शिक्षा मे क्षेत्र / विषय चयन करने में ज्योतिष उपयोगी हो सकता है....
शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिष की उपयोगिता अत्यंन्त महत्वपूर्ण है । किस विद्यार्थी के लिए क्या विषय उपयुक्त होगा यह जानकारी देने वाला एक मात्र ज्योतिष शास्र है। कौन सा कौन सा जातक किस किस विषय में पारंगत हो सकता है, यह ज्योतिष से ज्ञात किया जा सकता है । जैसे विद्या प्राप्ति के लिए प्रबल योगकारक ग्रह सूर्य हो तो उच्च शिक्षा का योग बनता है । यदि विद्या स्थान मे
सूर्य - कुम्भ, मिथुन व तुला राशि में हो तो कानुन से संबधित विषयो (फौजदारी ) में सफलता प्राप्त होती है । यदि यही सूर्य धनुं एवं मेष राशि मे हो तो भाषा विषय (आर्टस) में अधिक सफलता प्राप्त होती है। सामान्य रूप से सूर्य भाषा व कानूनी मे सफलता देता है ।
हालॉकि उपरोक्त ज्योतिष सिद्धांत के संविधान सूत्रों से अलग मेरा स्वयं का मन्तव्य है कि कल हमारे भिलाई स्थित ज्योतिष कार्यालय मे 5 जनवरी 2017 को एक अद्भुत कुंडली देखने को मिली जिसमें तृतीयस्थ सूर्य उच्च के हैं , पंचमेश बुध भी साथ है, इसका मतलब इस जातक को आईटी सेक्टर में होना चाहिये, लेकिन इससे अलग वे "राजभाषा विभाग, भारत सरकार में उच्चपद पर" पदस्थ हैं, मैं हतप्रभ था। उनसे मैंने कहा कि आपको परमाणु उर्जा यानी रासायनिक मामलों के अनुसंधान कर्ता होना चाहिये लेकिन ठिक विलग आपका क्षेत्र कैसे है। तो मित्रों इस उलफेर का कारण यह था कि पंचम भावस्थ मंगल और वृहस्पति जातक को परमाणु वैज्ञानिक की जगह "भाषा वैज्ञानिक" बना दिया। अब आईये अन्य ग्रहों के विषयगत ग्रहयोगों को समझने का प्रयास करते हैं।
चन्द्र मन का कारक ग्रह है । यदि चन्द्र कर्क का प्रथम स्थान मे हो तो शास्त्रीय विषयो में अधिक सफलता देता है ।
मंगल सामान्य रूप से ईन्जीनियरिंग से संबंघित विषय डोक्टरी, तथा आई.ए.एस इत्यादि सफलता देता है ।
बुध वाणिज्य, अकाउन्टिंग, शिक्षा, सी.ए.एवं सी.एस. इत्यादी मे सफलता देता है ।
गुरु पंचम मगत हो तो मानव शास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अधिक सफलता देता है । यदि यह वृष, कन्या व मकर राशि मे हो तो जिओलॉजी, बायोलॉजी तथा कृषि विज्ञान में सफलता देता है । साथ में मगंल बुध इत्यादी ग्रहो का भी बल प्राप्त हो तो डॉक्टरी क्षेत्र मे सफलता प्राप्त होती है ।
शुक्र मनोरंजन तथा कलाकारिता सम्बन्धित विषयो जैसे नाट्यकला, फिल्म म्युजिक तथा कविता-कथा इत्यादी मे सफलता है।
शनि स्वभाव से ही मन्द गति का है । अतः विद्या स्थान में हो तो विद्या प्राप्ति में विलम्ब करता है । विशेष रूप से मेष, वृश्चिक, कर्क एवं सिंह राशि में हो तो । इसके अतिरिक्त योगकारक हो तो - रसायणशास्त्र, यन्त्रविद्या, तन्त्रादि गूढ विद्या देता है ।
राहु एवं केतु शनि की तरह ही विद्या मे रुकावट व विलम्ब करते है । परंन्तु गूढ विद्या, भूगर्भशास्त्र, यन्त्र - तन्त्र शास्त्र तथा लेखन कला में निपुण बनाता है । पेन्टींग, फोटोग्राफी, चित्रकला, इत्यादी में भी सफलता देता है। अतः ज्योतिष शास्त्र से समय में ही विषय चयन इत्यादी में सहायता प्राप्त हो सकती है ।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, रावण संहिता विशेषज्ञ एवं संपादक-"ज्योतिष का सूर्य " राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाउस नं. - 1299, सड़क-26, शांतिनगर, भिलाई, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़
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