ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

रविवार, 16 सितंबर 2012

गणपति बप्पा मोरिया.... भगवान गणेश के स्तुति मात्र से सब काम बन जायेंगे .......


मित्रों ,गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर आप सभी देश वासियों को बधाई एवं विवेक, सदग्यान के देवता गणेश आप सभी की मनोकामना अपने परिवार सहित आपके हर मोड़ पर सहाय हों और आपको समृद्धशाली बनावें ...आईए चर्चा करते हैं गणपति आराधना की। 


सोमवार, 13 अगस्त 2012

किसको पहनना चाहिए मंगल का रत्न ''मूंगा'' ?

 किसको पहनना चाहिए मंगल का रत्न ''मूंगा'' ?

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,संपादक, 09827198828
'' ज्योतिष का सूर्य '' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
मित्रों सुप्रभातम्...
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ! तुम रक्षक काहू को डरना॥
- जो भी आपकी शरण मे आते है,उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक है,तो फिर किसी का डर नही रहता। 
आज दिन मंगलवार है....पवनपुत्र श्री हनुमानजी को सादर नमन करते हुए....आज चर्चा  करते हैं...नौ रत्नो में एक रत्न मूंगा की। मूंगा रत्न स्वभावतः मंगल ग्रह के लिए ही पहना जाता है। और आज के ही दिन अर्थात मंगलवार को ही पहनना चाहिए। अब किसे पहनना चाहिए...इस बिन्दु पर आज राशिगत विस्तृत चर्चा करेगे।कल स्वतंत्रता दिवस है। 66 वाँ स्वतंत्रता दिवस पर कल यानी 15 अगस्त 2012 को पोस्ट के माध्यम से कल वि्तृत चर्चा करने का प्रयास करुंगा फिलहाल आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की आगामी ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ..।
 
मंगल देव सभी राशि वालों पर असर डालते हैं। शुभ मंगल व्यक्ति को मेहनत और पुरूषार्थ के साथ विशेष सफलता दिलाता है और अगर मंगल अशुभ होता है तो उसे रक्त से जूड़े रोग हो जाते हैं। मंगल के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति बहुत गुस्सा करने वाला और बुरे काम करने वाला होता है। लेकिन अगर मंगल का रत्न पहनें तो मंगल के बुरे असर से बच सकते हैं। यह रत्न अशुभ प्रभाव तो कम करता ही है साथ ही इसको पहनने से कई फायदे भी होते हैं।


जानिए कैसा रहेगा आपकी राशि के लिए मंगल का रत्न मूंगा....


मेष राशि- इस राशि के व्यक्तिओं के लिए मूंगा हमेशा लाभकारी और शुभ फल दायक होता है इससे इनकी आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति तथा यश की प्राप्ति होगी क्योंकि मूंगा इस राशि के स्वामी मंगल का ही रत्न है।

वृष राशि- इस राशि के लिए मूंगा रत्न कष्टकारी होता है। इस राशि वालों को इसको पहनने से नुकसान हो सकता है।

मिथुन राशि- इस राशि वालो को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए क्योंकि इस राशि वालो के लिए मूंगा रोगों की उत्पत्ति करेगा और इसका प्रभाव उलटा पड़ेगा।

कर्क राशि- इस राशि वालो को मूंगा धारण करना अत्यंत शुभ रहेगा। यदि इस राशि वाले लोग मोती और मूंगा एक साथ धारण करें तो उन्हें सन्तान का सुख, यश, मान और प्रतिष्ठा मिलेगी।

सिंह राशि- मूंगा इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए अति उत्तम है इसके धारण करने से मानसिक शान्ति, घर तथा भूमि लाभ, धन लाभ और साथ ही यश की प्राप्ति होती है। इससे भाग्य उज्जवल होता है। इस राशि वाले यदि मूंगा रत्न माणिक्य के साथ धारण करे तो आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होने लगेगा।

कन्या राशि- इस राशि वालो को मूंगा रत्न बहुत अधिक हानिकारक है। दुर्घटनाएं और कष्ट हो सकते हैं। इससे छोटे भाइयों को कष्ट मिल सकता है।

तुला राशि- तुला राशि वालों के लिए मूंगा हानिकारक होता है। इन्हे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए इससे अल्पायु के योग बनते है। अचानक दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।

वृश्चिक राशि- इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए मूंगा धारण करना सुख-समृद्धि कारक तथा कल्याणकारी होता है। इसको धारण करने से निश्चय ही व्यक्ति की आयु में वृद्धि, स्वास्थ्य में उन्नति, तथा यश की प्राप्ति होती है।

धनु राशि- इस राशि वाले अगर मूंगा रत्न धारण करें तोसुख, यश, धन, समृद्धि मिलेगी और भाग्योदय भी होगा साथ ही सन्तान सुख के लिए यह रत्न अति उत्तम रहेगा।

मकर राशि- यदि इस राशि का व्यक्ति मूंगा रत्न धारण करे तो उसे जमीन जायदाद, वाहन, घर, धन की प्राप्ति, तथा माता का विशेष सुख प्राप्त होगा।

कुम्भ राशि- इस राशि वालो को मूंगा रत्न धारण करना वर्जित है यानी बिलकुल मना है। मंूगा छोटे भाई एवं बहनों के लिए कष्टकारी तथा सन्तान के सुख में कमी करेगा साथ ही शारीरिक कष्ट भी हो सकते है।

मीन राशि- इस राशि के लोगों के लिए मूंगा हमेशा लाभकारी होगा। यदि मूंगा पुखराज रत्न के साथ धारण करें तो भाग्य में उन्नति, धन प्राप्ति, परिवार को सुख मिलेगा।

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

वगैर सात फेरों के लाई गयीं उज्ज्वला...तिवारी के पद प्रतिष्ठा को जलाकर भस्म कर सकती है


वगैर सात फेरों के लाई गयीं उज्ज्वला...तिवारी के
पद प्रतिष्ठा को जलाकर भस्म कर सकती है

कहा जाता है कि- मनुष्य को जीवन में बहुत संभल कर चलना चाहिए.। प्रतिष्ठित व्यक्तित्व को संभलने की जरुरत होती है।  स्वामी विवेकानन्द जी के साथ भी कई बार ऐसी घटनाएँ हुईं होंगी इस लिए उन्होंने...अधिक न बोलते हुए अथवा किसी वर्ग विशेष का नाम न लेते हुए उन्होंने मात्र यही कहा कि- ''पर्वत के शिखरों से गिरा व्क्ति एक बार उठने की कोशिश कर सकता है परन्तु चरित्र भ्रष्ट व्यक्ति समाज के नजरों से गिरा हुआ कदापि नहीं उठ सकता।'' उनकी बात आज प्रासंगिक है शायद इस बात का खयाल ''श्री एन.डी.तिवारी'' जी को रहता तो यह नौबत नहीं आती।
इस पूरे प्रसंग में एक दूसरा भी पहलु है, वह है...--शास्त्रों में स्त्री को सावित्री, पूज्या और यहां तक की - ''यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता''...कह कर और महत्त्व दिया गया। किन्तु साथ ही यह भी कहा गया कि स्त्री अग्नि से भी अधिक जलाने की क्षमता वाली ''अग्निशिखा'' भी कहा गया, अर्थात् यदि आग और तिनके को एक साथ रखोगे तो निश्चित ही आग की क्षमता उस तिनके अथवा काष्ठ से अधिक होती है अतः प्रभुत्त्वशाली आग उस काष्ठ रुपी तिवारी के पद-प्रतिष्ठा को जलाकर भस्म कर देगी। यदि उसी ''अग्निशिखा'' (उज्ज्वला शर्मा) रुपी स्त्री को अग्नि के सात फेरे लगाकर घर में देवी स्वरुप लाया जाय और उससे 'रोहित' जैसा पुत्र पैदा होगा तो इस प्रकार के कोर्ट के असंख्य फेरे नहीं लगाने पड़ेंगे। मित्रों किसी भी प्रकार की फिसलन न हो इसका हमेशा खयाल रखें नहीं तो आग में ममता नहीं होती पर सात फेरे लेकर बनी माँ  के अन्दर ममता अवश्य होती है। अतएव पुनः ऐसी घटना न हो उसके लिए कोर्ट का फैसला काबिले तारीफ है जो उभयपक्षी (स्त्री-पुरुष) वर्ग के मर्यादा हेतु संबल का काम करेगा। पं.विनोद चौबे
सत्यमेव जयते नानृतं
सत्येन पन्था विततो देवयानः |
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ||६||

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

...जब भगवान कृष्ण भी अपने ही परिजनों के सामने असहाय हुए..।

...जब भगवान कृष्ण भी अपने ही परिजनों के सामने असहाय हुए..।


मित्रों सुप्रभात, कहा जाता है कि - विश्व के सभी शक्तिशाली महान योद्धाओं पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अपनों से ही हार का सामना करना पड़ता है। भगवान कृष्ण भी अपनों से हार की इस पीड़ा को देवर्ष नारद से बताकर हम सभी को संदेश देना चाहते हैं कि- ऐसा मेरे भी साथ हुआ है अतः आप सभी मेरे भक्त इस परिस्थिति से घहड़ाएं नहीं बल्कि अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, आत्महत्या करने के बजाय, समाधान कर धर्म का पालन करें।

कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा नारद कृष्ण संवाद ने कृष्ण के सम्बन्ध में कई बातें हमें स्पष्ट संकेत देती हैं कि कृष्ण ने भी एक सहज संघ मुखिया के रूप में ही समस्याओं से जूझते हुए समय व्यतीत किया होगा । मित्रों, श्रीकृष्ण मंझले भाई थे। उनके बड़े भाई का नाम बलराम था जो अपनी शक्ति में ही मस्त रहते थे। उनसे छोटे का नाम 'गद' था। वे अत्यंत सुकुमार होने के कारण श्रम से दूर भागते थे। श्रीकृष्ण के बेटे प्रद्युम्न अपने दैहिक सौंदर्य से मदासक्त थे। कृष्ण अपने राज्य का आधा धन ही लेते थे, शेष यादववंशी उसका उपभोग करते थे। श्रीकृष्ण के जीवन में भी ऐसे क्षण आये जब उन्होंने अपने जीवन का असंतोष नारद के सम्मुख कह सुनाया और पूछा कि यादववंशी लोगों के परस्पर द्वेष तथा अलगाव के विषय में उन्हें क्या करना चाहिए। नारद ने उन्हें सहनशीलता का उपदेश देकर एकता बनाये रखने को कहा।
महाभारत शांति पर्व अध्याय-82:
''अरणीमग्निकामो वा मन्थाति हृदयं मम। वाचा दुरूक्तं देवर्षे तन्मे दहति नित्यदा ॥6॥''
हे देवर्षि ! जैसे पुरुष अग्नि की इच्छा से अरणी काष्ठ मथता है; वैसे ही उन जाति-लोगों के कहे हुए कठोर वचन से मेरा हृदय सदा मथता तथा जलता हुआ रहता है ॥6॥

''बलं संकर्षणे नित्यं सौकुमार्य पुनर्गदे। रूपेण मत्त: प्रद्युम्न: सोऽसहायोऽस्मि नारद ॥7॥''
हे नारद ! बड़े भाई बलराम सदा बल से, गद सुकुमारता से और प्रद्युम्न रूप से मतवाले हुए है; इससे इन सहायकों के होते हुए भी मैं असहाय हुआ हूँ। ॥7॥
जरूरत है, इस विषम परिस्थिति में अधर्म रुपी आत्महत्या, हिंसा के अलावा समाधान की आवश्यकता है। -ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई
(आपको कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें)

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

देखना धर्मक्षेत्र में कुरुक्षेत्र सेंध न लगा दे...।भगवान शिव के विराट रुप का दर्शन

देखना धर्मक्षेत्र में कुरुक्षेत्र सेंध न लगा दे...।


''स्थित्यदनाभ्यां च ''।।1।3।7।.

 स्थित्यदनाभ्याम् - एक ही शरीर में साक्षी रुप से स्थित और दूसरे के द्वारा सुख- दुःखप्रद विषयका उपभोग बताया गया है, इसलिए, च- भी(जीवात्मा और परमात्मा का भेद सिद्ध होता है)। इसी आत्मा और परमात्मा का व्याख्या मुण्डकोपनिषद तथा श्वेताश्वरोपनिषद(4।6) में कहा गया है कि-
'' द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते। 
तयोरन्यः पिप्पलं स्वादुवत्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति।। ''
अर्थात एक साथ रहते हुए भी परस्पर सख्यभाव रखने वाले दो पक्षी (जीवात्मा और परमात्मा) एक ही शरीर रुपी वृक्ष का आश्रय लेकर रहते हैं। उन दोनों में से  एक (जीवात्मा) तो उस वृक्षके करमफलस्वरुप सुख-दुःखों का स्वाद ले लेकर (आसक्तिपूर्वक) उपभोग करता है, किन्तु दूसरा (परमात्मा) न खाता हुआ, न उपभोग करता हुआ केवल दर्शक के रुप में देखता रहता है। मित्रों इसी जीवात्मा और परमात्मा के पार्स्परिक द्वन्द्व युद्ध को महाभारत में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र का होना बताया गया जैसा कि के श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है ...धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। अर्थात मनुष्य के के साथ दोनों ही क्षेत्र सदा रहते हैं परन्तु कर्मफलगत धर्मक्षेत्र की प्रबलता नाश का कारण बनता है और धर्मक्षेत्र की प्रबलता मनुष्य को मोक्ष प्रदान कर 84 लाख योनि के भ्रमण (जन्म-मरण) से मुक्त करता है। जरुरत है ..जीवन में धर्मक्षेत्र को प्रबल बनाने की।
- पं.विनोद चौबे

 आज हरियाली अमावश्या है तो आईए मित्रों अब भगवान शिव के विराट रुप का दर्शन करने का प्रयत्न करते हैं

भगवान शिव के विराट रुप का दर्शन

जगत पिता के नाम से हम भगवान शिव को पुकारते हैं। भगवान शिव को सर्वव्यापी व लोग कल्याण का प्रतीक माना जाता है जो पूर्ण ब्रह्म है। धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ऐसा मानते हैं कि शिव शब्द की उत्पत्ति ''वंश कांतौ ''धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- सबको चाहने वाला और जिसे सभी चाहते है। शिव शब्द का ध्यान मात्र ही सबको अखंड, आनंद, परम मंगल, परम कल्याण देता है।
शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है। शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है। भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर, घुवमेश्वर हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है। कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। यूनानी, रोमन, चीनी, जापानी संस्कृतियों में भी शिव की पूजा व शिवलिंगों के प्रमाण मिले हैं। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा। भगवान शिव की महिमा प्रत्येक भारतीय से जूङा है। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती है। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक मानव के लिए जरूरी है।

जटाएं- शिव को अंतरिक्ष का देवता कहते हैं, अतः आकाश उनकी जटा का स्वरूप है, जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं।

1चंद्र- चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है।

त्रिनेत्र- शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य, तीन कालों स्वर्ग, मृत्यु पाताल तीन लोकों का प्रतीक है।

सर्पों का हार- सर्प जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन कर रखा है।

त्रिशूल- शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशुल सृष्टि में मानव भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।

डमरू- शिव के एक हाथ में डमरू है जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है।

मुंडमाला- शिव के गले में मुंडमाला है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है।

छाल- शिव के शरीर पर व्याघ्र चर्म है, व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।

भस्म- शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है शरीर नश्वरता का प्रतीक है।

वृषभ- शिव का वाहन वृषभ है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ का अर्थ है, धर्म महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष उनके अधीन है। सार रूप में शिव का रूप विराट और अनंत है, शिव की महिमा अपरम्पार है। ओंकार में ही सारी सृष्टि समायी हुई है। 


ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई, 09827198828