ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

हे नारी तू नारायणी .......................आईए आज एक संकल्प लें

आज ८ मार्च है, और सारा विश्व नारी सशक्तीकरण का प्रतीक “अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस” मना रहा है | सर्वप्रथम तो आप सभी को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

हे नारी तू नारायणी .......................आईए आज एक संकल्प लें

कभी दुष्टों का संहार करने वाली माँ दुर्गा के रूप में, तो कभी ज्ञान का प्रसार करने वाली माँ सरस्वती के रूप में और कभी धन की वर्षा करने वाली माँ लक्ष्मी के रूप में – उसी नारी शक्ति को हम संसार में आने से पूर्व ही मार डालते हैं | आज उसी “देवी” को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है | आज का पाखण्डी समाज अपनी “जन्मदात्री” को ही जड़ से उखाड़ फेंकने में लगा हुआ है – जो कि खुद इस समाज की जड़ है, नींव है | बेटी के नाम पर सौ-सौ कसमें खाने वाले ही आज उसे कष्ट पहुँचाने में लगे हुए हैं | और उससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि बेटी को “पराया धन” मानने वालों ने उसे कभी ह्रदय से “अपना” माना ही नहीं | वह तो अपने माता पिता के घर तक में “दूसरे की अमानत” ही बनकर रही सदा | उनके होश सँभालते ही उन्हें बताया जाने लगता है कि उन्हें दूसरे घर जाना है | यहाँ तक कि बहुत से परिवारों में तो लड़की को उच्च शिक्षा भी केवल इसीलिये दिलाई जाती है कि वह एक योग्यता होगी अच्छा घर वर प्राप्त करने के लिये | और जैसा कि ऊपर भी लिखा है, ऐसा केवल अशिक्षित अथवा निम्न वर्ग में ही नहीं होता | बल्कि उच्च तथा शिक्षित वर्ग के लोग भी इसी परम्परा का वहन कर रहे हैं | यदि इस समस्या से मुक्ति पानी है तो सबसे पहली आवश्यकता है इस विषय में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने की | भ्रूण हत्या अथवा गर्भ का लिंग परीक्षण करने वालों के क्लीनिक सील किए जाने, उनका लाइसेंस निरस्त किये जाने तथा उन पर जुर्माना किए जाने के प्रावधान की आवश्यकता है । साथ ही आवश्यकता है प्रसव पूर्व जाँच तकनीक अधिनियम १९९४ को सख्ती से लागू किए जाने की । क्योंकि हमारे देश में तो हर कानून, हर सुविधा को अपने स्वार्थ के अनुसार तोड़ना मरोड़ना लोगों को अच्छी तरह आता है | यह विडंबना ही है कि जिस देश में कभी नारी को गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ, वहीं अब कन्या के जन्म पर उसके परिवार और समाज में दुख व्याप्त हो जाता है l सिर्फ बेटे की चाह में अनगिनत मांओं की कोख उजाड़ दी जाती है l पर क्या इस क्रूरता के लिए केवल डॉक्टर ही उत्तरदायी है जो प्रसवपूर्व लिंग जाँच करके इस हत्या को अंजाम देता है ? क्या वे माता पिता इस अपराध के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ बेटा ही पाना चाहते हैं ? केवल कड़े क़ानून बनाकर ही इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता | जब तक हम अपनी संकीर्ण मानसिकता का त्याग नहीं करेंगे तब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता l बेटी के जन्म लेते ही हम इस सोच में तो पड़ जाते हैं कि कल यह बड़ी होगी तो इसके हाथों में मेंहदी भी रचानी पड़ेगी, इसके लिए “योग्य वर खरीदने” के लिये दहेज़ का प्रबंध भी करना होगा | किन्तु उसे स्वावलम्बी और शिक्षित भी बनाना है इस विषय में बहुत कम लोग सोचते हैं | लड़कियों को घर की लक्ष्मी या देवी कह देने भर से उसे उसके अधिकार और सम्मान नहीं मिल जाते l महिलाओं के सामजिक बहिष्कार के रूप में कन्या भ्रूण हत्या की समस्या आज भारत में विकराल रूप ले चुकी है और आज यह हज़ारों करोड़ रुपयों का व्यापार बन चुका है | जबकि १९९४ में लिंग जाँच करके कन्या भ्रूण को समाप्त करना सरकार की ओर से गैर कानूनी क़रार दे दिया गया है |
पर इस भयावह सत्य को झुठलाया जा सकता है, बशर्ते कि हम सब मिलकर संकल्प लें कि न तो हम गर्भ में पल रहे बच्चे की लिंग जाँच कराएँगे और न अपने किसी परिचित या रिश्तेदार को ऐसा करने देंगे | साथ ही यह भी कि जो डाक्टर गर्भस्थ शिशु की लिंग जाँच करके कन्या भ्रूण की हत्या जैसा जघन्य अपराध करेंगे उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाने का प्रयास करेंगे |
-पण्डित विनोद चौबे, भिलाई

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