ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 6 सितंबर 2014

गणेश विसर्जन एवं महारविवार व्रत एक साथ

गणेश विसर्जन एवं महारविवार व्रत एक साथ

-ज्योतिषाचार्य  पण्डित विनोद चौबे
07/09/2014 को दिन में 12 बजकर && मिनट पर चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होगा जो सोमवार को प्रात: 10 बजकर &5 मिनट तक रहेगा। निर्णय सिंधु के अनुसार निश्चित तौर पर मध्याह्न व्यापिनी पर्व महारविार व्रत को आज के ही दिन करना आवश्यक है कई वर्षों बाद यह दुर्लभ संयोग
बन रहा है कि गणेश विसर्जन के साथ ही अनन्त चतुर्दशी तथा महारविवार व्रत का महासंयोग बन रहा है।
ग्रहों के अनुसार संवत् 2071(हिन्दी वर्ष) का पहला दुर्लभ संयोग है कि सूर्य, बुध तथा मंगल स्वगृह (स्वराशि) में तथा वृहस्पति अपनी उ"ा की राशि कर्क में स्थित है। बुध ग्रह के देवता गणेश हैं तो महारविवार व्रत के स्वामी सूर्य तथा अनन्त चौदश अर्थात् भगवान विष्णु यानी उ"ा राशि में वृहस्पति हैं कुल मिलाकर सिद्धांत Óयोतिष की दृष्टी से लगभग 167  वर्ष बाद ऐसा शुभ संयोग आया है। आध्यात्मिक दृष्टी से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
गणेश विसर्जन 7 सितंबर रविवार को ही करना अत्यंत शुभदायक रहेगा। किसी भी मूर्ति के विसर्जन में पंचक दोष मान्य नहीं है। और यदि इस प्रकार की भ्रांति फैलाई जा रही है तो वह मात्र कोरी कल्पना है।  पंचक में किया गया हवन यज्ञ तथा विसर्जनादि कार्य पाँच गुना अधिक फलदायी माना जाता है। अत: 07 सितंबर को मध्याह्न काल में मूर्ति का विसर्जन किया जाना चाहिए। देश काल की मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए भगवान गणेश जी साथ उनकी दोनों पत्नियाँ ऋद्धी-सिद्धी भी स्थापित की जाती हैं, तो उस दृष्टी से दिन रविवार होने का कारण सोमवार (08/09/2014) को भी विसर्जन किया जा सकता है।

विसर्जन की विधि : 
गणेश गायत्री मंत्रों से 108 बार आहुति करना चाहिए, और अनन्त (धागा का बना हुआ) को वेदी पर रखकर भगवान विष्णु के स्वरुप का ध्यान करते हुए षोडसोपचार पूजन अर्चन करना चाहिए। महरविवार व्रत करते समय भुवनभास्कर सूर्य के स्तोत्र का पाठ करते हुए अघ्र्यदान करना चाहिए, इस व्रत में सेंधा अथवा सामान्य दोनों नमक वर्जित है। अपराह्न काल में भगवान गणेश जी गाजे बाजे के साथ विसर्जन करना चाहिए। पूजा में  मिट्टी के गणेश प्रतिमा ही ग्राह्य हैं, और उन्हीं का विसर्जन भी करें अन्य रासायनिक पदार्थो की प्रतिमाओं का पूजन अथवा विसर्जन आदि वर्जित है। हमारे धर्म ग्रंथों में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए केवल मिट्टी से निर्मित प्रतिमाओं का ही पूजन व विसर्जन का विधान बताया गया है।

राशियों के अनुसार हवन सामग्री (औषधियाँ) :
मेष : जटामसी तथा गुगल
वृषभ : बेल की गुद्दी
मिथुन : सतावर
कर्क : इन्द्र जव
सिंह : ब्राह्मी
कन्या : लक्ष्मणा
तुला : कपूर
वृश्चिक : तीना का चावल
धनु : आंवला
मकर : नीली फल
कुंभ: नीलमणी रस
मीन: हल्दी
आदि होम द्रव्यों से हवन करना चाहिए।

-ज्योतिषाचार्य  पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई

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