मेष लग्न में चंद्र चतुर्थेश है, केंद्र स्थान होने से चौथा भाव सम प्रभाव और चंद्र मंगल दोनो मित्र हैं अत: शुभ फल देता है । लेकिन सूर्य के साथ उत्तम फलप्रद माना गया किन्तु चंद्र पूर्ण हो क्षीण नहीं ! ऐसे कुण्डली वाले जातकों को हनुमद उपासना तथा सोमवार को केसर+हल्दी से शिव अभिषेक करना चाहिये ! क्योंकि मेष लग्न वालों का भाग्येश एवं द्वादशेश वृहस्पति होते हैं, केसर और हल्दी से रुद्राभिषेक भाग्य को बलवती बनाते हैं ! हां ऐसे जातकों का लीवर कमजोर हो सकता है अत: खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिये! मैंने कल एक 'मनोज' नामक व्यक्ति के कुण्डली का अवलोकन किया, भाग्येश गुरु त्रिकोणस्थ है, जिसकी वजह है वे अच्छे लेखक वक्ता एवं तिक्ष्ण प्रतिभा के धनी हैं किन्तु उनका लीवर प्रभावित है अत: इसकी वजह से वे कईयों हस्पतालों के चक्कर काटते हैं परन्तु लाभ शून्य है, मेरे निवास शांतिनगर भिलाई पर आये उनकी स्थिति देखकर हमें लगा की वे निराश हो चुके परन्तु हमने उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा को सजेस्ट किया । साथ ही पुखराज रत्न धारण करने को कहा , हालाकी वे बंकॉक वाला 'पुखराज' जरुर पहने थे किन्तु उसका कोई लाभ न मिलने से उनका 'पुखराज' से भी विश्वास टूट चुका था ! मित्रों मैं 'मनोज' जी के माध्यम से आपको बताना चाहता हुं कि वृहस्पति के लिये 'पुखराज रत्न' जब भी धारण करें 'शिलोनी पुखराज रत्न ही धारण करें !
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांति नगर, भिलाई, जिला- दुर्ग, छत्तीसगढ़ मोबा. नं. 9827198828
http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2018/04/blog-post_6.html?m=1
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें