ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 13 अप्रैल 2016

मर्यादा पुरुषोत्तम राम और रामराज्य की परिकल्पना में हम भागीदार कैसे बन सकते हैं.....

 
मर्यादा पुरुषोत्तम राम और रामराज्य की परिकल्पना में हम भागीदार कैसे बन सकते हैं.....


मित्रों आप सभी को श्रीरामनवमी के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ....साथ ही मुझे विश्वास है कि 15 अप्रैल 2016 श्रीरामनवमी के महापर्व पर आप अपने  जीवन में  श्रीरामचरित के एक अथवा अधिक जीवनोपयोगी सिद्धांत सूत्र को धारण अवश्य करेंगे.....क्योकि जब हम श्रीराम के मार्ग पर चलेंगे तो ही भारत में रामराज्य की कल्पना कर सकते हैं....परोपकाराय सतां विभूतयः....परहित सरिस धर्म नही भाई...आदि......


ज्योतिष के अनुसार एक लाख अढ़तीस हजार वर्ष पूर्व अयोध्या नरेश राजा दशरथ के यहाँ प्रभु श्रीराम का अवतरण हुआ। श्रीराम एक अच्छे शासक, तो एक पिता के आज्ञाकारी पुत्र तो गुरु वशिष्ठ के अच्छे शिष्य थे।  आज के भारतीय परिवेश श्रीराम का चरित्र चित्रण करते हुए लगभग सभी कवि, साहित्यकार तथा वेदान्तीय विद्वद्जनों ने एक स्वर में आदर्श का प्रतीक माना। आखिरकार ऐसी क्या खूबी थी जो श्रीराम को आदर्श का प्रतीक माना गया साथ ही उनके 16 हजार वर्ष के राज्यशासन को भारतीय संस्कृति समरसता, समभाव आपसी भाईचारा के अलावा सुखपूर्ण जीवन जीने की सीख देने वाला रामराज्य भारत के लिए स्वर्णिम युग था। आज उन्हीं के आदर्शों पर चलने के लिए हम सभी आतुर हैं, श्रीराम चरित का जीवन में अवगाहन करने वाले वास्तव में सुखी हैं, लेकिन जो रामनाम की चादर ओढ़े केवल आडंबर तले अपनी बाबागिरी दिखाते हैं वे जनसामान्य से भी दुखी हैं, मित्रों वफादारी के साथ यदि स्वयं का आकलन करते हुए श्रीराम के सिद्धांतसूत्रों को जीवन में चरितार्थ किया जा तो निश्चित ही हमें श्रीराम रुपी सुखरसपूर्ण अनुभूति होगी।
आईए ज्योतिष की दृष्टि से भगवान सूर्य का चरित्र-चित्रण करके देखा जाय आखिरकार ऐसे महानपुरुष के अन्दर ऐसा पुरुषार्थ आने की मूल वजह क्या थी।  सूर्यवंशीय श्रीराम चैत्र शुक्ल, नवमी, दिन को ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त में अवतीर्ण हुऐ। भगवान श्रीराम की कुण्डली में सूर्य, मंगल, गुरू, षनि उच्च राशिगत तथा चन्द्र स्वक्षेत्री थे। भगवान राम का जन्म चर लग्न में हुआ। उनकी जन्म पत्रिका कें चारों केन्द्रों में उच्च के ग्रह पंच महापुरूष के योग, का निर्माण कर रहे है। वृृहस्पति से हंस योग, षनि से षष योग, मंगल से रूचक योग का निर्माण हो रहा है। लग्नस्थ कर्क राषि गत गुरू और चंद्र गजकेसरी योग। कर्क लग्न में सप्तमस्थ उच्च राषिगत मंगल पंचमेष और राज्येष बन कर प्रबल राजयोग बना रहा है सूर्य उच्च राषिगत होकर राज्य भाव (कर्म भाव) में होने से भगवान राम चक्रवर्ती बने। उन्होने युगों तक राज्य किया। भगवान श्रीरामचन्द्र जी की जन्म कुण्डली पर अपनी अल्प बुद्धि से ज्योतिषीय विवेचना का प्रयास किया। विद्वतजनों से आग्रह है त्रुटियों को क्षमा करें। भगवान श्रीराम के जन्मदिन पर प्रस्तुत हैं बड़े विनम्र भक्तभाव से यह ज्योतिषीय कलेवर, कौतुकता से इसे निहारें। भगवान श्रीराम दीर्घकाल तक सभी जातकों की रक्षा करें।

भगवान श्रीराम जन्मांक चक्र का अवलोकन करें....
भगवान श्रीराम की कुण्डली के दसम भवन में सूर्य उच्च राषि में विराजमान हैं। सूर्य देव 12 कलाओं में मर्यादित हैं फलत: श्रीराम का चरित्र मर्यादित है। इसलिये उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम भी कहा गया है। वे सत्य वक्ता थे। उनके मुख से जो वचन निकल गया वह सत्य होता था। पूर्ण होता था। अमोघ होता था। महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाहि पर वचन नहीं जाही। सूर्य, दसम भवन में राज्य, कीर्ति का कारक ग्रह भी हैं अस्तु प्रभु राम चाहें वे अयोध्या में रहे हो या अपने विद्याकाल में गुरू वसिष्ठ के गुरूकुल में अथवा वन में या चक्रवर्ती सम्राट के रूप में अयोध्या में रहे हों। उनकी यष, कीर्ति न्याय व्यवस्था मानव सभ्यता में सदैव स्तुत्यनीय तथा अनंतकाल तक कीर्ति पताका दिग्दिगंत तक फहराती रहेगी। दषरथ पुत्र राम की जन्म कुण्डली में चन्द्र देव स्वक्षेत्री कर्क लग्न में उच्च राशिगत देव गुरू वृहस्पति के साथ विराजमान होकर कह रहे है कि यह जातक तन, मन से विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न होकर सुदर्षनीय तो होगा ही साथ ही, षील तत्व, स्वभाव कार्यकुषलता की दृष्टि से एक ऐेसे विराट व्यक्तित्व का धनी होगा, जिसे विष्व मानव समाज श्रद्धामयी दृष्टि से अपलक निहारता हुआ राममय हो जायेगा।

द्वितीय भाव (कोष भाव) 
: भरताग्रज राम की कुण्डली के द्वितीय भवन का स्वामी नवग्रहों का राजा सूर्य विराजमान है, सूर्य कुलभूषण श्री राम इक्ष्वाकु वंश की महानता को कलकल करती गंगा की तरह सदैव यषस्वी बनाये रखेंगे। द्वितीय भवन  ज्योतिषीय गंरथों में द्वितीय भवन से जातक के नाक, कान, नेत्र, मुख, दंत, कण्ठ स्वर, सौन्दर्य, प्रेम आदि से जातक के व्यक्तित्व को देखा जाता है। भगवान श्रीराम सौन्दर्य की अदभुत प्रतिमा तथा प्रेम के अर्थ को समझने के लिए तीनों माताओं के प्रति श्रद्धा, भाईयों के प्रति अगाध स्नेह, सुमंत से लेकर समस्त अयोध्यावासियों के प्रति कर्तव्यपरायणता, सुग्रीव, विभीषण आदि अनगिनत मित्रों के प्रति चिरस्मरणीय स्नेहमूर्ति तथा भार्या जनकनंदिनी सीता के प्रति अलौकिक प्रीति ने ही उन्हें लंकापति रावण से युद्ध की अनिवार्यता स्वीकारी थी।

तृतीय भवन - पवन पुत्र हनुमानजी के इष्ट प्रभु श्रीराम की कुण्डली के तृतीय भवन में कन्या राषिगत स्वक्षेत्री राहु विराजमान है। तृतीय भवन बन्धु , पराक्रम, षौर्य, योगाभ्यास, साहस आदि का मीमांसा का गृह है। भगवान श्रीराम का षौर्य, पराक्रम तो राम रावण के भीषण युद्ध में परिलक्षित होकर सदैव अविस्मरणीय रहेगा। भ्रात प्रेम में तो प्रभु श्रीराम का भरत प्रेम, जो समस्त प्रेमों की ज्ञानगंगा है।
चतुर्थ भाव (मातृ भाव) -  कौशल्यानंदन श्रीराम की जन्म कुण्डली के चतुर्थ भवन में तुला राशि में उच्च राशिगत शनिदेव विराजमान हैं ज्योतिष ग्रंथों में चतुर्थ भवन से व्यक्ति के अन्त:करण, सुख, षान्ति, भूमि, भवन बाग बगीचा, निधि, दया, औदार्य, परोपकार, मातृ सुख आदि का निरूपण जातक की जीवन शैली में देखा जा सकता है।  प्रभु श्रीराम की कुण्डली का चतुर्थेश शुक्र, भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान है। उच्च राशिगत शनि प्रभु श्रीराम से मर्यादित जीवन के प्रति आग्रहशील हैं। भूमि, भवन का सुख तो चक्रवर्ती राजा के लिए सहज सुलभ हैं। अन्त:करण की दृष्टि से सर्वत्र प्रेम का अनुग्रह तथा दया और औदार्यता महार्षि गौतम की पत्नि अहिल्या को श्रापमुक्त कर पाषाण से नारी रूप प्रदान करना तथा शबरी के जूठे बेर खाना औदार्यता का सुखद पक्ष है। मातात्रय कैकयी कौशल्या, सुमित्रा के प्रति मातृ भक्ति सदैव स्तुत्य एवं प्रेरणास्पद रहेगी।
पंचम भाव (संतान एवं जनाधार) - लव कुश के पिता प्रभु श्रीराम की जन्म कुण्डली में पंचम भवन में वृश्चिक राशि है। वृष्चिक राशि का स्वामी मंगल सप्तम भवन में उच्च राशि में (मकर में )  विराजमान है। पंचम भवन से जातक की संतान, स्थावर जंगम, हाथ का यश, बुद्धि चातुर्य, विवेकशीलता, सौजन्य तथा परीक्षा में यश प्राप्ति से जुड़ी है। लव कुश के रूप में महान प्रतापी पुत्र तथा स्थावर संपत्ति के रूप अयोध्या का चक्रवर्ती साम्राज्य एवं अपनी बुद्धि विवेक के बल सीता की खोज में सुग्रीव से मित्रता, लंका विजय में लंकापति रावण के अनुज विभीषण का युद्ध के पूर्व लंकापति बनाने के लिए राजतिलक करना तथा मर्यादा में रहते हुए खर दूषण, कुम्भकरण, लंकापति रावण से लेकर अनेक आतातायी असुरों का वध कर रामराज्य की स्थापना करना बुद्धिचातुर्य की रहस्यमयी परिणिति के सिवा और क्या है ?

अजात शत्रु प्रभु श्रीराम.....
षष्टम् भाव (शत्रुभाव) - श्रीराम की जन्म कुण्डली षष्टम् भवन धनु राशि अवस्थित है। षष्टम् भवन रोग, शत्रुओं से जातक की कथा व्यथा का सांकेतिक है। इस भाव से शत्रु कष्ट के अभाव से जुड़े प्रश्नों की रहस्यमयता को उजागर करते है। श्रीराम की कुण्डली का षष्ठेश धनु राशि के स्वामी देव गुरू वृहस्पति लग्न भवन में कर्क राशिगत चन्द्रमा के साथ अपनी उच्च राशि (कर्क) में विराजमान होकर गजकेसरी योग बना रहे हैं। जिसका सामान्य भाषा में अर्थ है: वनराज सिंह हाथियों को अपनी एक हुंकार (गर्जना) में भगा देता है। गज याने हाथी, केशरी अर्थात् सिंह। गुरू विश्वामित्र से शस्त्र शिक्षा में अनेक रहस्यमयी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। जिसका सर्वप्रथम प्रयोग ताड़का और सुबाहु के बध के रूप में घटित हुआ। श्री रामचंद्र जी ने जहॉ जहॉ अपने पग रखे, वहॉं उन्हें यश मिला। शत्रु विजय सीता स्वयंवर से लेकर खरदूषण तथा वानरराज बालि तथा दशानन रावण तक अनेक शक्तिशाली अपराजेय योद्धाओं का वध किया।

तुलसी की रामचरित मानस में
खरदूषण मो सम बलबन्ता। मार सकें न बिनु भगवन्ता।
   रावण संहिता में दशानन रावण ने धनु राशिगत षष्टम् भवन की व्याख्या  करते हुये लिखा है ऐसा जातक शत्रुओं का घमण्ड चूर करने वाला तथा अपने बड़ों को मान देने वाला होता है। त्रेतायुगीन राम ने धरती पर आसुरी षक्तियों का तो नाश किया साथ ही अपने गुरूओं, ऋषियों मुनियों को यथेष्ठ सम्मान देकर उनका मान भी बढ़ाया है। सीता पति रघुनन्दन श्री राम सप्तम भवन: रघुनन्दन श्रीराम की जन्म कुण्डली के सप्तम भवन में मकर राशि में उच्च राशि गत भूमि पुत्र मंगल विराजमान हैं। सप्तमस्य मंगल होने से श्रीरामजी की कुण्डली मंगली बन गई। मंगल पंचमेश और राज्येश है। गजकेसरी योग की सप्तम दृष्टि दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावित कर रही है। जनकनंदिनी सीताजी से उनका विवाह धनुषभंजन के बाद विवाह हुआ। किन्तु भूमि पुत्र मंगल उच्चासीन होकर कह रहे है। जातक को दाम्पत्य जीवन का सुख तो दूंगा, किन्तु अल्पकालीन।

सप्तम भाव (पत्नि का भाव) : से पारिवारिक झगड़े तथा भूत भविष्य, वर्तमान की स्थिति का सिंहावलोकन भी किया जाता है। मंथरा की षडय़ंत्रमयी योजना ने कैकेयी की मति भ्रष्ट की। परिणितीवश श्रीराम को वनगमन, सीताहरण आसुरी शक्तियों का विनाष, लंका विजय के पष्चात् अध्योध्या में राजतिलक, वैदेही सीता का त्याग, ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में श्रीसीताराम के पुत्रों लव कुष का जन्म, जनकनंदिनी सीता का भूमि के प्रवेश ये सारे कथानक सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल की चेष्टाओं का फल है।

अष्टम भाव (मृत्यु एवं कष्ट का भाव) : श्रीराम जी की कुण्डली में अष्टम भवन में कुम्भ राशि का स्वामी शनि चतुर्थ भवन में अपनी उच्चराशि तुला में विराजमान है। अष्टमेश शनि जातक की दीर्घायु का परिचायक है। किन्तु सप्तमेश और अष्टमेश शनि बलवान स्थिति में होकर जातक को दीर्घायु तो देता है, वहीं दूसरी ओर दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लाता है। साथ ही मृत्यु स्थान भी यह निर्धारित करता है। अष्टमेष शनि चतुर्थ भवन में होने से पारिवारिक विवाद के कारण वनगमन से सुख की हानि हुई। किन्तु वहॉ असुरों का विनाश कर यश मिला। रण रिपु अर्थात युद्ध क्षेत्रों में शत्रुओं का वमन भी किया पृथ्वीं से प्रस्थान के बाद चिरकाल तक यषोगाथा अनेक प्रतीकों में बनी रहेगी। यह भी उनके अष्टमेंश उच्च राशिगत न्याय के देवता शनि की महिमा का फल है।

भाग्य भवनस्थ शुक्र (नवम भाव) ...
श्री राघव की कुण्डली का भाग्य भवन कम चमत्कारी नहीं है। भाग्य भवन का स्वामी नवमेश गुरू अपनी उच्च राशि कर्क में चन्द्रदेव की युति के साथ लगनस्थ है। भाग्येश गजकेसरी योग बन रहा है, लग्न भवन में। भाग्य भवन में उच्च राशिगत शुक्र चतुर्थेश तथा द्वादशेष का स्वामी है। माता से लेकर भूमि, भवन, वाहन (रथ) आदि सभी सुखों से पूरित रहे किन्तु अपनी सप्तम् दृष्टि से पराक्रम भवन को निहारते षुक्र ने पराक्रम के प्रदर्षन का माध्यम नारी जाति को बनाया। षुक्र स्त्री ग्रह है। महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की मुक्ति, रावण से युद्ध में विजयश्री प्राप्त कर अषोक वाटिका से जनक नंदिनी सीता जी की मुक्ति, बालि वध से सुग्रीव की पत्नि रोमा की मुक्ति, श्री राम की यशोगाथा का एक पक्ष हैं। वही दूसरी ओर आसुरी सक्तियों का नाश कर ऋषियों तथा जन जन को निर्भय जीवन दिया, यह प्रभु श्रीराम के भाग्य भवन का पुण्य प्रताप ही तो था।

दसमस्थ सूर्य बुध
रघुनंदन श्री राम की कुण्डली के दसम भाव अर्थात राज्य भवन में सूर्य के साथ बुध की युति बुध आदित्य योग तो बना रहा है किन्तु बुध व्ययेशहोने से राजतिलक होने ही वाला था कि 14 वर्षीय वनवास का योग बन गया। व्ययेष बुध ने राजयोग खण्डित किया। क्योंकि व्ययेश जिस भवन में विराजमान होता उसे किंचित सम्मान की हानि तो देता ही है। बुध ने ही उन्हें पिता के सुख से वंचित किया। किन्तु सूर्य उच्च  राशिगत होकर राजभवन में विराजने से गौरव, ऐश्वर्य एवं नेतृत्व का स्वामी बनाया। पिता की आज्ञा से वन गये। पिता का मान बढ़ाया। आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु वानर जाति की सेना का नेतृत्व कर विजयश्री प्राप्त की। अधिकार प्राप्ति के रूप में सम्राट बने अयोध्या के। ईश्ववर प्राप्ति भी दसम भवन से देखी जाती है, तो जो स्वयं त्रिभुवनपति हो उसे अपनी भक्ति में लगाकर मोक्ष प्रदान कराने में बुध का योगदान महत्वपूर्ण है। क्योंकि द्वादष भवन मोक्ष का भवन भी है। अपनी भक्ति से अनेक साधु, संतो, भक्तों तथा पापियों को भी मोक्षगामी बनाने में पथ पथ पर प्रेरणा दी। प्रभुता भी दसम भवन का एक गुण है। तो श्री राम प्रभुता पाकर भी दीनों के प्रति भी सहृदय बने रहे यही उनकी अनुग्रहमयी प्रभुता है। किन्तु स्मरणीय रहे। चतुर्थ भवन उच्चराशिगत शनि की सप्तम दृष्टि नीच राशि पर होने के कारण ही उन्हें वनवास में 14 वर्षीय वनवासी जीवन बिताना पड़ा।
एकादश भाव (आय भाव)
एकादश भवन मूलत: लाभ, सम्पन्नता, वाहन, वैभव, स्वतंत्र चिन्तन के रूप में ज्योतिषीय ग्रंथों में स्वीकारा गया है। जन जन के प्रभु राम स्वतंत्र चिन्तन के रूप में नैसर्गिक अर्थात प्राकृतिक सम्पदाओं से मुक्ति का बोध कराते हैं। भक्तवत्सल श्रीराम का मानव से लेकर समस्त जीवों के प्रति उदार भाव तो था ही किन्तु एकादषेश शुक्र भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजने से सभी के प्रति करूणा भाव बनाये रखने के प्रति संकल्पित रहे। अवतारी होने के बाद भी अपनी मानवीय मर्यादा में बने रहे। एक पत्नि व्रतधारी होने से उन्होंने सम्पूर्ण नारी समाज को गरिमा प्रदान की। मित्रों को सहोदर की तरह मान दिया। शत्रुओं के प्रति भी मानवीय मूल्यों का क्षरण उन्होंने  नहीं स्वीकारा। वचन बद्धता राघव की निष्ठा का अमोघ शस्त्र रही।

द्वादश भाव
सीता पति राघव की कुण्डली के बारहवें भवन में मिथुन राशि की स्थापना ने मर्यादा पुरूषोत्तम राम की कथनी करनी में कहीं भी अवरोध पैदा नहीं होने दिया। द्वादश भवन से ज्ञान तन्तु, स्वभाव, शान्ति, विवेक, व्यसन, सन्यास, शत्रु की रोक तथा धन सुख सम्मान का व्यय आदि का लेखा जोखा देखा जाता है।  द्वादश भवन में मिथुन राशि होने सीता पति राघव भावुक थे। वेदेही हरण एवं लक्ष्मण को शक्ति लगने पर वे कैसे व्यथित हुए, यह तुलसीकृत रामायण में रोमांचकारी शब्दशैली में अंकित है। वनवास में राज सत्ता से 14 वर्षो तक दूर रहे किन्तु पिता की आज्ञा को सर्वोपरि माना। सीता हरण में सुख और सम्मान का व्यय हुआ किन्तु अपने विवेक से वानर सेना का नेतृत्व कर शत्रुओं पर रोक ही नहीं लगाई अपितु उनका नाश भी किया। वनवासी राम ने एक सन्यासी के रूप में 14 वर्ष वनों में बितायें। किसी भी नगर में 14 वर्षो की अवधि में उन्होंने प्रवेश नहीं किया,


ब्रह्माण्ड नायक  राम, ब्रह्मवादियों का ब्रह्म, ईश्ववरवादियों का ईश्वर, अवतारवादियों का अवतार, आत्मवादियों वं जीववादियों का आत्म एवं जीव है। ऐसे प्रभु श्री राम के श्री चरणों में शत शत शत नमन।। साथ ही हम सभी को  इस श्रीरामनवमी (15 अप्रैल2016 ) को संकल्प लें की भारत में रामराज्य की कल्पना करते हुए परस्पर में समरसता का भाव रखते हुए परिवार व समाज तथा अपने सतसिद्धांतों रके प्रति दत्तचित्त रहेंगे।
Jyotishacharya Pandit Vinod Choubey

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे संपादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई


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