ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बंधक प्रधानमंत्री “बंधन” तोड़ो !!

Author:   कुशल सचेती

अलवर

बंधक प्रधानमंत्री “बंधन” तोड़ो !!



क्या इस मुल्क की किस्मत में बंधक प्रधानमंत्री लिखा हुआ है जिसे अपने मंत्रियो से लेकर उनके विभागों तक का फैसला करने का अधिकार ना हो ! क्या यह मुल्क ऐसे गृहमंत्री की रहनुमाई में खुद को महफूज़ रख सकता है जो सीना तान कर यह कहे कि मुम्बई में हुआ आतंकवादी हमला खुफिया तंत्र की चूक इसलिए नही है क्यों कि गुप्तचर एजेंसियों को ऐसे किसी हमले की पहले से कोई जानकारी ही नही थी ? क्या यह मुल्क ऐसे नोसिखिये सियासत दां होने का दावा करने वाले नई पीढ़ी के नुमाइंदों की सरपरस्ती कबूल कर सकता है जो छाती चौडी करके यह कहते है कि आतंकवादी हमलों के साथ जीना सीखना होगा क्योकि इन्हें पूरी तरह खत्म नही किया जा सकता ? क्या यह मुल्क ऐसे कांग्रेसियों के भरोसे अपना रास्ता तय कर सकता है जो यह कहे कि हिन्दोस्तान में दहशतगर्दी पाकिस्तान से कम है ! मै इन  कांग्रेसियों को चेतावनी देता हूँ कि वे अब इस नई सदी में खानदानी विरासत की राजनीति का लोभ छोड़ कर खुद को भीतर से मजबूत करे और इस देश के लोगो को वो लोकतंत्र दे जिसका वायदा आजादी हासिल करते समय महात्मा गांधी और पं.नेहरू ने लोगो के साथ किया था | आखिरकार इस मुल्क के लोग कब तक पं नेहरू की देश सेवा और कुर्बानियों के ‘मूलधन’ का ‘ब्याज’ चुकाते रहेंगे और मुगलिया सल्तनत की तर्ज़ पर बादशाह के बेटे को बादशाह बनाते रहेगे ? इस देश का पट्टा किसी खास खानदान के नाम लोगो ने नही लिख दिया है कि वे अपने उन हकूको को गिरवी रख दे जो उन्हें इस मुल्क के संविधान ने दिए है | सरकार का ठेका किसी खास पार्टी या खानदान को लोकतंत्र में नही दिया जा सकता | बेशक डा. मनमोहनसिंह लोगो द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री नही है मगर वह हमारे देश के संविधान के अनुरूप पूरे वजीरे आजम है | उनके इस इस अधिकार को दुनिया का कोई भी व्यक्ति चुनौती नही दे सकता कि वः किस व्यक्ति को अपने मंत्रमंडल में शामिल करे और किसे बाहर करे | सरकार चलाना पार्टी अध्यक्ष का काम बिलकुल नही है और ना ही प्रधानमंत्री के सरकारी कामो में किसी प्रकार का दबाव बनाना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है मगर देखिये मनमोहन सरकार को कैसे परदे के पीछे से हांका जा रहा है |
आखिरकार इस देश के प्रधानमंत्री को बेअख्तियार दिखा कर कांग्रेसी क्या पूरी दुनिया को यह पैगाम नही दे रहे है कि हुकूमते हिन्दोस्तान केवल उनकी कठपुतली है और परदे के पीछे से वे जैसे चाहेगे उसे नाचायेगे | सोचना मनमोहन सिंह को है कि वह निजी तौर पर एक ईमानदार व्यक्ति होते हुए किस तरह बेईमानों के हित साधने के लिए मोहरा बना दिए गए है | सोचना इस देश के संवैधानिक प्रधानमंत्री को है कि किस तरह कुछ लोग उन्हें अपने अहसानो के साये तले दबा कर पूरे मुल्क को अँधेरे में डुबोना चाहते है | इसकी बागडोर ऐसे नौसिखए के हाथ में देना चाहते है जिसे यह तक मालूम ना हो कि दहशतगर्दी हिन्दोस्तान के वजूद में शुरू से कभी नही रही | मगर देखिये क्या क़यामत है कि इस मुल्क में दहशतगर्दी फैलाने वालो के इलाके आजमगढ़ को नवजात कांग्रेसी दिग्विजय सिंह ने तीर्थ स्थल बना दिया | आखिरकार कोई तो सीमा होगी वैचारिक खोखलेपन की कि भारत की तुलना उस पाकिस्तान से की जाए जो पूरी दुनिया में दहशतगर्दी की खेती करने वाला उपजाऊ मुल्क बना हुआ है | क्या इस मुल्क की सियासत को पाकिस्तान की तर्ज पर चलाने की ये कांग्रेसी सोच रहे है जंहा मज़हब के नाम पर लोगो का क़त्ल किया जाता हो, उससे भारत की तुलना की जा रही है | यह दहशतगर्दी फैलाने वालो के मन-माफिक बात होगी क्यों कि उनका इरादा ही यह है कि भारत की गंगा-जमुनी गुलदस्ता तहजीब को खून की नदियों से सींचे मगर इसे रोकेगा कौन ?? यह काम मनमोहन ही कर सकते है और ‘बाँसुरी’ छोड़ कर आज के इस राजनीतिक महाभारत के ‘कुरुक्षेत्र’ में अपना ‘विराट’ स्वरूप दिखा कर सुतार्शन चक्र धारण करके अपने ही ‘परिवार’ के कौरवो का विनाश करने प्रण ले सकते है | हिम्मत है तो उठो औए पांचजन्य फूंक कर सत्ता के कौरवो का विनाश करो |
“मत पूछ क्या हाल है मेरा तेरे आगे,
तू देख क्या रंग है तेरा मेरे पीछे”

........ जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्माएं

........ जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्माएं
पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है।

दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्?मत रखतें है।
जैकिला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्माएं
पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है।

दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्?ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है।

कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्?जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्?थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्?यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं।

भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में

भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्?दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्?या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्?वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।

चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्?पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्?यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्?य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्?थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।

भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप

भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्?नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्?य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्?छुक थे।

उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्?यो से उनके लिए विवाह के प्रस्?ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्?नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्?यक्ति खड़ा होकर उन्?हे बहुत ही गौर से देख रहा था।

सिंघीया उसी राज्?य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।

राजकुमारी रत्?नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्?थर पर पटक दिया। पत्?थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्?थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्?थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्?द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्?म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्?माएं इस किले में भटकती रहेंगी।

उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्?नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्?लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू?हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्?त के बाद प्रवेश निषेध

फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्?त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्?त के बाद इस इलाके किसी भी व्?यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्?त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।

किलें में रूहों का कब्जा
इस किले में कत्?लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्?या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्?चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।

इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडिय़ों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्?सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्?त बहुत ही सन्?नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती हैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्?वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्?ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है।

कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क?ि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्?जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्?थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्?यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं।

भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में

भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्?दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।

चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्?पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्?यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।

भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप

भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्?नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्?य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे।

उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्?यो से उनके लिए विवाह के प्रस्?ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्?नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्?यक्ति खड़ा होकर उन्?हे बहुत ही गौर से देख रहा था।

सिंघीया उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।

राजकुमारी रत्?नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्?थर पर पटक दिया। पत्?थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्?थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्?थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्?द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी।

उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्?नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू?हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध

फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्?त के बाद इस इलाके किसी भी व्?यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्?त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।

किलें में रूहों का कब्जा
इस किले में कत्?लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्?या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।

इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडिय़ों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्?सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्?नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है

सोमवार, 8 अगस्त 2011

चमकते चांद को......

बड़ा दिलकश बड़ा रंगीन है ये शहर कहते हैं,
यहां पर हैं हजारों घर, घरों में लोग रहते हैं,
मुझे इस शहर ने गलियों का बंजारा बना डाला,
मैं इस दुनिया को अक्सर देख कर हैरान हूं,
ना मैं बना सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूं,
खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला,
मेरे मालिक मेरा दिल क्यों तड़पता है, सुलगता है,
तेरी मर्जी पे किसका जोर चलता है,
किसी को गुल किसी को तुने अंगारा बना डाला,
यही आगाज था मेरा, यही अंजाम होना था,
मुझे बरबाद होना था, मुझे नाकाम होना था,
मुझे तकदीर ने तकदीर का मारा बना डाला,
चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला।
मेरी आवारगी ने मुझको आवारा बना डाला।।

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में बनेगी शिल्प वाटिका


Akashat kaushal choubey

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में बनेगी शिल्प वाटिका

रायपुर, 31 जुलाई 2011
    परम्परागत हस्तशिल्पियों के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द तीर्थ डोंगरगढ़ में लगभग चालीस एकड़ के रकबे में 'शिल्प वाटिका' की स्थापना की जाएगी। यह शिल्प वाटिका राजधानी रायपुर के पण्डरी स्थित छत्तीसगढ़ हाट की तर्ज पर होगी। उल्लेखनीय है कि राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में ऊंची पहाड़ी पर मां बम्लेश्वरी का अत्यन्त प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर स्थित है, जहां हर साल लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री आते-जाते हैं। भक्तों की यह संख्या प्रतिदिन दस हजार के आस-पास होती है, जो रविवार और अन्य सरकारी सार्वजनिक छुट्टियों के दिनों में इससे भी अधिक होती है। शारदीय और चैत्र नव-रात्रि में इस तीर्थ भूमि में श्रध्दालुओं की चहल-पहल काफी बढ़ जाती है।
    मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वहां तीर्थ यात्रियों के बीच प्रदेश के हस्तशिल्प का आकर्षण बढ़ाने के लिए 'शिल्प वाटिका' की स्थापना के लिए छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड को कार्य योजना बनाने के निर्देश दिए थे, ताकि प्रदेष के काष्ठ शिल्पियों, बांस शिल्पियों, बेल मेटल और ढोकरा शिल्पियों और कोसे के कलात्मक कपड़े बनाने वाले हाथ करघा बुनकरों को अपने सामानों के लिए बेहतर बाजार और पर्याप्त संख्या में ग्राहक मिल सकें। इसी तारतम्य में बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह ने कल डोंगरगढ़ का दौरा किया। दौरे में बोर्ड के प्रबंध संचालक तथा प्रमुख सचिव ग्रामोद्योग श्री पी. रमेश कुमार और बोर्ड के मुख्य महाप्रबंधक श्री सुनील अवस्थी सहित सरगुजा, दुर्ग और बस्तर जिले के कुछ हस्त शिल्पी भी उनके साथ थे। बोर्ड अध्यक्ष ने डोंगरगढ़ में शिल्प वाटिका के लिए अधिकारियों और शिल्पियों के साथ विचार-विमर्श कर स्थल चिन्हांकित किया। उन्होंने बताया कि बोर्ड की इस नयी परियोजना के तहत प्रस्तावित शिल्प वाटिका में लगभग चालीस एकड़ भूमि पर झरने, झील और शिल्पियों के लिए कुटीर भी बनवाए जाएंगे, जहां रहकर वे अपनी कलाकृतियों की बिक्री कर सकेंगे। चिन्हांकित भूमि पर 'शिल्प वाटिका' के निर्माण से छत्तीसगढ़ के इस तीर्थ क्षेत्र का सौंदर्य और भी अधिक बढ़ जाएगा। पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी के मंदिर प्रांगण से 'शिल्प वाटिका' का नजारा भी श्रध्दालुओं को काफी पसंद आएगा। हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष मेजर अनिल सिंह ने डोंगरगढ़ से लौटते हुए राजनांदगांव के कुष्ठ प्रभावितों की कॉलोनी 'आशा नगर' का भी दौरा किया, जहां उन्होंने 80 महिलाओं को कसीदाकारी और गोदना शिल्प में प्रशिक्षण दिलाने का ऐलान किया। बोर्ड अध्यक्ष ने कहा कि ये महिलाएं प्रशिक्शित होकर जिन कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करेंगी, उनकी बिक्री की व्यवस्था बोर्ड की ओर से की जाएगी।
    यह भी उल्लेखनीय है कि सैकड़ों वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने हाथों के हुनर के जरिए काष्ठकला, मूर्तिकला और सुरूचि पूर्ण वस्त्र निर्माण कला को रोजी-रोटी का माध्यम बनाकर जीवन यापन कर रहे छत्तीसगढ़ के हजारों हस्तशिल्पियों को राज्य सरकार द्वारा आधुनिक बाजार व्यवस्था से भी जोड़ने की जोरदार पहल की जा रही है, ताकि उन्हें अच्छी आमदनी मिल सके। राज्य में हस्तशिल्प की समृध्द परम्परा को आधुनिकता से जोड़ने के लिए चल रहे प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मंशा के अनुरूप इन ग्रामीण कारीगरों की कलाकृतियों को थ्री-डी होलोग्राम से चिन्हांकित किया जा रहा है, वहीं उनमें कम्प्यूटर के जरिए बारकोडिंग भी की जा रही है। इससे छत्तीसगढ़ के शिल्पकारों की इन कलाकृतियों को जहां अलग से पहचाना जा सकेगा, वहीं ग्राहकों को शुध्द और गुणवत्ता वाली कलाकृतियां भी मिल सकेंगी। मुख्यमंत्री की विशेष पहल पर राजधानी रायपुर में अब तक चार 'शबरी एम्पोरियम' भी खोले जा चुके हैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल देर रात यहां आमापारा में थ्री-डी होलोग्राम और बारकोडिंग वाली इन कलाकृतियों से सुसज्जित दुकान 'शबरी एम्पोरियम' का शुभारंभ किया। छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा राजधानी रायपुर के पंडरी स्थित छत्तीसगढ़ हाट, माना विमानतल और पुरखौती मुक्तांगन में संचालित किए जा रहे शबरी एम्पोरियमों की श्रृंखला में यह चौथा एम्पोरियम है जो लगभग 1200 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले भवन में शुरू किया गया है, जहां छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के कारीगरों के ढोकरा शिल्प, लौह शिल्प, टेराकोटा, बांस और काष्ठ शिल्प, सीसल, गोदना, कौड़ी तथा आरी शिल्प की कलाकृतियां आम नागरिकों को उचित मूल्य पर उपलब्ध होगी। कोसे के कलात्मक कपड़े भी इस एम्पोरियम में उपलब्ध रहेंगे। यहां पर खरीदे जाने वाले सामानों की कीमतों में ग्राहकों को बीस प्रतिशत की विशेष रियायत भी दी जाएगी।

रक्षा-बंधन का पर्व


storiesभारत त्यौहारों का देश है. दिवाली, होली, दशहरा और रक्षा बंधन यहां के कुछ एक प्रसिद्ध त्यौहार है. इन त्यौहारों में रक्षा बंधन विशेष रुप से प्रसिद्ध है. रक्षा-बंधन का पर्व भारत के कुछ स्थानों में रक्षासूत्र के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल से यह पर्व भाई-बहन के निश्चल स्नेह के प्रतीक के रुप में माना जाता है. हमारे यहां सभी पर्व किसी न किसी कथा, दंत कथा या किवदन्ती से जुडे हुए है. रक्षा बंधन का पर्व भी ऎसी ही कुछ कथाओं से संबन्धित है. रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, यह जानने का प्रयास करते है.
रक्षा बंधन के पौराणिक आधार
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुडा हुआ है. कथा कुछ इस प्रकार है. एक बार की बात है, कि दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे करने के बाद चाहा कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो, राजा बलि कि इस मनोइच्छा का भान देव इन्द्र को होने पर, देव इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा.

घबरा कर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में गयें. भगवान विष्णु वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें. ब्राह्माण बने श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी.
वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दुसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया. अभी तीसरा पैर रखना शेष था. बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया. ऎसे मे राजा बलि अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होगा है. आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए. वामन भगवान ने ठिक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि परलोग पहुंच गया.

बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें. इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया., श्री विष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा. इस समस्या के समाधान के लिये लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया. लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांध अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आई. इस दिन का यह प्रसंग है, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी. उस दिन से ही रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाने लगा.
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देव और दानवों में युद्ध शुरु हुआ, युद्ध में देवता पर दानव हावी होने लगें. यह देखकर पर इन्द्र देव घबरा कर बृ्हस्पति के पास गये. इसके विषय में जब इन्द्राणी को पता चला तो उन्होने ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर इसे अपने पति के हाथ पर बांध लिया. जिस दिन यह कार्य किया गया उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था. उसी दिन से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन यहा धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है.

रक्षा बंधन का ऎतिहासिक आधार

बात उस समय की है, जब राजपूतों और मुगलों की लडाई चल रही थी. उस समय चितौड के महाराजा की की विधवा रानी कर्णवती ने अपने राज्य की रक्षा के लिये हुमायूं को राखी भेजी थी. हुमायूं ने भी उस राखी की लाज रखी और स्नेह दिखाते हुए, उसने तुरम्त अपनी सेनाएं वापस बुला लिया. इस ऎतिहासिक घटना ने भाई -बहन के प्यार को मजबूती प्रदान की. इस घटना की याद में भी रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है.

महाभारत में द्वौपदी का श्री कृ्ष्ण को राखी बांधना

राखी का यह पर्व पुराणों से होता हुआ, महाभारत अर्थात द्वापर युग में गया, और आज आधुनिक काल में भी इस पर्व का महत्व कम नहीं हुआ है. राखी से जुडा हुआ एक प्रसंग महाभारत में भी पाया जाता है. प्रंसग इस प्रकार है. शिशुपाल का वध करते समय कृ्ष्ण जी की तर्जनी अंगूली में चोट लग गई, जिसके फलस्वरुप अंगूली से लहू बहने लगा. लहू को रोकने के लिये द्रौपदी ने अपनी साडी की किनारी फाडकर, श्री कृ्ष्ण की अंगूली पर बांध दी.

इसी ऋण को चुकाने के लिये श्री कृ्ष्ण ने चीर हरण के समय द्वौपदी की लाज बचाकर इस ऋण को चुकाया था. इस दिन की यह घटना है उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा थी.

रक्षा बंधन का धार्मिक आधार

भारत के कई क्षत्रों में इसे अलग - अलग नामों से अलग - अलग रुप में मनाया जाता है. जैसे उतरांचल में इसे श्रावणी नाम से मनाया जाता है भारत के ब्राह्माण वर्ग में इस इन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है. इस दिन यज्ञोपवीत धारण करना शुभ माना जाता है. इस दिन ब्राह्माण वर्ग अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते है. अमरनाथ की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा भी रक्षा बंधन के दिन समाप्त होती है.

रक्षा बंधन का सामाजिक आधार

भारत के राजस्थान राज्य में इस इद्न रामराखी और चूडा राखी बांधने की परम्परा है. राम राखी केवल भगवान को ही बांधी जाती है. व चूडा राखी केवल भाभियों की चूडियों में ही बांधी जाती है. यह रेशमी डोरे से राखी बनाई जाती है. यहां राखी बांधने से पहले राखी को कच्चे दूध से अभिमंत्रित किया जाता है. और राखी बांधने के बाद भोजन किया जाता है.

राखी के अन्य रुप

भारत में स्थान बदलने के साथ ही पर्व को मनाने की परम्परा भी बदल जाती है, यही कारण है कि तमिलनाडू, केरल और उडीसा के दक्षिण में इसे अवनि अवितम के रुप में मनाया जाता है. इस पर्व का एक अन्य नाम भी है, इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से पहले तक ठाकुर झुले में दर्शन देते है, परन्तु रक्षा बंधन के दिन से ये दर्शन समाप्त होते है.