ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

पुराणों में शनि और रावण की रोचक कहानी


पुराणों में शनि और रावण की रोचक कहानी
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 09827198828
आसुरी संस्कृति में महान् व्यक्तित्व उत्पन्न हुए, जिनका बल-पौरूष और विद्वत्ता अतुलनीय रही थी। शुम्भ-निशुम्भ, मधु-कैटभ, हिरण्यकश्यप, बलि या रावण, सभी अतुल पराक्रमी और महा विद्वान थे। यह अलग बात है कि उन्होंने अपनी शक्तियों का प्रयोग असामाजिक कृत्य और भोगों की प्राप्ति हेतु किया।  
इनमें रावण का नाम असुर कुल के विद्वानों में अग्रणी रहा है। रावण चूंकि बाम्हण वंश में उत्पन्न हुए। उनके पिता ऋषि विश्रवा और दादा पुलस्त्य ऋषि महा तपस्वी और धर्मज्ञ थे किन्तु माता असुर कुल की होने से इनमें आसुरी संस्कार आ गए थे। ऋषि विश्रवा के दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम इडविडा था जो बाम्हण कुल से थीं और जिनके कुबेर और विभीषण, ये दो संतानें उत्पन्न हुई। दूसरी पत्नी का नाम कैकसी था,  जो असुर कुल से थीं और इनके रावण, कुंभकर्ण और सूर्पणखा नामक संतानें उत्पन्न हुई।
कुबेर इन सब में सबसे बडे थे और रावण विभीषणादि जब बाल्यावस्था में थे, तभी कुबेर धनाघ्यक्ष की पदवी प्राप्त कर चुके थे। कुबेर की पद-प्रतिष्ठा से रावण की माँ ईष्र्या करती थीं और रावण को कोसा करती थीं। रावण के मन को एक दिन ठेस लगी और अपने भाइयों ( कुंभकर्ण-विभीषण ) को साथ में लेकर तपस्या करने चला गया। रावण का भातृ प्रेम अप्रतिम था। इनकी तपस्या सफल हुई और तीनों भाइयों ने ब्रम्हाजी से स्वेच्छापूर्ण वरदान प्राप्त किया।
रावण इतना अधिक बलशाली था कि सभी देवता और ग्रह-नक्षत्र उससे घबराया करते थे। ऎसा पढने को मिलता है कि रावण ने लंका में दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था। रावण चूंकि बाम्हण कुल में जन्मा था सो पौरोहित्य कर्म में पूर्ण पारंगत था। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि शिवजी ने लंका का निर्माण करवाया और रावण ने उसकी वास्तु शांति करवाई, नगर-प्रवेश करवाया और दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया था तथा लंका विजय के प्रसंग में सेतुबन्ध रामेश्वर की स्थापना, जब श्रीराम कर रहे थे, तब भी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा आदि का पौरोहित्य कार्य रावण ने ही सम्पन्न करवाया।
रावण की पत्नी मंदोदरी जब माँ बनने वाली थी (मेघनाथ के जन्म के समय) तब रावण ने समस्त ग्रह मण्डल को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए सावधान कर दिया। जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य और पराक्रम से युक्त हो। यहाँ रावण का प्रकाण्ड ज्योतिष ज्ञान परिलक्षित होता है।
उसने ऎसा समय (मुहूर्त) साध लिया था, जिस समय पर किसी का जन्म होगा तो वह अजेय और अत्यंत दीर्घायु से सम्पन्न होगा लेकिन जब मेघनाथ का जन्म हुआ, ठीक उसी समय शनि ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया, जिस स्थिति में शनि के होने पर रावण अपने पुत्र की दीर्घायु समझ रहा था, स्थिति परिवर्तन से वह पुत्र अब अल्पायु हो गया। रावण अत्यंत क्रोधित हो गया। उसने क्रोध में आकर शनि के पैरों पर गदा का प्रहार कर दिया। जिससे शनि के पैर में चोट लग गयी और वे पैर से कुछ लाचार हो गये, अर्थात् लँगडे हो गये।
शनि देव ही आयु के कारक हैं, आयु वृद्घि करने वाले हैं, आयुष योग में शनि का स्थान महत्वपूर्ण है किन्तु शुभ स्थिति में होने पर शनि आयु वृद्घि करते हैं तो अशुभ स्थिति में होने पर आयु का हरण कर लेते हैं। मेघनाथ के साथ भी ऎसा ही हुआ। मेघनाथ की पत्नी शेषनाग की पुत्री थी और महासती थी। मेघनाथ भी परम तेजस्वी और उपासना बल से परिपूर्ण था। इन्द्र को भी युद्घ में जीत लेने से उसका नाम च्च्इन्द्रजीतज्ज् पड गया था लेकिन दुर्भाग्यवश लक्ष्मण जी के हाथों उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रसंग में शनिदेव आयु के कारक और नाशक होते हैं, यह सिद्घ होता है।

क्रांतिकारी मन्सूबे के हैं शनिदेव...?

शनिदेव क्रांति लाने की क्षमता देते हैं। सूर्य से दूर होने के कारण सूर्य की रोशनी से वंचित शनि काले हैं कठोर है परन्तु यही कठोरता अनुशासन भी है। धर्म भाव में बैठे शनि अपने (धर्म) क्षेत्र में गहराई और अनुशासन देते हैं जो उच्चा कोटि के तपस्वी का प्रथम गुण और आवश्यकता है। इन शनिदेव को जब बृहस्पति की शुभ दृष्टि प्राप्त हो जाती है तो धर्म, आघ्यात्म और वैराग्य का अद्भुत संगम होता है। कुछ तपस्वियों की कुण्डली में इसका विश्लेषण करते हैं।
न कोई हार अंतिम हार होती है न कोई अंतिम जीत। किसी भी हार या जीत को अंतिम मान लेने से दोनों ही स्थितियों में अकर्मण्यता आ जाती है। शनिदेव, जो कठोर श्रम के प्रतीक हैं, को अकर्मण्यता बिल्कुल पसंद नहीं है। सुख-दु:ख के भँवर ही व्यक्ति को श्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं। दण्डनायक शनि ही समय-समय पर कर्मो के लेखे-जोखों के अनुसार दण्ड देते रहते हैं जिससे सन्तुलन बना रहे। ये तो हम अज्ञानी हैं, जो शनिदेव की संतुलन की इस प्रक्रिया के वास्तविक अर्थ को समझ नहीं पाते और थोडे से ही कष्ट में चीत्कार उठते हैं।
अंग्रेजी के महान कवि एवं लेखक विलियम शेक्सपियर ने लिखा था- Adversity is the best teacher. शनिदेव वही शिक्षक हैं जो कष्ट की कसौटी पर व्यक्ति को परखते हैं, मजबूत बनाते हैं और उसके संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करने में अहम भूमिका निभाते हैं, अत: शनिदेव और उनका न्याय न केवल हमारे कर्मो का उचित लेखा जोखा है अपितु जीवन की पाठशाला का एक महत्वपूर्ण अघ्याय भी है।

कोयले और हीरे के रासायनिक संयोजन में कोई अंतर नहीं होता, परन्तु दाब और ताप अधिक होने पर कोई कोयला, हीरे में परिवर्तित हो जाता है। ऎसे ही हैं शनिदेव और जन्मपत्रिका में उनकी स्थिति भी ऎसे ही परिणाम देने वाली होती है। कहते हैं जो तप कर निखर उठे वही सोना है, जर्रे की तो नियति ही जल कर राख हो जाना है।
शनिदेव को यदि जीवनरूपी स्वर्ण की कसौटी कहा जाए तो कतई गलत नहीं होगा। शनिदेव की कठोर परीक्षा पर जो खरा उतरा, इतिहास ने ना केवल उसे, उसके कष्ट और त्याग को याद रखा अपितु उदाहरण की तरह देखा और वे आदर्श रूप में जनमानस में छा गए चाहे राजा नल हों, विक्रमादित्य हों या फिर राजा हरिश्चन्द्र।  
आज कलियुग में हमारा दृष्टिकोण कुछ बदल सा गया है। लालबत्ती पर रूके ट्रैफिक में जब एक गरीब लडका फटे-पुराने कपडे से गाडी का काँच या बोनट साफ करता है और फिर एक-दो रूपये की मांग करता है तो हम नजर अंदाज कर देते हैं लेकिन जब शनिवार को वही लडका बर्तन में लोहे की प्रतिमा और तेल लेकर " जय शनि महाराज " बोलता हुआ हमारे पास आता है तो स्वचालित यंत्र रूपी हमारे हाथ उसके बर्तन में एक या दो अथवा उपलब्ध सिक्का डाल देते हैं। 
एक बार शनिदेव ने भगवान शंकर से कहा कि वो उन पर आना चाहते हैं। भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पिता के घर भेज दिया, नन्दी एवं अन्य गणों को भी कुछ समय के लिए स्वयं से दूर कर दिया। जब शनिदेव ने यह देखा तो मुस्कुरा कर कहा कि जब पत्नी, वाहन, नौकर कुछ भी पास नहीं है तो मैं आकर भी क्या करूँगा ?
संभवत: शनिदेव का व्यक्ति को परखने का यह अपना ही अंदाज है कि वे सम्पन्न व्यक्तियों को अधिक पीडा या कष्ट देते हैं जो शायद इस बात की ओर संकेत करता है कि अत्यधिक ऎशो-आराम पाने के लिए व्यक्ति ने जो भी कार्य अनुचित ढंग से किए हैं, उनके दण्ड स्वरूप उस ऎशो-आराम को अपनी दशा-अन्तर्दशा में अथवा साढेसाती में वापस लेकर व्यक्ति को यह एहसास कराना चाहते हों कि वह कहाँ-कहाँ गलत था और उस गलती के परिणाम क्या-क्या रहे हांगे ?  इसके विपरीत एक मजदूर जो दिनभर कडी मेहनत करके अपने परिवार के लिए आवश्यकतानुरूप चीजें जुटाता है, उसे कभी हमने शनिदेव से पीडित या प्रताडित होते कम ही देखा है। 

धन की वर्षा करते हैं शनिदेव...?
यदि आप धन कुबेर बनने का सपना देखते हैं, तो आप अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।
१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।
2 मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।
3 जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।
4 शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।
5 जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।
6 दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।
७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।
8 सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।
९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।
१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।
११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।
१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।
१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।
१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।
१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बना देता है।
१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।
१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।
१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।
१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।
२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।
शनिदेव को कैसे करें प्रसन्न..?
शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगानाअति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए।  
पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी।
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
शनि-शिग्नापुर
महाराष्ट्र में शिरडी के पास शिग्नापुर में शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर है। कहते हैं- बहुत पहले एक काली शिला बहती हुई इस गाँव की नदी में आ गई। खेलते हुए बच्चों ने जब इसे लकडी के टुकडे से खींचना चाहा तो शिला में से खून बहने लगा। बच्चों ने गाँव वालों को बुलाया। सभी ने शिला को उठाने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हो सके। रात को एक व्यक्ति को स्वप्न में किसी दिव्य आवाज ने कहा कि जब कोई मामा-भांजा इस शिला को उठाएंगे तो ही सफल होंगे। गाँव वालों ने ऎसा ही किया और एक चबूतरे पर शिला की स्थापना की। शनिदेव की कृपा से आज तक कोई भी इस गाँव में कोई भी ताला नहीं लगाता। आज तक यह शिला खुले मे उस चबूतरे पर ही है और इसके ऊपर मंदिर बनाने के सारे प्रयास विफल रहे हैं।
नोटः  (साभार पूर्वांचल न्यूज ) 

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प्रकाशन 15 मार्च 2012, लगातार 31 सवाँ अंक .

उक्त मासिक पत्रिका ने विगत तीन वर्षों में भारत पटल पर बनाने में सफल रही है। ज्ञात हो कि पिछले दिसम्बर (2011) में आंग्ल नववर्ष के मद्देनजर 2012 राशिफल विशेषांक प्रकासित किया गया जो देश भर में पाठकों द्वारा सराहना की गयी थी। इसी सफलता को देखते हुए उसी क्रम में आगामी अंक 15 मार्च 2012 को हिन्दू नव वर्ष विश्व का सर्व श्रेष्ठ मानक वर्ष है सूर्यसिद्धांत और खगोल पर आधारित इस वर्ष की न केवल प्रशंसा होती वरन इसे पूरे विश्व के लोग स्वीकार भी करते हैं। अतः हम भारतीय लोगों को भी इसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए.।
मित्रों इस नूतन वर्ष पर हमारे संपादक मंडल ने यह लिर्णय लिया है कि बहुरंगी साज-सज्जा के साथ एक दुर्लभ पाठ्य सामग्रीयों से युक्त विशेषांक प्रकासित किया जाय। अतः इस विशेषांक में यदि आप लोग भी अपने विचार लेखों के माध्यम से अथवा अपने प्रतिष्ठान, दूकान, व्यापार, अथवा आस्था का मंदिर अतः मंदिरों सहित ज्योतिषी, वास्तु विशेषज्ञ आदि मित्रगण विज्ञापन देना चाहते हैं तो आप सहर्ष हमसे संपर्क कर सकते हैं अथवा बाई पोस्ट हमें प्रेषित कर सकते हैं चूंकि निचे दिये गये चित्र में बाकि विवरण दिये गये हैं जिसमें पता भी है।
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शुभमस्तु।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

भारत का पांचवा कुम्भ राजिम मेला का शुभारंभ

भारत का पांचवा कुम्भ राजिम मेला का शुभारंभ
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे,संपादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, 
मोबा.09827198828 भिलाई
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिध्द तीर्थ स्थल राजिम के त्रिवेणी संगम पर कल माघ पूर्णिमा से अध्यात्म, कला एवं संस्कृति के समागम का राजिम कुंभ शुरू हो गया। राजिम कुंभ मेला महाशिवरात्रि तक बारह दिवसीय यह भव्य आयोजन चलेगा। महामण्डलेश्वर अग्नि पीठाधीश्वर श्री रामकृष्णानंद जी महाराज अमरकंटक और अन्य साधु-संतों के पावन सानिध्य में  महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर गंगा आरती के बाद भगवान राजीव लोचन की पूजा-अर्चना के साथ कुंभ की शुरूआत हुई। 07 फ रवरी को शुभारंभ हुआ । माघ पूर्णिमा से प्रांरभ होने वाले इस धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव का प्रमुख आकर्षण शाही स्नान होगा. पवित्र नदियों सोंढूर, पैरी और चित्रोत्पला के पावन तट पर 07 फरवरी को माघ पूर्णिमा, 14 फरवरी को श्री जानकी जयंती, 17 फरवरी को विजया एकादशी और 20 फरवरी को महाशिवरात्रि का शाही स्नान विशेष महत्व लिये होगा. संत समागम का शुभारंभ 13 फरवरी को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती की उपस्थिति में होंगे. स्वामी निश्चलानंद जी सरस्वती 19 व 20 फरवरी को  समापन समारोह में उपस्थित रहेंगे.


 छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के रूप में प्रसिध्द तीर्थ स्थल राजिम के त्रिवेणी संगम पर कल माघ पूर्णिमा से अध्यात्म, कला एवं संस्कृति के समागम का राजिम कुंभ शुरू हो गया। राजिम कुंभ मेला महाशिवरात्रि तक चलेगा। महामण्डलेश्वर अग्नि पीठाधीश्वर श्री रामकृष्णानंद जी महाराज अमरकंटक और अन्य साधु-संतों के पावन सानिध्य में  महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर गंगा आरती के बाद भगवान राजीव लोचन की पूजा-अर्चना के साथ कुंभ की शुरूआत हुई।
माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक पन्द्रह दिनों के लिए लगने वाला भारत का पाँचवाँ कुम्भ मेला छत्तीसगढ़ की धार्मिक राजधानी प्रयागधरा राजिम में हर वर्ष लगने वाला कुम्भ है। इसमें उज्जैन, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, ऋषिकेश, द्वारिका, कपूरथला, दिल्ली, मुंबई जैसे धार्मिक स्थलों के साथ छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का संगम होता है।
जहाँ एक ओर जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिष पीठाधीश्वर व महामंडलेश्वरों की संत वाणी का अमृत बरसता है। वहीं श्रद्धालुगण दूर-दूर से आकर इनके प्रवचनों का लाभ लेते हैं। इसमें शाही कुम्भ स्नान होता है जो देखने लायक रहता है। नागा साधुओं के दर्शन के वास्ते भीड़ उमड़ पड़ती है। अखाड़ों के साधुओं के करतब लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं।
पृथ्वी को मृत्युलोक में स्थापित करके विघ्नों को नाश करने के लिए ब्रह्मा सहित देवतागण विचार करने लगे कि इस लोक में दुष्टों की शांति के लिए क्या करना चाहिए? इतने में अविनाशी परमात्मा का ध्यान किया तो एकत्रित देवता बड़े आश्चर्य से देखते हैं कि सूर्य के समान तेज वाला एक कमल गो लोक से गिरा, जो पाँच कोस लम्बा और सुगंध से भरा या जिसमें भौंरे गुँजार कर रहे थे तथा फूल का रस टपक रहा था मानो यह कमल नहीं अमृत का कलश है।
ऐसे कमल फूल को देखकर बह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए और आज्ञा दी कि हे पुष्कर 'तुम मृत्युलोक में जाओÓ जहाँ तुम गिरोगे वह क्षेत्र पवित्र हो जाएगा, नाल सहित वह मनोहारी कमल पृथ्वी पर गिरा और पाँच कोस भूमंडल को व्याप्त कर लिया। जिनके स्वामी स्वयं भगवान राजीवलोचन हैं।
कमल फूल की पाँच पंखुड़ी के ऊपर पाँच स्वयं भूपीठ विराजित हैं जिसे पंचकोशी धाम के नाम से जाना जाता हैं। श्री राजीवलोचन भगवान पर कमल पुष्प चढ़ाने का अनुष्ठान है। इन्हीं दिनों से यह पवित्र धरा कमलक्षेत्र के रूप में अंकित हो गया। परकोटे पर लेख के आधार पर कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी राजिम नगरी की संरचना जिस प्रकार समुद्र के भीतर त्रिशूल की नोक पर काशी पुरी तथा शंख में द्वारिकापुरी की रचना हुई है, उसी के अनुरूप पाँच कोस का लम्बा चौड़ा वर्गाकार सरोवर है। बीच में कमल का फूल है, फूल के मध्य पोखर में राजिम नगरी है।
श्री मद्राजीवलोचन महात्म्यम्? के अनुसार भगवान श्वेतवराह ने कहा कि 'तीनों लोकों में प्रख्यात कमलक्षेत्र होगा, जिनको साक्षात काशी समस्त देवता, लोकपाल, श्री पार्वती और सर्पों के साथ महादेव जी निवास करेंगे। इस संसार में यह क्षेत्र बैकुंठ के समान है, पद्म सरोवर में साक्षात गज-ग्राहा लड़ाई का प्रमाण मिलता है।
अन्य हाथियों के साथ क्रीडा करता हुआ गजराज पद्म सरोवर में घुसा तो उसके पैर को ग्राहा ने कसकर पकड़ लिया। छुड़ाने का भरपूर प्रयास किया किन्तु नाकाम रहा। व्याकुल होकर कमल फूल ले भगवान को अर्पण करते हुए वह आर्तशब्द करने लगा, हे गदाधर रक्षा करो, कराल ग्राहा ने मुख से मेरा पैर जकड़ लिया है, इससे छुड़ाओ। इस तरह रुदन भरी आवाज सुनकर लक्ष्मी पति भक्त वत्सल भगवान विष्णु स्वयं उपस्थित हो गए। सूर्य के समान तेज से युक्त सुदर्शन चक्र से ग्राहा को खंड-खंड कर गजराज की रक्षा की तथा ग्राहा का उद्धार किया।
बुजुर्गों का कथन है कि इस पद्म सरोवर में स्नान करने से शरीर के रोग नष्ट हो जाते हैं। शंख, चक्र, गदा, पद्म से आलोकित प्रभु की परम पावनी लीला के कारण इसे पद्मावती पुरी के नाम से नवाजा जाने लगा। राजिम कुम्भ के छत्तीसगढ़ शासन द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है। अयोध्या मथुरा, गया, काशी, अवन्तिका, द्वारिकापुरी ये मोक्ष प्रदायक हैं, उसी प्रकार राजिम क्षेत्र भी मोक्ष धाम है।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर करें भगवान शिवआराधना


ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर करें भगवान शिवआराधना

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 09827198828, भिलाई, दुर्ग, छ.ग.

20फरवरी को इसबार महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष चौदश, श्रवण नक्षत्र, वरीयान योग, और दिन भी सोमवार का दुर्लभ संयोग बन रहा है जो ऐतिहासिक है आज महाशिवरात्रि के दिन चतर्दश शिवलिंग का पूजन अभिषेक अलग अलग खामना के अनुसार करना चाहिए. मित्रों अलग अलग पदार्थों के एवं राशियों के अनुसार मैं आगामी पोस्ट में आपके सामने रखूंगा लेकिन शास्वत शिव पूजन की संक्षिप्त विधी आपके सामने इस पोस्ट में रखने जा रहा हुं..।शिव ही परमपिता परमेश्वर हैं। सनातन धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। दुनिया के सभी धर्मों के ईष्टों को ईश्वर का फरिश्ता माना गया है ऐसे ही सनातन धर्म में भी ईश्वर के कई फरिश्तों यानि अवतारों का जिक्र है। लेकिन शिवजी कोई अवतार नहीं बल्कि साक्षात् ईश्वर हैं। वह मृत्यु लोक के भगवान हैं। शिवजी को वेद में रुद्र कहा गया है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।
अधिकतर चित्रों में महादेव योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में की जाती है । भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

व्यक्तित्व
शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि। शिवरात्रि व्रत की पारणा चतुर्दशी में ही करनी चाहिए। जो चतुर्दशी में पारणा करता है, वह समस्त तीर्थो के स्नान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य शिवरात्रि का उपवास नहीं करता, वह जन्म-मरण के चक्र में घूमता रहता है। शिवरात्रि का व्रत करने वाले इस लोक के समस्त भोगों को भोगकर अंत में शिवलोक में जाते हैं।

शिवरात्रि
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कही गई है। इस दिन शिवोपासना भुक्ति एवं मुक्ति दोनों देने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन अर्धरात्रि के समय भगवान शिव लिंगरूप में प्रकट हुए थे। माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
॥ शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ ||
भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए। कुछ विद्वान प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में ग्रहण करते हैं। नारद संहिता में आया है कि जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी कही गई है।

ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं, जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं। यद्यपि चतुर्दशी का चंद्रमा क्षीण रहता है, लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं। मारक या अनिष्ट की आशंका में महामृत्युंजय शिव की आराधना ग्रहयोगों के आधार पर बताई जाती है। बारह राशियां, बारह ज्योतिर्लिगों की आराधना या दर्शन मात्र से सकारात्मक फलदायिनी हो जाती है। यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।

माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीव है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।

पूजन
शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए। शिव को बिल्वपत्र, धतूरे के पुष्प अति प्रिय हैं। अत: पूजन में इनका उपयोग करें। जो इस व्रत को हमेशा करने में असमर्थ है, उन्हें इसे बारह या चौबीस वर्ष करना चाहिए। शिव का त्रिशूल और डमरू की ध्वनि मंगल, गुरु से संबद्ध हैं। चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान होकर अपनी कांति से अनंताकाश में जटाधारी महामृत्युंजय को प्रसन्न रखता है तो बुधादि ग्रह समभाव में सहायक बनते हैं। सप्तम भाव का कारक शुक्र शिव शक्ति के सम्मिलित प्रयास से प्रजा एवं जीव सृष्टि का कारण बनता है। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है।

||महा मृत्‍युंजय मंत्र ||
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्

ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री˜यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

भगवनान शिव के अन्य नाम
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है
रूद्र - रूद्र से अभिप्राय जो दुखों का निर्माण व नाश करता है।
पशुपतिनाथ - भगवान शिव को पशुपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवआत्माओं के स्वामी हैं
अर्धनारीश्वर - शिव और शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम प्रचलित हुआ।
महादेव - महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति।
भोला - भोले का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वाला। यह विश्वास किया जाता है कि भगवान शंकर आसानी से किसी पर भी प्रसन्न हो जाते हैं।
लिंगम - यह रोशनी की लौ व पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है।
नटराज - नटराज को नृत्य का देवता मानते है क्योंकि भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी हैं।शान्ति नगर स्थित शिवशक्ति दुर्गा मंदिर के पं. सोहनानंद जी महाराज ने बताया कि शिवरात्रि को रात्रि में चार बार हर तीन घंटे बाद रुद्राभिषेक किया जाता है। इससे जातक का कालसर्प दोष व सभी गृहदोष दूर हो जाते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा- निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर- त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा- विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर- द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल- ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो- र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥


भगवान शिव के 108 नाम
शिव - कल्याण स्वरूप
महेश्वर - माया के अधीश्वर
शम्भू - आनंद स्स्वरूप वाले
पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले
शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
विरूपाक्ष - भौंडी आँख वाले
कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले
शंकर - सबका कल्याण करने वाले
शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले
विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अतिप्रेमी
शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
अंबिकानाथ - भगवति के पति
श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी
शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले
शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
कपाली - कपाल धारण करने वाले
कामारी - कामदेव के शत्रु
अंधकारसुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले
गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
ललाटाक्ष - ललाट में आँख वाले
कालकाल - काल के भी काल
कृपानिधि - करूणा की खान
भीम - भयंकर रूप वाले
परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले
मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
जटाधर - जटा रखने वाले
कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
कवची - कवच धारण करने वाले
कठोर - अत्यन्त मजबूत देह वाले
त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
वृषांक - बैल के चिह्न वाली झंडा वाले
वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले
भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले
स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
अनीश्वर - जिसका और कोई मालिक नहीं है
सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
परमात्मा - सबका अपना आपा
सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले
हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले
सोम - उमा के सहित रूप वाले
पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाल
विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर
वीरभद्र - बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले
गणनाथ - गणों के स्वामी
प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाल
हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
गिरीश - पहाड़ों के मालिक
गिरिश - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
अनघ - पापरहित
भुजंगभूषण - साँप के आभूषण वाले
भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
भगवान् - सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न
प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति
मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
जगद्गुरू - जगत् के गुरू
व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले
रूद्र - भक्तों के दुख देखकर रोने वाले
भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाल
सात्त्विक - सत्व गुण वाले
शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
शाश्वत - नित्य रहने वाले
खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
अज - जन्म रहित
पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
मृड - सुखस्वरूप वाले
पशुपति - पशुओं के मालिक
देव - स्वयं प्रकाश रूप
महादेव - देवों के भी देव
अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
हरि - विष्णुस्वरूप
पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले
अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाल
हर - पापों व तापों को हरने वाले
भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले
सहस्रपाद - अनंत पैर वाले
अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
अनंत - देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित
तारक - सबको तारने वाला
परमेश्वर - सबसे परे ईश्वर

मार्च माह का राशिफल 2012

मार्च माह का राशिफल 2012

ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 09827198828


मेष : आपका नया मकान बन सकता है. कारोबार में गति सामान्य रहेगी. राजनीतिक माहौल मे आपका रुतवा बढ सकता है. विरोधी आपके सामने चारों खाने चित्त होंगे. हां, बेकार के कानूनी पचड़ों में पडऩे से बचें. कुछ विशेष व्यापारी वर्ग से आपको लाभ हो सकता है.
वृष: परिवारजनों के सहयोग से जीवन में खुशियां आएंगी. धन के अपव्यय से बचें. बाहर घूमने का कार्यक्रम बन सकता है. शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी. प्रेम संबंध मजबूत होगी. व्यापार में लाभ एवम उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे.
मिथुन: अच्छा वक्त आने को है. शुभ संदेश जीवन में खुशियों की बौछार लेकर आएंगे. इस अच्छे समय का पूरा फायदा उठाएं. कमाई के नए साधन मिलेंगे. परिवार में सुख-शांति रहेगी. मन प्रसन्न रहेगा .व्यापारियों के लिए नए अवसर खुलेंगे.
कर्क: सेवार्थ कुछ समय बिताइए, लाभ होगा. छोटी-मोटी बीमारियों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्वास्थ्य ठीक रहेगा. आर्थिक पक्ष भी सामान्य ही रहेगा. प्रेम-प्रसंगों में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें.
सिंह:  मेहनत रंग लाने लगी है, लेकिन अति महत्वाकांक्षी बनने से बचें. रणनीति बनाकर ही आगे बढ़ें. सेहत ठीकठाक रहेगी. वाहन चलाते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतें. पारिवारीक कलह से बचने का प्रयत्न करें, कहा गया है-जहां सुमती तंह सम्पति नाना।
कन्या: मजबूत इच्छाशक्ति के बिना आप कामयाबी नहीं पा सकेंगे. आपकी मेहनत की सराहना तो होगी, लेकिन साथ ही शत्रुओं का आपके प्रति वैमनस्य भी बढ़ेगा. समय प्रबंधन से आप कई रुके हुए काम कर सकते हैं, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
तुला: कारोबार की दृष्टि से समय अनुकूल है. नए सौदे लाभकारी होंगे. ट्रांसपोर्ट से जुड़े व्यवसायियों के लिए विशेष तौर पर समय अच्छा है. धन आपके पास आएगा, लेकिन रुकेगा नहीं. किसी भी तरह के विवाद से दूर रहें.
वृश्चिक: आपके काम को सराहा तो जाएगा, लेकिन उसके लिए आपको धैर्य रखना होगा. सेहत सामान्यं रहेगी. बॉस के साथ संबंधों में सुधार होगा. शत्रु शांत रहेंगे. संतान की ओर से सुखद समाचार मिलेगा. विद्यार्थियों के लिए समयानुकूल है.
धनु: महीने का पहला पखवाड़ा थोड़ा निराश करने वाला रहेगा. बनते काम बिगड़ेगें सफलता मुश्किल होगी. मुकदमेबाजी में ना फंसें, अपने क्रोध पर काबू रखें. किसी भी तरह के विवाद से दूर रहने में ही भलाई है. 15 तारीख के बाद स्थिति में सुधार होगा. आय के नए स्रोत खुलेंगे.
मकर: सामान्य महीना. सत्पुरुषों के संग से लाभ होगा. रुका हुआ धन मिल सकता है. विद्यार्थी वर्ग को फायदा होगा. शत्रु आप पर हावी होने के प्रयास में हैं, सावधान रहें. व्यर्थ की बातों में समय खर्च न करें.
कुम्भ: 15 तारीख से पहले कोई नया काम शुरू न करें. महीने के दूसरे पखवाड़े में आपके लिए हालात बदलने वाले हैं. कहीं दूर से मिला कोई शुभ समाचार मिल सकता है. रुका हुआ धन आएगा. कानूनी पेंच आपको थोड़ा परेशान कर सकते हैं. नकारात्मक लोगों से दूर रहें. विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता मिलेगी.
मीन: बॉस से किसी तरह का विवाद हो सकता है, आपका अडिय़ल रवैया हालात बिगाड़ सकता है. नौकरी में परेशानी रहेगी. आर्थिक रूप से परेशान रह सकते हैं. जीवनसाथी का रवैया आपको परेशानी में डाल सकता है.
नोट: हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.