ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 7 जून 2017

भारतीय सांस्कृतिक संरचनाओं की रक्षा करना ही राष्ट्रभक्ति है ..तो आखिरकार 'रामलला' क्यों हैं तीरपाल में..?

भारतीय सांस्कृतिक संरचनाओं की रक्षा करना ही राष्ट्रभक्ति है ..तो आखिरकार 'रामलला' क्यों हैं तीरपाल में..?



''भारतस्य प्रतिष्ठा द्वे संस्कृति संस्कृतस्तथा'' अर्थात् विश्व के मानचित्र  पर भारत को प्रतिष्ठित करने वाली दो वस्तु है पहला यहाँ की संस्कृति और दूसरा संस्कृत भाषा, यही  दोनों वस्तुएँ पूरे विश्व को नतमस्तक करने को विवश करता है। संस्कृति का अभिप्राय पारस्परिक भाईचारा जो उपसंस्कृति, लोक-संस्कृति एक दूसरे को जोड़ने का काम करती है, वहीं संस्कृत वह भाषा है, जो विश्व की सभी भाषाओं की जननी है, और भारतीय संस्कृति के सिद्धांत-सूत्र लिपी मानी जाती है।
 
इसी क्रम को आगे बढाते हुए...मुझे दु:ख होता है कि जिस देश की सांस्कृतिक संरचनाएं राजनीतिक दहलीज पर स्वयं के उद्धार के लिये मिन्नतें मांगे, जिस देश की पहचान प्रभु श्रीराम से या 'रामराज्य' की कल्पना को पूरे विश्व के दार्शनिकों ने हाथोंहाथ लिया और भारत को 'आध्यात्मिक-भू-भाग वाला देश' के रूप में पहचान बनी! जहां संत नारद की करुणा संत हनुमान के बलवती शौर्य की गाथा गाई जाती हो...जिस मां भारती ने सूर, तुलसी और कबीरदास, तथा विश्वपटल पर श्रीमद्भगवद्गीता को उकेर कर भारत का गौरव बढाने वाले स्वामी विवेकानंद जैसे संत दिये हों...आज उसी देश में छद्म राजनीतिक षडयंत्र ने आज भी '' रामलला " तीरपाल में रहने को विवश किये हुए है...जिस अयोध्या की गौरव-गाथा इण्डोनेसिया, श्रीलंका, मॉरीशस, नेपाल सहित कई देशों में बड़े ही गरीमापूर्ण गाई व रामनवमी मनायी जाती हो...लेकिन प्रभु राम का जन्म जिस देश मे हुआ उसी देश के पश्चिम बंगाल नामक राज्य में रामनवमी पर निकाले जाने वाले ध्वज-यात्रा पर हमले कराये जाते हों..! ममता बनर्जी का ये हिंदुत्व-द्रोह क्या फिर सत्ता दिलाने में सफल हो पायेगा ?
देश में पूर्व की कांग्रेस नीति सरकारों द्वारा ऐसा माहौल बनाया गया की श्रीराम का जहां जन्म हुआ उस अयोध्या में कोई नेता जाना जाना पसंद नहीं करता. हां के विकास की बात ही दीगर है...क्योंकि वहां कोई नेता चला जाय तो फिर देखो इतनी सियासत गरमा जाती है की मानो किसी बड़े नेता की मौत हो गई हो.! जबकि वहां हिंदु, मुश्लिम दोनों रहते हैं क्या उन्हें रोड, नाली, सड़क और साफ-सफाई की भी व्यवस्था नहीं दी जानी चाहिये? क्या अयोध्या इतना अभिशप्त हो गया है..? दु:ख होता है ऐसी धर्म निरपेक्षता पर..और लावत ऐसी राजनैतिक सोच पर!
मुझे गर्व है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री परम पूज्य आदित्यनाथ योगी अयोध्या भी गये और वहां की जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर स्वत : अपनी आंखो से देखकर उसे त्वरित सुधारने, बनाने व अयोध्या को नगर निगम बनाते हुए ..तमाम उन कार्यों का आदेश दिया की जो अयोध्या के ऐतुहासिक व पुरातात्विक चिह्न थे साथ ही वहां सदियों से हो रही रामलीला जो सड़ांध बदबूदार राजनीति की शिकार होकर बंद हो चुकी थी उसे तत्काल बजट देकर आरंभ करवाये ... दिलचस्प बात तो यह है कि  इंडोनेशिया में लगभग 70 वर्ष पूर्व एक मुस्लिम पाकू आलम ने रामलीला की शुरुआत कराई थी। जबकि मुश्लिमों की बहुतायत संख्या वाले देश इण्डोनेशिया में तो बाकायदे 'रामलीला मंचन हेतु एक मंत्रालय बनाया गया है' तो क्या हमारे देश के भारतीय मुश्लिम अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में अपना सहयोग नहीं देंगे...यह जानते हुए कि वहां राम मंदिर था और आज भी है.. जिसके उपरी हिस्से को मीर बांकी ने तोड़ दिया था! तो क्या उस मंदिर का पुनरुद्धार कर 'रामलला' को छत नहीं दी जानी चाहिये..! ये वही राम हैं जिनसे हमारे देश की सांस्कृतिक संरचना खासा प्रभावित है, और राष्ट्र का गौरव जिससे जुड़ा हो उसे मीर बांकी द्वारा वैमनस्यता पूर्वक तोड़ दिया गया ..तो क्या राष्ट्र के गौरव बढाने वाले श्रीराम के धाम अयोध्या का विकास करना या रामलला का भव्य मंदिर बनाना...यह राष्ट्र भक्ति नहीं है...मां भारती के अमर सपूतों असल में यही असल राष्ट्रभक्ति है!

-पण्डित विनोद चौबे, संपादक - "ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासक पत्रिका, भिलाई


हम भी तो जानें! मुस्लिम बहुल इंडोनेशियाई रामायण की खासियत

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हम भी तो जानें! मुस्लिम बहुल इंडोनेशियाई रामायण की खासियत
मुस्‍लिम बहुल देश इंडोनेशिया में रामायण लोक-जीवन से इतनी गहराई तक जुड़ी हुई है। यहां पर इसका काफी शानदार तरीके से मंचन होता है और इसके चरित्रों का इस्तेमाल स्‍कली शिक्षा में भी किया जा रहा है। सबसे खास बात तो यह है कि इंडोनेशियाई सरकार अपनी रामायण को भारत में दिखाने के लिए यहां की सरकार से पहल भी कर चुकी है। ऐसे में आइए जानें मुस्लिम बहुल इंडोनेशियाई रामायण की खासियत...

रामायण का मंचन: 

इंडोनेशिया के शिक्षा और संस्कृति मंत्री अनीस बास्वेदन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान इंडोनेशियाई रामायण भारत में दिखाने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की। उनका कहना था कि भारतीय कलाकार भी इंडोनेशिया जाकर वहां पर अपनी रामायण का मंचन करें। 



शिक्षा में रामायण:  
90 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर वर्तमान दौर में भी रामायण की गहरी छाप है। मुस्‍लिम वर्ग के लोग भी यहां पर अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं। मुस्‍लिम शिक्षक बच्‍चों को इसको काफी बेहतर तरीके से समझाते भी हैं। 



हनुमान लोकप्रिय: 
वहां की भाषा में रामायण ककविन यानी काव्य नाम से राम कथा है। इसके रचयिता इंडोनेशियाई कवि योगेश्वर हैं। इनकी रामायण में माता सीता को देवी सिंता नाम दिया गया है। इसके अलावा प्रभु हनुमान लोकप्रिय पौराणिक चरित्र हैं।



राष्ट्रीय काव्य ग्रंथ: 

सबसे खास बात तो यह है कि रामायण यहां का राष्ट्रीय काव्य ग्रंथ है। इतना ही नहीं 1973 में इंडोनेशियाई की सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन भी किया था। यहां लोगों का मानना है कि इस्लाम उनका धर्म है और रामायण उनकी संस्कृति है। 



अयोध्या जैसी योग्‍या: 
इंडोनेशिया में भारत की तरह एक खूबसूरत सी अयोध्या नगरी है। हालांकि यहां पर इसे योग्‍या कहा जाता है। इंडोनेशिया के स्वतंत्रता दिवस यानी 27 दिसंबर को राजधानी जकार्ता में इसका भव्‍य अयोजन होता है। बड़ी संख्‍या में लोग हनुमान का वेश धारण कर परेड में जाते हैं। 



राष्‍ट्रपति का जवाब: 
एक बार पाक का एक प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया की यात्रा पर गया था। प्रतिनिधिमंडल वहां पर रामलीला देख हैरान हुआ और उसने पूछा कि मुस्लिम देश में रामलीला का मंचन क्यों हो रहा है। जिस पर राष्‍ट्रपति सुकर्णो ने जवाब दिया कि अपना धर्म बदला है, संस्कृति नहीं बदली है।
 -साभार डबल्यू डबल्यू डबल्यू डॉट इनेक्स्ट लाईव डॉट जागरण डॉट कॉम

शुक्रवार, 2 जून 2017

'केरल' दूसरा 'कश्मीर' बनने की राह पर, क्या ... साम्प्रदायिकता की बिसात पर सत्ता में वापसी करना चाहती है कांग्रेस...??

'केरल' दूसरा 'कश्मीर' बनने की राह पर,  क्या ... साम्प्रदायिकता की बिसात पर सत्ता में वापसी करना चाहती है कांग्रेस...??






संपादकीय- अंक-मई 2017 ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, जिला - दुर्ग, छत्तीसगढ़ से प्रकाशित...!

मंगलवार, 30 मई 2017

आप 'हिन्दुत्व' को समझने के लिये इस लेख को जरूर पढें........

Pandit Vinod Choubey

आप 'हिन्दुत्व' को समझने के लिये इस लेख को जरूर पढें........

प्रात: वंदन के साथ सुप्रभात *अन्तर्नाद* (व्हाट्सएप्प ग्रुप)  मंच साथियों आईये हिन्दु शब्द की व्याख्या को समझें..हर हिंदू को इसका ज्ञान होना नितांत आवश्यक है..........
हमारे शिष्य मनोज जी ( निवासी शांतिनगर,भिलाई ) ने प्रश्न किया कि - आदरणीय पण्डित जी ये बतायें की हिंदु शब्द का सिंधु शब्द से क्या संबंध है..? और हिंदुत्व की संस्कृति यानी हिंदु विचारधारा वाले सनातन धर्म को फॉलो करने वाले लोगों की जीवन यापन सभ्यता सबसे प्राचीन क्यों मानी जाती है...?
वैदिक शब्द 'हिंदु' सिंधु से बना है.....
रमेश जी, जब मैं वाराणसी के कमच्छा स्थित 'रणवीर संस्कृत महाविद्यालय' में प्रवेशिका द्वितीय वर्ष का छात्र था तो उस समय व्याकरण के गुरुजी आदरणीय श्री शेषनाथ मिश्र जी हुआ करते थे उन्होंने इसकी व्याख्या कुछ इप्रकार की - वैदिक शब्द 'हिंदु' सिंधु से बना है। संस्कृत मे प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति के पीछे एकविज्ञान है, जिसे शब्द व्युत्पत्ति कहते हैं। जैसे-"पत्नात त्रायते सा पत्नी" वैदिक व्याकरण मे शब्दउत्पत्ति का आधार ध्वनि विज्ञान (नादविज्ञान) है, ध्वनि उत्पत्ति, उद्गम, आवृत्ति, ऊर्जाआदि के आधार पर ध्वनि परिवर्तन से समानार्थी वनए शब्दों की उत्पत्ति होती है, जैसे सरित(नदी)शब्द की उत्पत्ति हरित शब्द से हुई है। "हरितो नरह्यॉ"( अथर्ववेद 20.30.4) की व्याख्या मे निघंटु मेस्पष्ट है "सरितों हरितो भवन्ति"॥ वैदिक व्याकरणके संदर्भ में निघंटु का निर्देश (नियम) है कि "स" कईस्थानों पर "ह" ध्वनि में परिवर्तित हो जाता है। इसप्रकार अन्य स्थानों मे भी "स" को "ह" व "ह" को"स" लिखा गया है। . सरस्वती को हरस्वती- "तंममर्तुदुच्छुना हरस्वती" (ऋग. 2।23।6), श्री कोह्री- "ह्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ" आदि-आदि॥इसी प्रकार हिन्दू शब्द वैदिक सिंधु शब्द कीउत्पत्ति है क्योंकि सिंधु शब्द से हिंदुओं का सम्बोधनविदेशी आरंभ नहीं है जैसा कि इतिहास मे बताने काप्रयास होता है वरन वैदिक सम्बोधन है। "नेतासिंधूनाम" (ऋग 7.5.2), "सिन्धोर्गभोसिविद्दुताम् पुष्पम्"(अथर्व 19.44.5) फारसी मे हिन्दूशब्द का अर्थ काफिर चोर कालान्तर में किया गयाहै, ऐसा नहीं कि हिन्दू फारसी का मूल शब्द इसीभाव में है। फारसी में "स" के स्थान पर "ह" प्रचलन मेंआ गया, संभवतः संस्कृत व्याकरण के उपरोक्त नियमने फारसी में नियमित स्थान बना लिया होगा!


'हिन्दू' शब्द का अन्य भाषाविज्ञानियों ने अनर्थ किया......

रमेशजी, यदि इसी संदर्भ को आज के आधुनिक भाषा विज्ञानियों की मानें तो...भाषाविज्ञान जानने वाले लोग जानते हैं कि"इंडो-यूरोपियन"परिवार की सभी भाषाओं कीउत्पत्ति संस्कृत से ही मानी जाती है अथवा संस्कृतके किसी पूर्व प्रारूप से! वास्तव में फारसी में हिन्दूका भ्रष्ट अर्थ घृणा के आधार पर काफी बाद मेंकिया गया जो वैमनस्यता वश इस प्रकार किये गये अवर्थ से 'हिंदुत्व' पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वरन यह तकरीबन ५ से ६ हजार वर्ष से पुरानी "हिंदू- संस्कृति" होने का गौरव भी प्राप्त हुआ जिसे कईयों बार मिटाने के बहुत प्रयास हुये किन्तु  सभी को विफलता ही हाथ लगी..!
इस विषय पर जब और गहन अध्ययन करने की तिव्र इच्छा हुई तो मैं इसके लिये 'काशी हिंदू विश्वविद्यालय'  के ग्रंथालय में  गया तो वहां भारतीय संस्कृत साहित्य के सभी विषयों को स्पर्श करने वाले श्री माधवाचार्य जी का एक ग्रंथ मिला जिसमें आर्य धर्मेतर लेखकों द्वारा 'हिदुत्व' पर किये गये वैचारिक व लेखनी प्रहार के बारे में विशद वर्णन मिला इस ग्रंथ में हिन्दुत्व  या सनातनी कई सिद्धांतो का अपने ढंग से अर्थ का अनर्थ कर अपने फॉलोवरों के समक्ष रखा गया.......यहूदियों के लिए कुरान में कईजगह काफिर, दोज़ख़ी जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं।फारसी मे हिन्दू शब्द का ऐसा ही अर्थ "गयास-उल-लुगत" शब्दकोश के रचनाकार मौलाना गयासुद्दीनकी देन है। इसी तरह राम और देव जैसे संस्कृत शब्दोंका अन्य शब्दकोशों मे एकदम उल्टा अर्थ लिखा है।राम का अर्थ कई स्थानों पर चोर भी किया गयाहै। क्या हमारे लिए राम के अर्थ बदल जाएंगे?

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तान्त मे.....

हिन्दूशब्द मुसलमानों की अपमानपूर्ण देन है कहना नितांतअनभिज्ञता है, यह शब्द मुसलमान धर्म के आने से बहुतपहले से ही सम्मानपूर्ण तरीके से हमारे लिए प्रयोग होता रहा है। मुसलमानों से काफी समय पूर्व भारत आने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तान्त मे भारत के लिए हिंदुस्थान शब्द प्रयोगकिया है। प्राचीन शब्दकोशों जैसे रामकोश,मेदिनीकोश, अद्भुतकोष, शब्दकल्पद्रुम मे भी हिन्दूशब्द प्राप्त होता है,- "हिन्दुहिन्दूश्चहिंदव:" (मेदिनी कोश) प्राचीन ग्रन्थ बृहस्पति आगममें हिन्दू शब्द को व्यापक अर्थ में हिमालय व इन्दुसागर (हिन्द महासागर) के परिक्षेत्र से परिभाषितकिया गया है- 
हिमालयात् समारंभ्य 

यावत् इन्दुसरोवरम्। 
तद्देव निर्मितम् देशम् 
हिंदुस्थानम् प्रचक्षते॥
अर्थात, उत्तर में हिमालय से आरम्भ कर के दक्षिण में इन्दु सागर (हिन्द महासागर) तक का जो क्षेत्र है उसदेव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं। . वास्तव में आर्य शब्द हिन्दू जाति का विशेषण है (जिसका अर्थश्रेष्ठ होता है) और वेदों पुराणों में इसी अर्थ मे प्रयुक्त हुआ है, हिन्दू वीरों वीरांगनाओं ने भी स्वयंको आर्य-पुत्र या आर्य-पत्नी कह के संबोधित कियाहै आर्य नहीं। क्योंकि स्वयं के लिए विशेषण या सम्मान सूचक शब्द का प्रयोग भारतीय परंपरा नहीं रही है।

हिन्दू शब्द ही अधिक समीचीन व संगत है। इससे भीअधिक महत्वपूर्ण है कि आज आर्य या हिन्दू शब्द की बहस के अनौचित्य को समझना क्योंकि आज हमें पढ़ाया जाने वाला मैकाले सोच का भ्रष्ट इतिहास भारतीय गौरव को शर्मसार करने के लिए प्रयासरत है॥ इस संकीर्ण प्रयास के प्रतिरोध में आज यह लेखसमर्पित है। आज हिन्दू शब्द ही सम्पूर्ण विश्व में हमारी पहचान है, हमारे ज्ञान गौरव प्राचीनताऔर हमारी अमर संस्कृति की पहचान है...,

 "अतः गर्व है की हम हिन्दू हैं" 

(इस लेख का आधार भारतीय धर्मग्रन्थ व स्व. माधवाचार्य जी की पुस्तक '' क्यों '' द्वारा प्रदत्त जानकारी पर आधारीत है तथा जैसा की हमने अध्ययन किया गुरुमुख से.... उसी को शब्दशः रमेश जी को बताया )
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक - ' ज्योतिष का सूर्य ' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं. १२९९, सड़क- २६, कोहका मेन रोड, शांतिनगर, भिलाई, जिला- दुर्ग (छ.ग.)
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Pandit Vinod Choubey