ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

शुक्रवार, 15 जून 2012

लिङ्गांष्टकम्

मित्रों शुभ सन्ध्या, आप सभी के लिए.....आप सभी प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करें आप सभी की मनोकामनाएं भगवान शिव पूर्ण करेंगे।

!!अथ लिङ्गांष्टकम्!!


ब्रह्ममुरारि-सुरार्चितलिङ्गं निर्मल-भासित-शोभिन-लिङ्गम्।
जन्मज-दु:खविनाशक- लिङ्गतत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।1।।

देवमुनि-प्रवरार्चित लिङ्गं कामदडं करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्प-विनाशन लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।2।।

सर्वसुगन्धि- सुलेपितलिङ्गं बुद्धि-विवर्धन-कारणलिङ्गम्।
सिद्ध-सुरा-सुर-वन्दितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।3।।

कनक-महामणि भूषितलिङ्गं फणिपति-वेष्टित-शोभितलिङ्गं।
दक्षसुयज्ञ-विनाशकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।4।।

कुमकुम-चंदन लेपितलिङ्गं पंकजजहार-सुशोभित लिङ्गम्।
सञ्चित-पाप विनाशन लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।5।।

देवगणर्चित-सेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिर्भिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटि-प्रभाकर लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।6।।

अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भव कारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्र-विनाशितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।7।।

सुरगुरु-सुरवर पूजतलिङ्गं सुरवनपुष्प-सदार्चितलिङ्गम््।।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।8।।

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।9।।

इति श्रीलिङ्गाष्टकम् स्त्रोत्रं समाप्तम्।।



निवेदकः >>>>>>>>>>>>>>>>ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे

कोई टिप्पणी नहीं: