....यह एक ऐसी जीवनगाथा जो देती है सच्ची प्रेरणा…...तो एक बार अवश्य पढ़कर मनन करें........
आदरणीय प्रकाश केलकर जी को नमन करते हुए उनके इस सोच ने ना केवल हमें प्रेरणा देने का काम किया है बल्कि शासकीय धन का दुरूपयोग करने वाले अधिकारी, कर्मचारी तथा घोटालेबाज नेताओं को "त्याग" का अहसास कराता है।
...बिना पत्नि कथम् धर्म:..... बिना पत्नि के कोई धर्म, दान आदि का कार्य सफल नहीं होता...पण्डित विनोद चौबे, भिलाई के अनुसार सनातन धर्म ग्रंथों में "दान" का विशेष महत्त्व है। दान करते समय पत्नि का सहभागिता भी आवश्यक है।
पुणे निवासी आदरणीय प्रकाश जी केलकर की पत्नि की भी स्विकृति है...आगे पढिये पूरी स्टोरी
जीवनके आखिरी दिन सुकून से गुजरे इसके लिए हर आदमी सारी जिंदगी पैसा कमाता है। सारी उम्र यही पुणे के 73 साल के प्रकाश केलकर ने भी किया। लेकिन अब उन्होंने अपनी सारी कमाई जवानों, किसानों और कुछ एनजीओ को देने का फैसला किया है।
इसके लिए एक करोड़ रुपए की वसीयत भी तैयार कराई है। इसमेंं कमाई के दान का विवरण दर्ज है। उनकी इस वसीयत में उनकी पत्नि की भी सहमति है। प्रकाश केलकर का वसीयत के संबंध में कहना है कि वे कपड़ा व्यवसाय करते रहे हैं। इस दौरान कपास खरीदी के लिए उन्हें गांवों में जाना पड़ता था। जहां उन्होंने किसानों की समस्याओं को निकट से देखा था। उनका शोषण भी होते देखा था। अब जीवन के अंतिम समय में उन्हीं बातों को याद करके अपनी पूरी कमाई को दान करने का निर्णय किया है।
यह पैसा किसानों,जवानों के सहयोग के लिए खर्च होगा। प्रकाश की वसीयत के मुताबिक उनकी मौत के बाद एक करोड़ रुपए में से 30 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री राहत कोष और 30 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री राहत कोष में जाएगा। 30 फीसदी हिस्सा जवान और किसानों की मदद में खर्च होगा। जबकि 10 फीसदी हिस्सा एनजीओ को दिया जाएगा।
...बिना पत्नि कथम् धर्म:..... बिना पत्नि के कोई धर्म, दान आदि का कार्य सफल नहीं होता...पण्डित विनोद चौबे, भिलाई के अनुसार सनातन धर्म ग्रंथों में "दान" का विशेष महत्त्व है। दान करते समय पत्नि का सहभागिता भी आवश्यक है।
पुणे निवासी आदरणीय प्रकाश जी केलकर की पत्नि की भी स्विकृति है...आगे पढिये पूरी स्टोरी
जीवनके आखिरी दिन सुकून से गुजरे इसके लिए हर आदमी सारी जिंदगी पैसा कमाता है। सारी उम्र यही पुणे के 73 साल के प्रकाश केलकर ने भी किया। लेकिन अब उन्होंने अपनी सारी कमाई जवानों, किसानों और कुछ एनजीओ को देने का फैसला किया है।
इसके लिए एक करोड़ रुपए की वसीयत भी तैयार कराई है। इसमेंं कमाई के दान का विवरण दर्ज है। उनकी इस वसीयत में उनकी पत्नि की भी सहमति है। प्रकाश केलकर का वसीयत के संबंध में कहना है कि वे कपड़ा व्यवसाय करते रहे हैं। इस दौरान कपास खरीदी के लिए उन्हें गांवों में जाना पड़ता था। जहां उन्होंने किसानों की समस्याओं को निकट से देखा था। उनका शोषण भी होते देखा था। अब जीवन के अंतिम समय में उन्हीं बातों को याद करके अपनी पूरी कमाई को दान करने का निर्णय किया है।
यह पैसा किसानों,जवानों के सहयोग के लिए खर्च होगा। प्रकाश की वसीयत के मुताबिक उनकी मौत के बाद एक करोड़ रुपए में से 30 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री राहत कोष और 30 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री राहत कोष में जाएगा। 30 फीसदी हिस्सा जवान और किसानों की मदद में खर्च होगा। जबकि 10 फीसदी हिस्सा एनजीओ को दिया जाएगा।
मां से मिली प्रेरणा
प्रकाशकी मां समाजसेवा करना चाहती थी मां के हाथ जब भी पैसा आता तो वो गरीबों के लिए, समाज के लिए खर्च करती थी प्रकाश के पिता नाना केलकर पुरो जमाने के जानेमाने चित्रकार थे प्रकाश की प|ी दीपा हाउसवाइफ है, समाजकार्य मे लगी रहती है प्रकाश की दो विवाहित बेटियां है, एक पुणे मे तो दूसरी अमेरिका मे सेटल है प्रकाश ने बताया, समाजकार्य की प्रेरणा मां से मिली मेरी मां हमेशा गरीबों के बारें मे सोचती थी प्रत्येक गरीब को हर रोज दो वक्त की रोटी मिले ये उनकी विचारधारा थी
प्रकाशकी मां समाजसेवा करना चाहती थी मां के हाथ जब भी पैसा आता तो वो गरीबों के लिए, समाज के लिए खर्च करती थी प्रकाश के पिता नाना केलकर पुरो जमाने के जानेमाने चित्रकार थे प्रकाश की प|ी दीपा हाउसवाइफ है, समाजकार्य मे लगी रहती है प्रकाश की दो विवाहित बेटियां है, एक पुणे मे तो दूसरी अमेरिका मे सेटल है प्रकाश ने बताया, समाजकार्य की प्रेरणा मां से मिली मेरी मां हमेशा गरीबों के बारें मे सोचती थी प्रत्येक गरीब को हर रोज दो वक्त की रोटी मिले ये उनकी विचारधारा थी
झोपड़पट्टी के कंपाउंडर
प्रकाशकेलकर का कहना है कि वे अपना बाकी जीवन समाजसेवा करते हुए गुजारेंगे। कभी पुणे के चौराहों पर ट्रैफिक कंट्रोल तो कभी झुग्गी में बच्चों को पढ़ाने चले जाते हैं। यहां के लोगों को वे दवाइयां भी मुहैया कराते रहते हैं। लोग उन्हें झोपड़ पट्टी का कंपाउंडर के नाम से जानते हैं।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई
प्रकाशकेलकर का कहना है कि वे अपना बाकी जीवन समाजसेवा करते हुए गुजारेंगे। कभी पुणे के चौराहों पर ट्रैफिक कंट्रोल तो कभी झुग्गी में बच्चों को पढ़ाने चले जाते हैं। यहां के लोगों को वे दवाइयां भी मुहैया कराते रहते हैं। लोग उन्हें झोपड़ पट्टी का कंपाउंडर के नाम से जानते हैं।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई
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