ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 2 मई 2018

वैदिक ज्योतिष में रेवती नक्षत्र का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का विशेष महत्व है! जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, वही जन्म नक्षत्र कहलाता है! सही जन्म नक्षत्र ज्ञात होने के बाद जातक के विषय में पूर्ण सत्य भविष्यवाणी की जा सकती है! भारतीय ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते है जैसे कि अश्विनी, मृगसिरा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, रेवती इत्यादि!आईए रेवती नक्षत्र के गुण व दोष के बारे में चर्चा करते हैं, साथियों,  27 नक्षत्रों में रेवती को 27 वाँ व अन्तिम नक्षत्र माना जाता है!
रेवती का शाब्दिक अर्थ है, धनवान अथवा धनी! इस नक्षत्र का स्वामी बुध है, देवता पूषा हैं, और राशि स्वामी गुरु है! गुरु बुध की युति जिस भाव में होगी वैसा फल देगा!
इस नक्षत्र से विद्या आरम्भ, गृह प्रवेश, विवाह, सम्मान प्राप्ति, देव प्रतिष्ठा, वस्त्र निर्माण इत्यादि कार्य सम्पन्न कियें जाते हैं!
जिन जातको का जन्म इस नक्षत्र में होता है तो वह बुध महादसा में जन्म लेते हैं, वे तेजस्वी, सुन्दर, चतुर, विद्वान व धन धान्य से युक्त होते हैं!                                   
इस नक्षत्र में जन्मे जातक को सरकारी नौकरी, बैंक, शिक्षा, लेखन, व्यापार , ज्योतिष एवं कला के क्षेत्र में कार्य करते देखा गया है!
परन्तु इस नक्षत्र में जन्मे जातक को अपने जीवन में माता पिता का सहयोग कभी प्राप्त नहीं होता है! मित्र रिश्तेदार कष्ट में साथ नहीं देते, परन्तु दाम्पत्य जीवन खुशहाल होता हैं! जीवन साथी पूर्ण सहयोगी होता हैं! जीवन सुखमय व आनन्दित रहता हैं!
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- *ज्योतिष का सूर्य* राष्ट्रीय मासिक पत्रिका , भिलाई, मो.नं. 9827198828

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