ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 17 अगस्त 2016

रिश्तों की डोर को मजबूत करता है रक्षाबंधन विशेष मुहूर्र्त में करें रक्षाबंधन महापर्व....

रिश्तों की डोर को मजबूत करता है रक्षाबंधन

विशेष मुहूर्र्त में करें रक्षाबंधन महापर्व....

रक्षा बंधन के पावन पर्व पर आप सभी मित्रों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएं...
हमारे भारत में कई ऐसे पर्व हैं जिनकी प्रामाणिकता के साथ ही वैज्ञानिकता तथा व्यावहारिकता की कसौटी पर खरे उतरता है, आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं विषयांतर बाते क्यों कह रहा हुँ, तो आज इस विषय पर पौराणिक, वैज्ञानिक तथा इससे भी महत्त्वपूर्ण हमारे जीवन जीने की शैली अर्थात् व्यावहारिकता है, जो आज रिश्तों की दीवार दरकती जा रही है। काश़ आजकल के नौजवान साथियों को यदि रक्षाबंधन के पर्व से जुड़े पौराणिक तथ्य, वैज्ञानिक चाहे वह मनोविज्ञान के शोधन का विषय हो अथवा प्राकृतिक विज्ञान की बात हो अथवा इतिहास के पन्नों पर रक्षा-सूत्र-बंधन के उन प्रसंगो की जो हमें ना केवल स्वच्छ जीवन जीने की सलाह देते हैं वरन हमारे समाज में पाश्चात्य देशों से आयातित व्यावहारिक नग्नता जैसे रिश्तों को शर्मसार करतीं यौन-शोषण के कई ऐसे मामले प्रकाश में आये जिसे इस लेख में बयां करना मुश्किल है, साथियों ऐसा इसलिये हो रहा है, क्योंकि हम भारतीय संस्कृति को छोड़, इण्डिया-कल्चर की दौड़ चलें हैं। तो आइये हम रक्षाबंधन पर्व को समझने के पहले ज्योतिषिय दृष्टि से रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।


रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त :

मैंने आज ही पंचांग देखा तो बहुत आनन्द हुआ कि- चलो भाई इस वर्ष हम प्रात: कालीन राखी का पर्व मना पायेंगे। 18 अगस्त 2016 दिन गुरूवार को ही मनाया जायेगा, क्योंकि इस बार किसी भी प्रकार का भद्रा आदि दोष नहीं है। 17 अगस्त2016 को अपराह्न काल 3 बजकर 35 मिनट 59 सेकेंड से पुर्णीमा आरंभ हो जा रहा है, जो 188 अगस्त 2016 को अपराह्न 2बजकर 57 मिनच 44 सेकेंड तक रहेगा। अत: 18 अगस्त को अपराह्न काल तक पुर्णीमा के मौजूद रहने से प्रतिपदा का वेध नहीं माना जायेगा अत: निर्विवाद रूप से पुर्णीमा और रक्षाबंधन दोनों पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा।

विशेष मुहूर्त

(1) सूर्योदय से- 8 बजकर 20 मिनट तक शुभ की चौघडिय़ा।
(2) 11 बजकर 3 मिनट से-दोप. 12 बजकर 25 मिनट तक चर की चौघडिय़ा।
(3) दोपहर 1 बजकर 47 मिनट से 2 बजकर 44 मिनट कर लाभ की चौघडिय़ा रहेगी। वैसे तो रक्षासूत्र बांधने का पुर्णीमा पर्यन्त मुहूर्त है किन्तु उपरोक्त रक्षाबंधन हेतु विशेष शुभकारक मुहूर्त हंै।
रक्षासूत्र बांधते समय एक श्लोक का उच्चारण किया जाता है। इसमें कहा गया है कि जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। यह श्लोक है -
देवद्विजातिशस्ता सुस्त्रीरघ्र्ये: समर्चयेत् प्रथमम्। 
तदनु पुरोघा नृपते: रक्षां वघ्नीत मन्त्रेण।।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षा मा चल मा चल।। भविष्योत्तर पुराण (137719-20)

रक्षाबंधन का प्रगैतिहासिक एवं पौराणिक महत्त्व :

सूत्र अथवा धागा का मात्र एक ही उद्देश्य होता है बांधना, अर्थात् बंधन चाहे वह बंधन अपने इष्ट, गुरू, राष्ट्र, पुत्र, पत्नि, भाई-बहन आदि जिन रिश्तों की डोर (धागा या सूत्र) से हम बंधे हैं, वह कोई सामान्य धागा नहीं बल्कि रिश्तों के रक्षार्थ एक दृढ़ संकल्प के समान है अर्थात् प्रतीक है। आगे मानवीय रिश्तों के अलावा प्रकृति की रक्षा हेतु वृक्षों को भी रक्षासूत्र बांधा जाता है।
आखिर ये सामान्य व निर्जीव सूत्र (धागा) भला रक्षा कैसे कर सकता है, तो इस संदर्भ में भगवान कृष्ण ने गीता में बहुत सुन्दर व्याख्या की है-
मयी सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा ईव
अर्थात् धागा केवल जोडऩे का काम करता है  जैसे बिखरे हुए मोतियों को आपस में जोड़कर माला बनाता है, वैसे ही सामन्य धागा मानव जीवन के रक्षार्थ एक दूसरे के लिए जोडऩे का काम करता है। जिससे ना केवल मानव मात्र, अपितु, पशु, पक्षी, वृक्ष, जल आदि पंच तत्त्वों सहित आपसी वैर-भाव मिटाकर शत्रुओं को भी मित्र बनाने में यह सामान्य धागा केवल जोडऩे का ही काम करता है।
मानव से जुड़ाव का सीधा मतलब मानवीय सामान्य व्यवहाारिकता जैसे, भाई-बहन के रिश्ते, मां-बेटा के रिश्ते, पति-पत्नि के रिश्ते आदि रिश्तों में यह सामान्य सूत्र रक्षा का परिचायक बन जाता है।

पौराणिक संदर्भ :
भविष्योत्तर पुराण के हैमाद्रि में इस पर्व से जुड़े कुछ प्रसंग देखने को मिलता है जिसमें सर्व प्रथम रक्षा सूत्र देवगुरू वृहस्पति अपने प्रिय यजमान इन्द्र को बांधते हैं, और राक्षसों द्वारा प्रायोजित युद्ध में इन्द्र के विजयी होने का आशीर्बाद देते हैं, प्राय: आज भी भारत में परम्परा है कि रक्षाबंधन सर्वप्रथम ब्राह्मण (पूरोहित) द्वारा यजमान को बंाधा जाता है।
इसी प्रसंग में देवासुर संग्राम में राष्ट्र की रक्षा हेतु तथा देवताओं की सुरक्षार्थ इन्द्र की पत्नि  ईन्द्राणी (शची)ने इन्द्र को रक्षाबंधन के इसी पावन पर्व पर रक्षासूत्र बांधा था। इससे यह प्रतीत होता है कि यह रक्षाबंधन जहां एक ओर भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है वहीं देशभक्ति का परिचायक भी है, जैसा कि ईन्द्राणी ने राष्ट्र की सुरक्षा की खातीर रक्षासूत्र बांधकर अपने पति इन्द्र को युद्ध के लिये विदा कि या था।

ऐतिहासिक पृष्ठों में यह रक्षाबंधन :
ग्रीक देश के नरेश पुरूराज ने युद्ध के दौरान महान योद्धा सिकन्दर पर प्राणघातक हमला कर दिया .. किन्तु उसी समय उनको स्मरण आया कि सिकन्दर की पत्नि ने मुझे राखी बांधी थी, अत: मैं अपनी बहन के सुहाग कैसे मिटा सकता हुं।
दूसरा प्रसंग आता है चित्तौड़ का। रानी कर्णावती ने गुजरात के बादशाह द्वारा चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दिया था उस समय युद्ध में सहयोग करने के लिए महारानी कर्णावती ने दिल्ली के बादशाह हुमायूं को राखी भिजवाया था। हालाकि संदेश थोड़ी विलंब से प्राप्त हुआ किन्तु संदेश व राखी मिलने के साथ ही हुमायूं ने चित्तौड़ के लिये भारी सैन्य बल के साथ चल पड़े, हुमायूं के विलंब से पहुंचने के कारण चित्तौड़ पर गुजरात के बादशाह के आक्रमण से भयाक्रान्त रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था। लेकिन हुमायूं ने इस भाई-बहन के रिश्तों को अमर कर दिया।
व्यावहारिकता के कसौटी पर खरे उतरने वाले भारतीय धर्म-संस्कृति के इन पर्व-प्रसंगो को आजकल के बच्चों को नैतिक शिक्षा बेहद आवश्यक है,  ताकि रिश्तों की डोर ये रक्षाबंधन के वास्तवीक महत्त्व को समझाया जा सके। आज समाज ने पाश्चात्य संस्कृति के आगोश में बैठने के इतने आदी हो चुके हैं कि भारतीय संस्कृति के पर्व-प्रसंग मात्र फार्मेल्टी सा समझ आने लगा है। अभी दो चार दिनों से मैं देख रहा हुं कि एक  विज्ञापन टेलिविजऩ चैनलों में चल रहा है -लड़का राखी बंधवाने के लिए अपनी बहन की तरफ हाथ बढ़ाता है, और बहन उसको राखी बांधती है, बाद में उपहार देने की बात आती है तो बहन अपने भाई से कहती है कि - भाई तुम मुझे कैटव्हरी मिल्क चाकलेट ही ऊपहार में देना.....आदि.....ऐसे विज्ञापनों से हमें परहेज करना चाहिए, जो भारतीय सांस्कृति पर्व प्रसंगो को हल्का कर रहे हों।

रक्षाबंधन अर्थात् राखी बांधने की विधी :
इस वर्ष लगभग तीन वर्ष बाद बिना भद्रा की राखी आई है जिसका हमें अत्यन्त अर्शे से इन्तजार था । प्रात: कालीन नित्य क्रिया संपन्न करने के बाद सुन्दर आसन पर रक्षासूत्र का पूजन अर्चन करें और सर्वप्रथम अपने इष्ट देव को राखी बांधें तथा उसके बाद बहन को चाहिये कि वह भाई पूर्वाभिमुख बैठाकर स्वयं पश्चिम मुख बैंठें और नारीयल, तिलक, अक्षत, आरती की थाली सजाकर रख लें और क्रमश: भाई को गोल तिलक लगाकर साबुत चावल के दाने तिलक में चिपकायें साथ ही भाई के हाथ में राखी बांधें और भाई को लक्ष्मी का प्रतीक फल नारीयल भाई के हाथ में रख कर आरती करें और मिठाई खिलावें। भाई को चाहिये की बहन को कुछ उपहार भेंट करें। पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रेम बढ़ता है। ग्राम पुरोहीत राखी बांधते समय यजमान की आरती ना करें बल्कि ग्राम पुरोहीत द्वारा स्वस्ति वाचन करते हुए:-
देवद्विजातिशस्ता सुस्त्रीरघ्र्ये: समर्चयेत् प्रथमम्।
तदनु पुरोघा नृपते: रक्षां वघ्नीत मन्त्रेण।।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षा मा चल मा चल।।
भविष्योत्तर पुराण (137719-20) का वाचन करें और यजमान को आशीर्बाद प्रदान करें । ग्राम पुरोहीत परिवार के सभी सदस्यों को स्त्री हो पुरूष सभी को राखी बांधना चाहिये।

(नोट- इस आलेख को तोड़-मरोड़ कर अन्य किसी पोर्टल पर प्रकाशित ना करें, वगैर अनुमति के ऐसा करते हुये पाये जाने पर  आपके उपर वैधानिक कार्यवाही हो सकती है)  

- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांति नगर भिलाई

 

 

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