ज्योतिष का सूर्य |
सुन्दर है सुंदरकांड
मित्रों शुभ सन्ध्या, आज मंगलवार है आईए
कुछ टूटे-फूटे शब्दों में कलियुग के प्रत्यक्ष देव श्री हनुमानजी के बारे
में चर्चा करते हैं...गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस के सप्त सोपानों में 60
दोहे के 'सुन्दरकांड' का नाम ''सुन्दर'' क्यों रक्खा..और कितने बार सुन्दर
शब्द का प्रयोग किया गया है..तो मित्र प्रवरों मानस में आठ बार सुन्दर
शब्द आया है ...
1) सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर.
2)कनक कोट बिचित्र मणि कृत सुंदरायतना घना
3)श्याम सरोज दाम सम सुन्दर ! प्रभु भुज करी कर सम दसकंधर !!
4)तब देखि मुद्रिका मनोहर ! राम नाम अंकित अति सुन्दर !!
5) सुनहु मातु मोहि अतिशय भूखा ! लागी देखि सुन्दर फल रूखा !!
6)सावधान मन करी पुनि संकर ! लागे कहाँ कथा अति सुन्दर !!
7) हरषी राम तब कीन्ह पयाना ! सगुण भये सुन्दर सुभ नाना !!
8) शठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती ! सहज कृपन सन सुन्दर नीती !!
गोस्वामीजी ने इस प्रकार आठ बार सुन्दर शब्द का प्रयोग करने के पिछे बहुत बड़ा राज है क्योंकि...जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि जब....... सप्तर्षियों ने शिवजी में आठ अवगुण कहे थे:
"निर्गुण निलज कुबेष कपाली ! अकुल अगेह दिगंबर ब्याली !!
इसलिए शिवजी ने हनुमान अवतार धारण कर लिया ताकि मुझमे आठ
गुण आ जाएँ:
1) सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर.
2)कनक कोट बिचित्र मणि कृत सुंदरायतना घना
3)श्याम सरोज दाम सम सुन्दर ! प्रभु भुज करी कर सम दसकंधर !!
4)तब देखि मुद्रिका मनोहर ! राम नाम अंकित अति सुन्दर !!
5) सुनहु मातु मोहि अतिशय भूखा ! लागी देखि सुन्दर फल रूखा !!
6)सावधान मन करी पुनि संकर ! लागे कहाँ कथा अति सुन्दर !!
7) हरषी राम तब कीन्ह पयाना ! सगुण भये सुन्दर सुभ नाना !!
8) शठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती ! सहज कृपन सन सुन्दर नीती !!
गोस्वामीजी ने इस प्रकार आठ बार सुन्दर शब्द का प्रयोग करने के पिछे बहुत बड़ा राज है क्योंकि...जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि जब....... सप्तर्षियों ने शिवजी में आठ अवगुण कहे थे:
"निर्गुण निलज कुबेष कपाली ! अकुल अगेह दिगंबर ब्याली !!
इसलिए शिवजी ने हनुमान अवतार धारण कर लिया ताकि मुझमे आठ
गुण आ जाएँ:
अतुलितबलधामं स्वर्णशैलाभ्देहम,
दनुजवन कृशानुम ज्ञानिनामाग्रगण्यम!
सकल्गुनानिधानाम वानारानामधीशम,
सकल्गुनानिधानाम वानारानामधीशम,
रघुपतिवरदूतम वातजातं नमामि !!
और इसलिए सुन्दरकाण्ड की शुरुआत 'ज' अक्षर से हुई है
"जामवंत के वचन सुहाए"
जो की वर्णमाला का आठवां अक्षर है!
सुन्दरकाण्ड के अन्तमें फलश्रुति बताते हुए गोस्वामीजी लिखते हैं-
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान ।
सारद सुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जलजान ॥
भगवान श्री रामजी का चरित्र समस्त मंगलों को देनेवाला है, और जो लोग इसका आदरपूर्वक पठन चिंतन एवं मनन करते हैं वे इस संसार समुद्रको बिना जहाज के ही पार कर लेते हैं। गोस्वामीजी ने आष्वासन देते हुए कहा है कि जिसके हृदय में भगवान राम तथा श्री हनुमानजीका यह संवाद आ जाएगा उसे भगवान श्री राम के चरणों की भक्ति अवष्य प्राप्त होगी ।
भगवान राम की यह कथा अत्यन्त सुन्दर है। सुन्दरता को सुन्दर करने वाली श्रीसीताजी तथा परम सुन्दर भगवान श्रीराम की उपलब्धी सुन्दरकाण्ड के द्वारा होती है। और सुन्दरकाण्ड का फल भी यही है-
यह सम्वाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥ 5/33/4
इस काण्ड में एक ओर यदि विभीषणजी को राज्य मिला तो दूसरी ओर हनुमानजी को भक्ति मिली। इसका अभिप्राय है कि इसके द्वारा सकाम की कामना पूर्ण होती है तथा निष्काम को सेवा की प्राप्ति होती है। इसका अभिप्राय है कि जिस व्यक्ति को जो भी वस्तु चाहिए वह इस सुन्दरकाण्ड के माध्यम से प्राप्त कर सकता है। सुन्दरकाण्ड की इन सुन्दर बातों का चिंतन मनन करके सुन्दर विचारों का आश्रय लेकर अपने जीवन को सुन्दर व उच्चतम बनाने का संकल्प करें। सुन्दरकाण्ड के तत्व को प्रतिपादन करने में हो सकता है कही त्रुटि रह गयी हों तो कृपया क्षमा करें इसमें जो विचार आपको अच्छे लगे उनको आप ग्रहण कीजिए तथा त्रुटिपूर्ण विचारों को मेरी अपनी भूल समझकर क्षमा कीजिए। सुन्दरकाण्ड के विचारों को आत्मसात करने तथा आदर्श एवं उच्चतम जीवन तथा भक्तिपथ पर अग्रसर होने की शक्ति हनुमानजी सब को प्रदान करें, यही प्रभु चरणों में नम्र प्रार्थना ।
और इसलिए सुन्दरकाण्ड की शुरुआत 'ज' अक्षर से हुई है
"जामवंत के वचन सुहाए"
जो की वर्णमाला का आठवां अक्षर है!
सुन्दरकाण्ड के अन्तमें फलश्रुति बताते हुए गोस्वामीजी लिखते हैं-
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान ।
सारद सुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जलजान ॥
भगवान श्री रामजी का चरित्र समस्त मंगलों को देनेवाला है, और जो लोग इसका आदरपूर्वक पठन चिंतन एवं मनन करते हैं वे इस संसार समुद्रको बिना जहाज के ही पार कर लेते हैं। गोस्वामीजी ने आष्वासन देते हुए कहा है कि जिसके हृदय में भगवान राम तथा श्री हनुमानजीका यह संवाद आ जाएगा उसे भगवान श्री राम के चरणों की भक्ति अवष्य प्राप्त होगी ।
भगवान राम की यह कथा अत्यन्त सुन्दर है। सुन्दरता को सुन्दर करने वाली श्रीसीताजी तथा परम सुन्दर भगवान श्रीराम की उपलब्धी सुन्दरकाण्ड के द्वारा होती है। और सुन्दरकाण्ड का फल भी यही है-
यह सम्वाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥ 5/33/4
इस काण्ड में एक ओर यदि विभीषणजी को राज्य मिला तो दूसरी ओर हनुमानजी को भक्ति मिली। इसका अभिप्राय है कि इसके द्वारा सकाम की कामना पूर्ण होती है तथा निष्काम को सेवा की प्राप्ति होती है। इसका अभिप्राय है कि जिस व्यक्ति को जो भी वस्तु चाहिए वह इस सुन्दरकाण्ड के माध्यम से प्राप्त कर सकता है। सुन्दरकाण्ड की इन सुन्दर बातों का चिंतन मनन करके सुन्दर विचारों का आश्रय लेकर अपने जीवन को सुन्दर व उच्चतम बनाने का संकल्प करें। सुन्दरकाण्ड के तत्व को प्रतिपादन करने में हो सकता है कही त्रुटि रह गयी हों तो कृपया क्षमा करें इसमें जो विचार आपको अच्छे लगे उनको आप ग्रहण कीजिए तथा त्रुटिपूर्ण विचारों को मेरी अपनी भूल समझकर क्षमा कीजिए। सुन्दरकाण्ड के विचारों को आत्मसात करने तथा आदर्श एवं उच्चतम जीवन तथा भक्तिपथ पर अग्रसर होने की शक्ति हनुमानजी सब को प्रदान करें, यही प्रभु चरणों में नम्र प्रार्थना ।
विशेष सूचना- (यह आलेख मेरा न समझा जाये यह संत वाक्यों का संकलन)
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