्वास है कि, आप सभी के लिए लाभोपयोगी सिद्ध होगा।
मित्रों अब चर्चा करते हैं, समसामयिक आज के राजनीतिक घमाशान इस दौर में सर्वप्रथम गुजरात विधानसभा चुनाव का। गुजरात में नरेन्द्र मोदी तीसरी बार विजेता के रुप में अपने आपको राष्ट्रीय राजनीति में अव्वल नेतृत्त्व क्षमता को प्रदर्शित करने में कामयाब होते दिख रहे हैं। किन्तु आप लोगों का ध्यान चुनवी मौसम के इनसाईड स्टोरियों पर आकर्षित करुंगा..मुझे एक वाकया याद आ रहा है जिसे मैं अपने शब्दों में आपके समक्ष रखना चाहूँगा। यह वाकया था नवविवाहित नवदंपति का। पति से पत्नी ने कहा कि ..मुझे  नवलखा हार बनवा दो नहीं तो...डूब मरुँगी.। वही हाल चुनाव के दौरान लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के राजनेताओं का होता है। उसी तर्ज पर गुजरात में केशूभाई पटेल ने गुजरात विकास पार्टी बनाकर इतने लंबे राजनीतिक करियर को शूली पर चढ़ा दी, और हाथ कुछ नहीं लगा। आपको याद होगा कि छत्तीसगढ़ में भी टिकट बंटवारे को लेकर अपनी नाराजगी पूर्व सांसद ताराचंद साहू ने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन कर किया था। हालॉकि बाद में उन्होंने छत्तीसगढ़ में तीसरा मोर्चा बनाने में सफल नहीं हो पाये तो राकांपा के सुप्रीमो शरद पवार से समर्थन मांगा था, लेकिन ईश्वर को मंजूर नहीं था  वे दूनिया छोड़कर चले गये। येदुरप्पा भी उसी  लाईन में आ खड़ें हैं। पार्टी से नाराजगी क्या रंग लाती है, यह समय बतायेगा। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी चुनाव आते हैं, तो उलट-पुलट लगभग सभी पार्टियों में होते ही हैं, क्योंकि नवलखा हार पहनने की होड़ जो रहती है।
अब बात करते है वैदेशिक राजनीति की जरा हम आॅकलन करें कि हम कहाँ खड़ें हैं, वे कहाँ हैं..? विगत दिनों पाकिस्तान  के गृह मंत्री रहमान मलिक भारत के दौरे पर आये थे। उन्होंने अपनी बेशर्मियत की सभी हदें पार करते हुए, भारत के अंदरुनी मामलों पर टिप्पड़ी करते हुए, उन्होंने 26 /11 को दिल दहला देने वाली मुंबई में हुए हमले की तुलना अयोध्या के बाबरी मस्जिद से कर देश में साम्प्रदायिकता की आग लगाने का पुरजोर प्रयास किया। इस बात पर तल्ख टिप्पड़ी करते हुए नरेन्द्र मोदी सहित विपक्षी पार्टियों ने शब्द बांण छोड़े, लेकिन भारतीय सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को रहमान को छोड़ नरेन्द्र मोदी द्वारा उठाये गये सर क्रीक के मामले पर तीखा प्रहार करना ही बेहतर समझा क्या यही देश की अखण्डता है...? अपने देश में आकर कोई भी बाहरी नेता कुछ भी बोलकर चला जाय, और अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए विरोध करने वाले राजनेता पर तीखा प्रहार करना  क्या उचित है..?
ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि देशप्रेम से अधिक महत्त्व पार्टी प्रेम अथवा पार्टी के आकाओं से प्रेम मायने रखता है, ऐसे प्रेमी हैं, जिन्होंने कभी अपने माता-पिता अथवा घर के बुजूर्गों का चरण स्पर्श करने की  बात तो दूर कभी आदर से उन्हें याद तक नहीं करते। किसी भी पार्टी का एक सिद्धांत होता है, और उन सिद्धांतो पर चलने वाले उस पार्टी के वफादार साथी, और इन सभी साथियों को एक नेतृत्त्व में समेट कर ले चलने वाला नेता अर्थात् नयति इति नेता। लेकिन आज कोई सिद्धांत नहीं है, केवल बस एक ही चाह है कि- शार्टकट, जुगाड़ तंत्र , जातिगत, सम्प्रदायगत, क्षेत्रगत तथा सुरा सन्दरी के दम पर जल्द से जल्द  नवलक्खा हार हमारे गले में कोई डाल दे। -

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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