हिन्दु, हिन्दुत्व और इष्टदेव की साधना तथा प्राच्य ज्योतिष.....
"ज्योतिष के सरलीकरण का मतलब ये नहीं प्राच्य ज्योतिष के श्लोकबद्ध सिद्धांत-सूत्रों को तोड़-मरोड़ कर रखा जाय...यह बर्दाश्त नहीं ..."
साथियों,
पारम्परिक ज्योतिषियों को छोड़ जहां आजकल के कुछ मुठ्ठी भर कथित ज्योतिषीयों द्वारा ज्योतिष को अपने अपने ढंग से अलग-अलग फलकथनाध्यायों में पॉकेट-बुक्स के माध्यम से जिस ज्योतिष के रूप-स्वरूप तथा भ्रान्तिपूर्ण योगायोगों को परिभाषित किया जा रहा है, उससे में थकित, चकित और हतप्रभ हुं। कि आखिर ये लोग ज्योतिष को और कितना नुकसान पहुंचायेंगे, हालाकि यह शास्वत शास्त्र है, जिसको कोई आंच नहीं आ सकता। हां, आम जनमानस भ्रमित हो अवश्य जाता है, जिससे इस विधा से लोगों अनास्था बढ़ने के आसार पुख्ता होने लगते हैं।
इस लेख मे मैं अपने जीवन से जड़ी एक घटना का भी जिक्र करूंगा मैं अपने जन्म स्थान यूपी के जनपद देवरिया में स्थित मौना गढ़वां से वाराणसी की यात्रा में था। बीच में एक स्टेशन पड़ता है मऊ जं., वहां एक एक बंधु सवार हुये। चर्चा चल पड़ी उन्होंने कहा कि फलित ज्योतिष से जुड़े कई अलग-अलग ग्रंथों का अध्ययन किया लेकिन हर ग्रंथों मे फलकथन भिन्न मिला ऐसे में जातक को किस प्रकार से सटीक फलकथन कर संतुष्ट किया जाय ? मित्रों यह बात तो सही है भृगु संहिता, वृहदज्जातकम्, जातकपारिजात, षटपंचासिका (कुंजी), पराशर संहिता सहित तमाम ग्रंथों में द्वादश भाव तथा भावस्थ ग्रहों के फल कथन में ना केवल भिन्नता है बल्कि कई योगों को लेकर मत मतांतर भी हैं। मैने उनसे कहा कि बंधुवर, अभीतक पिछले १६ या १७ वर्षों के अध्ययन में पाया कि- ज्योतिष तो त्रिस्कन्ध है यानी इसके तीन प्रमुख स्तम्भ हैं – गणित (होरा), संहिता और फलित | केवल फलित पढ़ कर, मुझे नहीं लगता कि मैं ज्योतिष का ज्ञान ले सकता हूँ | ज्योतिष का तो अर्थ ही ज्योति पिंडो का अध्ययन है, केवल कुंडली बांचने से मैं ज्योतिषी नहीं बन सकता | मेरा मानना है कि यही कारण है की बहुत से ज्योतिषियों की भविष्यवाणी ६०% सही और ४०% गलत या प्रायः गलत होती हैं |
ज्योतिष की वगैर पारंगतता और ईष्टदेव की कृपा एवं फलकथन में पराश्रयी कभी सटीक दैवज्ञ नहीं बन सकता। हमारी चर्चा अब मुकाम की ओर बढ रही थी, इधर ट्रेन भी वाराणसी जंक्शन पहुंचने वाली थी। मैने उनसे कहा कि जिस प्रकार हर महाभारत का अध्ययन करने वाला "टेस्ट-ट्यूब-बेबी" का आविष्कारक नहीं बन सकता।
प्रसंगवश मुझे उस वैज्ञानिक की बात याद आ रही है जिसने "टेस्ट-ट्यूब-बेबी" की खोज की थी। उन्होंने अपने जीवन काल के ४दशक का समय इस शोध में व्यतीत किया तदुपरान्त सफलता मिलने के बाद उनसे प्रेस रिपोर्टर ने पूछा कि - आपने इस विषय पर रिसर्च किस पद्धति या बुक से किया ? तो उन्होंने तपाक से जबाब दिया कि - भारतीय धर्मग्रंथों में एक ग्रंथ है जिसका नाम है 'महाभारत' । मैने 'महाभारत' के आदिपर्व में धृतराष्ट्र की पत्नि गांधारी द्वारा महर्षि व्यास के बताये अनुसार वीर्य संग्रह के १०० टुकड़े कर अलग अलग पात्रों में रखा गया और किसी भी वस्तु के १०० टुकड़े किये जायेंगे तो वह १०१ हो ही जायेंगे, और परिणाम १०० कौरव तथा उनकी १ बहन का जन्म हुआ" इसी कथा को मैंने बार-बार पढा और उस पर ४० वर्षों तक लगातार अध्ययन किया तब जाकर यह सफलता मिली मैं इस उपलब्धि को महाभारत को समर्पित करता हुं।
उन्होंने आगे कहा कि मैंने ज्ञान-समुद्र महाभारत का ४० वर्षों तक लगातार गोता लगाया तब जाकर मैं मात्र एक मोती चुन पाया हुं।
कहने का मतलब यह था कि, आज जिस प्रकार के ज्योतिष के सरलीकरण के प्रतिस्पर्द्धा में वैदिक गणीतिय ढांचे को तहस-नहस किया जा रहा है वह ना केवल चिन्तनीय बल्कि निन्दनीय भी है।
सीधे कुंडली पढना, जल्दी से जल्दी फलित बांचना, बस यही ज्योतिष का अर्थ रह गया है |
वादी व्याकरणं विनैव विदुषां
धृष्टः प्रविष्टः सभां
जल्पन्नल्पमतिः स्म्यात्पटुवटुभङ्ग्वक्रोक्तिभिः |
ह्रीणः सन्नुपहासमेति गणको गोलानभिग्यस्तथा
ज्योतिर्वित्सदसि प्रगल्भगणकप्रश्नप्रपन्चोक्तिभिः ||
अर्थात – जिस प्रकार तार्किक व्याकरण ज्ञान के बिना पंडितों की सभा में लज्जा और अपमान को प्राप्त होता है, उसी प्रकार गोलविषयक गणित के ज्ञान के अभाव में ज्योतिषी ज्योतिर्विदो की सभा में गोलगणित के प्रश्नो के सम्यक् उत्तर न दे सकने के कारण लज्जा और अपमान को प्राप्त होता है |
आज भारतेतर देशों में ज्योतिष के प्राच्य सिद्धांत-सूत्रों के संस्कृत श्लोकों से छेड़-छाड़ नहीं किया जाता, वरन एक-एक संदर्भों पर विशेष पारखी नजर से शोध किया जाता है। और प्राप्त परिणामों के संदर्भ-सूत्रों को नयी तकनीकि से जोड़कर उसका टेक्नीकल वेश (आधार) बनाकर एक के बाद एक नयी नयी खोज कर आसमां से भी ऊपर खगोल की गहराईयों तक अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहे हैं। वहीं भारत के हम रहवासियों ने ज्योतिष का संदर्भ ही बदल डाला है। जो विद्वद् समाज को एक जूट हो लगाम लगाने की आवश्यकता है।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक -"ज्योतिष का सूर्य" राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, हाऊस नं. - 1299, सड़क- 26, शांतिनगर, भिलाई, जिला- दुर्ग, छत्तीसगढ़-490023
Mod.no.-9827198828
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