हिंदी पत्रकारिता दिवस पर 'हिंग्लिश' बनाम 'धनकुबेरों' का शीत युद्ध और आर्थिक विपन्नावस्था से जूझते 'हिंदी भाषी' पत्रकारों के लिए प्रदेश से लेकर केन्द्रीय सरकार भी उदासीन.....
कंधे पर खादी कपड़े का झोला टांगें, खादी का कुर्ता-पायजामा पहने एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में दो-चार कागज के पन्नों को लिये भारतीय सांस्कृतिक संरचनाओं के रक्षार्थ राष्ट्रवादी अवधारणा का जूनून, सामाजिक समरसता का धुन लिए भारतीय जनमानस को स्व-कर्तव्यों के प्रति आन्दोलित करती पत्रकारिता अब 'मॉडर्न-जर्नलिज्म' का रुख अख्तियार कर धनकुबेरों के आगोश में आ गई है ! सरकारें भी उन्हीं को पोषित करती हैं, जो उनकी चाटूकारिता में लिप्त हैं और तो और 'कागद-कलम' के दम पर भारत (राष्ट्र) को नई दिशा देने वाली यह विधा देवर्षि नारद जयंती मनाने में कतराती है और विदेशी वाम विचारधारा के पत्रकारों को अपना सिरमौर मानती है, जो ना केवल दु:खद है वरन् राष्ट्रविरोधी भी है, लेकिन क्या करेंगे उन्ही लोगों को खनिज का आवंटन होता है ऐसे लोगों को ही बड़ा पत्रकार भी माना जाता है, खैर, ऐसे पत्रकारीय अराजक तत्वों से दूर असंख्य 'राष्ट्रवादी और बेबाक पत्रकारधर्मी' आज भी हैं, जो अपने कार्य में जीवटता से लगे हुए हैं, हालांकि मैं स्वत: 'ज्योतिष का सूर्य' नामक मासिक पत्रिका, जो भिलाई से प्रकाशित होती है उसका संपादक हुं, मुझे भलि-भांति ज्ञात है कि रचनाधर्मिता पत्रकारिता, प्रकाशन से लेकर प्रसार-प्रचार तक कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है! आईए अब बात करते हैं ''उदन्त मार्तण्ड' की !🌹
आज 30 मई यानी हिन्दी पत्रकारिता दिवस। 1826 ई. का यह वही दिन था, जब पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन आरंभ किया था। 'उदन्त मार्तण्ड' नाम उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का संकेतक था जिसका अर्थ है- 'समाचार सूर्य'। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत पंडित युगल किशोर शुक्ल ने ही की थी।
हिन्दी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर तय किया। 'उदन्त मार्तण्ड' के आरंभ के समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी पत्रकारिता इतना लंबा सफर तय करेगी। युगल किशोर शुक्ल ने काफी समय तक 'उदन्त मार्तण्ड' को चलाया और पत्रकारिता की। लेकिन कुछ समय के बाद इस समाचार पत्र को बंद करना पड़ा जिसका मुख्य कारण था, उसे चलाने के लिए पर्याप्त धन का न होना। लेकिन वर्तमान की परिस्थितियां तब से काफी अलग हैं।
मीडिया जबसे धनकुबेरों के हाथ गई, और पेड-न्यूज की संस्कृति आरंभ हुई तबसे राष्ट्रवादी दृष्टिकोण की 'पत्रकारिता लोलूपतावादी पत्रकारिता में तब्दील हो गई' हालांकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बजाय आज भी प्रिंट मीडिया अधिक विश्वसनीय है, लेकिन दु:खद बात यह है कि प्रिंट मीडिया के अच्छे पत्रकार आर्थिक विपन्नता से जूझ रहे हैं, इनके लिए सरकारी तंत्र भी पूर्णतया उदासीन है! वो भी हिन्दी पत्रकारिता तो हिंदी से दूर हिंग्लिश शब्दों में सिमटकर रह गई है! डेविड क्रिस्टल जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स में एक ब्रिटिश भाषा-विज्ञानी हैं, ने २००४ में परिकलन किया कि ३५० मिलियन पर, विश्व के हिंग्लिश बोलने वाले जल्दी ही मूल अंग्रेजी बोलने वालों से अधिक हो जायेंगे हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌹🌺
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- "ज्योतिष का सूर्य' मासिक समाचार पत्र, भिलाई, मोबाइल नं- 9827198828
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