कब है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, एवं पूजन विधी..-
ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,
भिलाई, मोबाईल नं. 9827198828
वैसे तो होलिका का स्तम्भारोपण वसन्त पंचमी को ही हो जाता है, उसके बाद गांव में फाग गीतों की शुरूआत हो जाती है...सा च सायाह्नव्यापिनीग्राह्या।
प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या पौर्णिमा फाल्गुनी सदा।। तस्या भद्रामुखं त्यक्त्वापूज्या होला निशामुखे। इदम् भद्रायां न कार्यं प्रतिपद्भूत भद्रा सुयार्चिता होलिका दिवा।।
के अनुसार भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये।
पूजन सामग्री: रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, उपल आदि। कृपया इस होलिका में कचड़ा ना डालें।
किसी साफ और स्वच्छ जगह गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर पवित्र गंगा जल से पहले उस स्थान को शुद्ध कर लेना चाहिए। ध्यान रखे की पूजन करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में हो ।
सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में सही मुहर्त पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है। ध्यान रहे यह समय भद्रा के बाद का ही हो। अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक है। इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली, मौली, अक्षत, पुष्प अर्पित करें। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली, मौली, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।
इसके पश्चात् हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं।
विधी
विधि पंचोपचार की हो तो सबसे अच्छी है। पूजा में सप्तधान्य की पूजा की जाती है जो की गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका के समय नयी फसले आने लग जाती है अत: इन्हे भी पूजन में विशेष स्थान दिया जाता है। होलिका की लपटों से इसे सेक कर घर के सदस्य खाते हैं और धन धन और समृधि की विनती की जाती है। होलिका के चारो तरफ तीन या सात परिक्रमा करे और साथ में कच्चे सूत को लपेटे।
विधी
विधि पंचोपचार की हो तो सबसे अच्छी है। पूजा में सप्तधान्य की पूजा की जाती है जो की गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर। होलिका के समय नयी फसले आने लग जाती है अत: इन्हे भी पूजन में विशेष स्थान दिया जाता है। होलिका की लपटों से इसे सेक कर घर के सदस्य खाते हैं और धन धन और समृधि की विनती की जाती है। होलिका के चारो तरफ तीन या सात परिक्रमा करे और साथ में कच्चे सूत को लपेटे।
होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए–
“अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:!
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:”
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.
होलिका दहन मुहूर्त – 18:23 से 20:23
भद्रा का पूच्छ भाग का समय :
04:11 से 05:23
भद्रा के मुख भाग का समय :
05:23 से 07:23
पूर्णिमा तिथि आरंभ –
20:23 बजे (11 मार्च 2017)
पूर्णिमा तिथि समाप्त –
20:23 बजे (12 मार्च 2017)
रंग और गुलाल की होली – 13 मार्च
2017 मित्रों, आप सभी से विनम्र निवेदन है कि विषाणु युक्त रंग या गुलाल का प्रयोग ना करें, साथ ही जल बचायें, जल ही जीवन है साथ ही विशेष निवेदन किसी भी हिन्दु पर्वों पर नशा या फिर हिंसा बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिये। आपसी सद्भाव, भाईचारे और कई प्रकार के घर में बने स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ होली का यह पर्व मनायें।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- " ज्योतिष का सूर्य " राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ । मोबाईल नं- 9827198828
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