ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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रविवार, 20 मार्च 2016

होली, होलिका दहन और नवान्नेष्टि-पर्व................ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे

होली, होलिका दहन और नवान्नेष्टि-पर्व................

ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे


मित्रों,

आप सभी को होली के पावन पर्व पर आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ....

आईए  होली पर कुछ विशेष चर्चा करते हैं, सम्भवतया आप लोगों के उपयोगी सिद्ध होगा । मित्रों आजकल होली के पर्व पर को लेकर काफी चर्चाएँ हों रही हैं की आखिरकार किस तिथि को होली मनायी जाय। इस संदर्भ में विगत कुछ दिनों लगातार हमारे पत्रकार साथियों के फोन आ रहे हैं जिनका पहला प्रश्न यही होता है कि - होली के तिथि को लेकर असमंजस क्यों है.....और होलिकादहन कब की जानी चाहिए....आदि...आदि।
मैने सोचा कि आप सभी को भी होली बधाई के साथ इस संदर्भ को भी आपके समक्ष रखूं। तो आईए होलिकादहन को लेकर असमंजस को पहले दूर करने का प्रयास करते हैं।


होलिका दहन कब और कैसे मनायी जाय...?
हमको संस्मरण हो रहा है कि बसंत पंचमी के दिन गांव के उत्तर दिशा में एक एरण्ड का वृक्ष उखाड़ कर लाते और उसे गड्ढ़ा करके गाडऩे के बाद ग्राम पुराहित द्वारा विधिवत पूजन होने के बाद वहीं से फाग का गायन शुरु हो जाता, मित्रों इसके बाद हम सभी बाल मित्रमंडली के सदस्यगण सूखी लकडिय़ाँ तथा उपल की ताक में रहते और उनकों वहां एक के उपर एक लकडिय़ों उपलों को रखकर मंडलाकार (सर्कल) बनाते, और होली के एक दिन पहले उसको विधि विधान से पूजा करके ग्रामपुरोहित द्वारा पूजन अर्चन करने के बाद होलिका दहन किया जाता था। समय बदलते गया और आज मानों होलिका के नाम पर परस्पर में प्रेम और उमंग, उत्साह दिखता ही नहीं और ना ही ग्राम, नगर, मोहल्लों के लोगों में वह एकता दिख पड़ती है हालाकि हमारे भारतीय संस्कृति में मनाये जाने वाले सभी त्योहार अखण्डता के प्रतीक हैं। खैर.......... आईए........होलिका दहन के बारे में शास्त्रोक्त चर्चा करते हैं:-
होलिका दहन विधि 'होलिका पूजनÓ के समय सभी को एक लोटा जल, कुमकुम, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूँग, बताशे, गुलाल और नारियल आदि से पूजन करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी जाती है। किन्तु इस बार 22 मार्च के प्रदोषकाल में भद्रा होने के कारण 22 की रात्रि तथा 23 की भोर में 3 बजकर 29 मिनट के बाद ही होलिका दहन करना फलदायी रहेगा।
होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को सात या तीन परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है। तत्पश्चात लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। कुमकुम, चावल व पुष्प का पूजा में उपयोग किया जाता है। सुगंधित फुलों का प्रयोग कर पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करके पूजन के बाद जल से अध्र्य दिया जाता है।
होलिका पूजन के समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण शुद्धता से करना चाहिए-
'अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्।
मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। आहूति होलिका दहन होने के बाद होलिका में वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उनमें प्रमुख तौर पर कच्चे आम, नारियल, सात प्रकार के धान्य यानी गेहूँ, उड़द, मूँग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि सात धान्यों से होलीका पूजन किया जाता है। इस पूजन के समय ध्यान में रखने योग्य बात यह है कि आपका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखकर ही पूजा में उपरोक्त सामग्री का प्रयोग करें। साथ ही होली के समय आने वाली नई फसलों के धान्य को ख़ासकर होली में अर्पित करके पूजन किया जाता है और होलिका माँ से अच्छे धन-धान्य और अच्छे जीवन की माँग की जाती है।
इस वर्ष शुभ होली 24 मार्च को ही होगी हालाकि कई पत्रकार बंधुओं ने हमसे संपर्क किया। एक पत्रकार बंधु ने कहा कि - होली को लेकर कंन्फ्यूजन क्यों है......मैने कहा प्रिय मित्र .....होली के तिथि को लोकर कोई कंफ्यूजन नहीं है बल्कि भारत की सरकार ने होली की तिथि को घोषित करने के वक्त स्वयं कंफ्यूज थी ...हमारे पंचांगों ने एक स्वर से अपना निर्णय सुना चुके हैं कि काशी में 23 मार्च को होली है, इसके अतिरिक्त अन्य सभी जगह 24 मार्च को ही होली मनायी जायेगी।
 काशी को अविमूक्त और त्रिकंटक विराजीत नगरी कहा जाता है इसलिए होलिका दहन के द्वितीय दिवस मे प्रथम होली मनायी जाती है, इसके बाद पूरे विश्व में दूसरे दिन होली मनायी जानी चाहिए। उसी परम्परा का निर्वहन आज भी हो रहा है। अत: 24 मार्च को हम सभी होली खेलेंगे।
आप सभी को होली की शुभकामनाओं के साथ हिन्दू नववर्ष की भी हार्दिक शुभकामनाएँ................

एक निवेदन:- होली जैसे पवित्र त्योहर में नशीले पदार्थों का बिल्कुल सेवन ना करें, साथ ही त्वचा को नुकसान पहुँचाने वाली रासायनिक पदार्थों से युक्त रग और गुलाल का प्रयोग ना करें। यह त्योहार नयी सोच, नयी उमंग, समरसता, प्रेम तथा अपनत्त्व का प्रतीक है, इसमें सभी गिले सिकवे भूलाकर गले मिलना का पर्व है। ................एक बार पुन: आप सभी मित्र जनों को रंगभरी होली पर प्रेम रुपी पिचकारी से सराबोर करते हुए .............बिदा लेता हुँ............फिर मिलेंगे।
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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