हनुमानजी के 'अतुलित बलधामं' बनने का क्या है सबसे बड़ा राज ??
मित्रों, सुप्रभात आईए आज मंगलवार को श्रीराम भक्त श्री हुनमानजी के जीवन चरित्र से एक सीख लें। एक साधारण राज्य किष्किन्धा नरेश केसरी के यहाँ अवतरीत हुए परम भक्त हनुमान जी ने अपने उत्साह के बदौलत, देवासुर संग्राम विजयी दिलाने वाले राजा दशरथ के पुत्र तथा स्वयं विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम जैसे संप्रभुत्वशाली तथा ताकतवर राजकुमार को रावण जैसे महान योद्धा से हुये युद्ध मे हनुमान जी उत्साह रुपी शौर्य ने विजय हासिल कराया। हुन्मानजी के पराक्रम का सिलसिला यहीं तक नहीं रुका, आगे इन्होंने अपनी माँ अन्जना का शरणागत त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण के मर्यादा के लिए प्रभु श्रीराम से ही युद्ध किये। वास्तविक में इसी साहस को देखकर गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है..अतुलित बल धामं..यानि अतुलनीय बलवान हनुमान जी थे। और इस महान पराक्रमी को शौर्यवीर बनाने में सबसे बड़ी भूमिका रही है, हनुमानजी के उत्साह की। आईये जरा इस श्लोक के माध्यम से भी इसे समझने का प्रयास करते हैं-उत्साहो बलवानार्य
नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु
न किंचिदपि दुर्लभम्॥
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है॥
अतः मित्रों किसी भी कार्य को करने का मन में उत्साह हो तो निश्चित ही वह व्यक्ति उस हर ऊँचाईयों को स्पर्श करता है, जहाँ तक पहुँचना सर्वजन सामान्य के लिए आसान नहीं रहता। आप सभी से निवेदन है आपलोग किसी भी कार्य को उत्साहपूर्वक करें।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ठ्रीय मासिक पत्रिका भिलाई, जिला- दुर्ग (छ.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें