ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

रविवार, 23 जून 2013

राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में भाग लेने के लिए...इस फार्म को डाउनलोड करें..और परिपूर्ण भर कर फार्म को कोरियर अथवा स्पीड पोस्ट से आज ही भेजें....

  '' ज्योतिष का सूर्य ''राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
 के चौथी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में

''धर्म-संस्कृति अलंकरण समारोह''
एवं
''राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन'' मान्यवर......................................................................................................................................



कार्यक्रम : 25 अगस्त2013 दिन रविवार
'मायाराम शिक्षण विकास समिति '(रजि. छ.ग.-3788),  द्वारा आयोजित'' धर्म-संस्कृति अलंकरण समारोह'' एवं राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन का कार्यक्रम छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिला के इस्पात् नगरी भिलाई में रखा गया है।

मित्रों,
विगत चार वर्षों से ज्योतिष का सूर्य राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ने भारतीय संस्कृति, वैदिक वाङ्मय, संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य, भारतीय प्राच्य  विद्याओं के निरन्तर प्रचार-प्रसार में स्वयं की तत्परता दिखायी है। जैसा कि आपको ज्ञात है कि भारतीय धर्म शास्त्रों में वर्णित राष्ट्र देवो भव: तथा वयं राष्ट्रे जागृयाम: इन दोनों वैदिक सूत्रों को लक्ष्य बनाकर भारतीय समाज के प्रगतिशील युवा एवं युवतियों सहित सभी वर्ग को राष्ट्र धर्म एवं  राष्ट्र संस्कृति से जोड़ने का सफलतम् प्रयास किया है, जिसकी निरंतरता आज भी बनी हुई है। इस सफलता का श्रेय आपके सहयोग एवं हमारी इस संस्था के प्रति आदर्श प्रेम को ही जाता है। आगे भी आप सभी से यही आशा है।

साथियों ... भारतीय संस्कृति, संस्कृत साहित्य, प्राच्य पुरातन भारतीय धर्म शास्त्रों का वैदेशिक शाक्तियों ने दमनकारी कुचक्र रचकर इन शास्त्रों  को अस्तीत्त्व विहीन बनाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, जो न केवल चिन्ता विषय है, वरन् हमें एकजूट हो उन्हें कठोर जवाब देने की भी आवश्यकता है। उन्हीं छ: शास्त्रों में (षड् वेदांग में) ज्योतिष शास्त्र है जिसे अंधविश्वास का पुलिंदा आदि शब्द बाणों से तमाम तरह की पीड़ा पहुँचाई जा रही है, जो असहनीय है। इस असह्य पीड़ा से भला कौन ज्योतिषी नहीं पीड़ित होगा। ऐसे तथाकथित वैदेशिक तत्त्वों को हम अपने गूढ़तम विचारों, आलखों, शोधपत्रों के माध्यम से मिल बैठकर एक विस्तृत चर्चा करें।

अत: मित्रों इन्हीं संदर्भों में हमने राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन का आयोजन भिलाई में आयोजित किया है, जिसमें आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है।

कार्यक्रम :
1. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दीप प्रज्वलन एवं शुभारंभ 02:00pm  2. स्वागत भाषण 02:30 pm
3. प्रख्यात ज्योतिर्विदों का उद्बोधन (विषय के अनुसार अलग-अलग) 03:00 pm to 04:00 pm
4. फेस टू फेस सवालों के जवाब..ज्योतिष एवं वास्तु समाधान (आम नागरिकों का) 04:00 Pm to 06:00pm !
5. प्रमाण पत्र वितरण (सभी ज्योतिष प्रतिभागियों को), ज्योतिष अलंकरण, पुरस्कार एवं स्वर्णपदक वितरण 06:00pm!
6. आभार प्रदर्शन 07:00 pm


शोध-पत्र विषय :


1.भारतीय संस्कृति में ज्योतिष और दैनिक जीवन में उपयोगिता।

2.कौन बनेगा प्रधानमंत्री..? वैदिक ज्योतिष  (2014 लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में)

3.पर्यावरणीय ज्योतिष एवं राष्ट्रोत्थान में ज्योतिष शास्त्र की भूमिका।

4.लाल किताब एवं वैदिक ज्योतिष का तूलनात्मक अध्ययन।

5.भारतीय युवा एवं युवतिओं में बढ़ती नशाखोरी के कारण एवं ज्योतिषिय निवारण के उपाय।
6. वास्तु में शल्य शोधन, भूमि शोधन तथा जल शोधन में तकनीकि एवं वास्तु शास्त्र की भमिका।
7. राजनीतिक सफलता के योग (हस्त रेखा, टैरो कार्ड एवं अंक विज्ञान)

कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण

सर्वोत्कृष्ट वक्ता, लेखक, शोधपत्र वाचक को ताम्रपत्र (प्रतीक चिह्न), स्वर्ण पदक (गोल्ड मेडल) से सम्मानित किया जायेगा। साथ ही अन्य ज्योतिष के प्रचार-प्रसार करने वाले ज्योतिष प्रतिभागियों को वरीयता के आधार पर ज्योतिष-प्रमाण पत्र भी प्रदान किया जायेगा, इस श्रेणी में उन्हीं को शामिल किया जायेगा जो विगत 5 वर्षों से ज्योतिष, वास्तु, रत्न अवं अंक ज्योतिष के अलावा अन्य संबंधित क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।



विशेष सूचना



00. कार्यालय में 10 अगस्त 2013 तक प्राप्त आलेखों को ही स्मारिका में स्थान दिया जायेगा।
00. आप यदि उपरोक्त किसी भी विषय पर शोधपत्र पढ़ना(भाषण देना) चाहते हैं तो, सम्पूर्ण शोधपत्र की एक प्रतिलिपी (कॉपी) 15 अगस्त 2013 तक स्पीड पोस्ट/ कोरियर द्वारा हमें भेज देवें। वरियता क्रम के आधार पर आपको प्राथमिकता मिलेगी।
00. स्वयं का पासपोर्ट साईज 4 फोटो, शैक्षणिक बॉयोडाटा, स्वयं का पता लिखा 2 लिफाफा अवश्य भेजें, ताकि हमें प्रवेश-पत्र भेजने में आसानी होगी।
00.भोजन एवं आवासीय व्यवस्था नि:शुल्क रखी गई है, परन्तु संस्था द्वारा यात्रा भत्ता देय नहीं होगा। इसमें संस्था आपके सहयोग कि अपेक्षा रखता है।
00.सम्मेलन का पंजीकरण शुल्क मात्र 1100/ रुपये सहयोग के रुप में प्रत्येक प्रतिनिधी से लिया जायेगा।
00.प्रतिनिधि के साथ आये हुए किसी भी व्यक्ति को भोजन एवं आवासीय व्यवस्था नि:शुल्क नहीं की जायेगी।
00.कृपया आप अपने आने की सूचना 5 अगस्त 2013 तक अवश्य दे दें, ताकि आपकी भोजन एवं आवास की समुचित व्यवस्था ठीक ढ़ंग से हो सके।

विशेष अनुरोध
सम्माननीय सभी ज्योतिषियों से अनुरोध है कि पहले से ही अपना रजिस्ट्रेशन करा लें। रजिस्ट्रेशन कराते ही आपको प्रवेश पत्र भेज दिया जायेगा। सहयोग राशि अपने ही शहर के किसी भी बैंक में ज्योतिष का सूर्य के नाम एकाउण्ट नं.14351131000227 ओरिएण्टल बैंक आॅफ कामर्स, उत्तर गंगोत्री, सुपेला, भिलाई के शाखा में जमा कराई जा सकती है। इसके बाद दिये गये फोन अथवा मोबाईल नं. पर उसकी पुष्टि कर दें।



अधिक जानकारी के लिए..यहाँ सम्पर्क करें....
आयोजक:  ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे 9827198828, भिलाई,  संरक्षक -पण्डित श्री दयानन्द शास्त्री.9024390067 (झालरापाटन राजस्थान) एवं रमेश सोनी 9630819481 पर भी संपर्क कर सकते हैं।

नोट- यदि किन्हीं कारण वशात् तिथि एवं स्थान को परिवर्तित करना पड़ा तो इसकी सूचना आपके ''इन्ट्री पास'' में ही दे दी जायेगी। ''इन्ट्री पास'' तैयार होने का बाद निर्धारीत तिथि में कोई फेरबदल नहीं की जायेगी।

शुक्रवार, 21 जून 2013

पर्वतमालाओं की वादियों को मत देखो..केदरनाथ का दर्शन करो..और लौट आओ..नहीं तो महाविनाश तय है

पर्वतमालाओं की वादियों को मत देखो..केदरनाथ का दर्शन करो..और लौट आओ..नहीं तो महाविनाश तय है
Keoejneth(Old)

Pandit Vinod Choubey, 9827198828
  

मित्रों, नमस्कार
अभी बहुत बड़ी दैवीय विभिषिका से हजारों लासों की ढ़ेर बन चुका केदारनाथ में स्वयं प्रभु बाबा भोलेनाथ के अलावा और कोई शेष नहीं बचा, और जो लोग बच गये हैं, उनका कहना है मैने दूसरा जन्म लिया है, अर्थात् इतनी बड़ी त्रासदी का मंजर उनके आँखों में आज भी पानी भर देता है। किन्तु आश्चर्य का विषय तो यह है कि नाथ बचे हुए हैं। यह अपने आप में जरुर चौंकाने वाली बात है, लेकिन चौंकना इसलिए नहीं चाहिए क्योंकि संसार के निर्माण कर्ता स्वयं शम्भु का भला क्या बिगड़ सकता है। किन्तु आज के वास्तु शील्पियों की बढ़ते तादाद और उनका बढ़ता ताम-झाम, लोगों को अपनी ओर सहज ही खिंच लेता है और ये तथाकथित वास्तु विशेषज्ञ  बड़े बड़े दावे भी करने लगते हैं, कि मैं बहुत बड़ा वास्तु विशेषज्ञ हुँ, लेकिन वास्तवीकता तो यह है कि जिस वास्तु संविधान सूत्रों के साथ अपनी विशेषज्ञता श्री श्री आदि शंकराचार्य जी ने इस केदारनाथ बाबा भोलेनाथ की स्थापना कर किये थे। वह आज सभी वास्तु वैज्ञानिकों को सोचने को मजबूर कर दिया है। ज्ञात हो कि काल के गाल में बैठे महाकाल को बतौर जिर्णोद्धार भगवान आदि शंकराचार्य जी ने स्थापित की थी।, और आज वहाँ सबकुछ मिट गया बचा तो केवल नाथ की गर्भ गृह। इसका सारा श्रेय श्री श्री आदिशंकराचार्य जी को देना होगा। और जो मौतें हुईं हैं उनका सारा जिम्मा हम लोगों का है, जो चंद पैसों रुपयों के लालच में वहाँ 50 वर्षों से व्यापार कर रहे थे। साथ ही उन व्यापारियों का प्रोत्साहन हम बड़ी बज़ी खरीदी करके करते थे। देखते ही देखते लगातार धर्मशालाओं की संख्या बढ़ती चली गई और संख्या अनुमनित लगभग 90 पहुँच गईं। लोग बाबा का दर्शन अवश्य करने जाते थे, परन्तु साथ ही हिमालय क वादियों का कुछ देर रुक कर लुत्फ भी उठाते थे, बाद में यहाँ यह कहना लाज़मी होगा कि धिरे-धिरे मंदिर का दर्शन करना तो कम वादियों का दर्शन करना प्रमुख होता जा रहा था। जो आज कई हजार श्राद्धालुओं को अपना जान गंवाना पड़ा। हालाकि शास्त्र सम्मात शिव दर्शन में एक व्िषेष नियम है कि भगवान शिव की आधी प्रदक्षिणा की करनी चाहिए , जिसका सीछा अर्थ है कि बाकी मंदिरों की अपेक्षा शिवमंदिर में कम से कम रुकना चाहिए क्योंकि वे निष्णात पंथी शिव अकेले ही रहना पसंद करते हैं। लेकिन उनके विपरीत केदार नाथ में अधिक से अधिक लोग ऐसे दर्शनार्थी हैं जो वहाँ जाकर दो या तीन दिन रुकना चाहते हैं ताकि पर्वतमालाओं का भरपूर लुत्फ उठाया जा सके।
किन्तु ऐसा करने से निश्चित महाकाल की वक्र निगाहें जमिन्दोज करने को मजबूर कर देती है। या यूँ कहें कि अनावश्यक शिव की समीपता उनके तीसरे नेत्र को खोलने को मजबूर कर देती है।  और उस भयावह स्थिति से निपटना हमारे आपके कुबत की बात नहीं। शिव के प्रति समर्पण की भावना रखिये समिपता की नहीं। यदि समिपता रखना चाहते हैं प्योर धर्मध्वज वाहक नन्दी जैसा और माँ पार्वती तथा उद्योग के प्रतीक गणेश जैसा बनना पड़ेगा, यदि स्कन्द बनना चाहते हो तो निश्चित ही आपको कैसाश से क्रौंच पर्वत की आना होगा। अर्थात हम लोगों को भगवान शिव की समिपता कत्तई उचित नहीं है।
हालाकि जो हुआ वह बहुत गलत हुआ हमारी सभी संवेदनाएं उन धर्मभीरु तीर्थयात्रियों के साथ है। और जिनके परिजन कालकवलित हुए हैं उनको इश्वर शक्ति प्रदान करें कि वे इस दुःख की घड़ी को बर्दाश्त कर पायें।
आईए विकिपिडिया (hi.wikipedia.org/wiki/केदारनाथ_मन्दिर‎) से संलित किया हुआ केदारनाथ जी के बारे में कुछ अंश पढ़ने, व जानने की कोशिश करते हैं- उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसा ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। १८८२ के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये।” केदारनाथ मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले मे है!
यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन हाँ ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

    इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
    पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदारकहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक- '' ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका , भिलाई 9827198828

मंगलवार, 18 जून 2013

शनि का प्रकोप: ग्रहों में न्याय देने वाले देव हैं शनिदेव (न्यायाधीश शनि)

शनि का प्रकोप: ग्रहों में न्याय देने वाले देव हैं शनिदेव (न्यायाधीश शनि)
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 9827198828
मानव के अंत:करण का प्रतीक शनि है. यह मनुष्य की बाह्यï चेतना और अंत: चेतना को मिलाने में सेतु का काम करता है. पुरुषार्थ चतुष्टïम धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति में भी शनि ग्रह की महती भूमिका रहती है. शनि के अतिरिक्त अन्य ग्रह तो दूसरी राशि एïवं ग्रहों के प्रभाव में पड़कर अपना फल देना भूल जाते हैं. लेकिन शनि अपनी मौलिकता को कभी भी नही भूलता है.
शनि वात प्रधान ग्रह है. आयुर्वेद में वात पित्त एवं कफ प्रकृति के अनेक रोगों का वर्णन मिलता है. इसके अतिरिक्त व्यापार, यात्रा, संचार माध्यम, न्यायपालिका, वकील चिकित्सा,चिकित्सालय, शेयर्स, सट्टïा, वायदा, काल्पनिक चिंतन, लेखन, अभिव्यक्ति, राजनीति, प्राचीन शिक्षा, पुरा मह्तव की वस्तुएं, इतिहास, रसायन, उद्योग धंधे वाहन, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय, प्राचीन एवं परंपरागत कला, सेना एवं पुलिस के सामान्य सदस्य एवं सहायक उपकरण शास्त्र, विस्फोटक पदार्थ आदि के अतिरिक्त भी अनेक कार्यक्षेत्र यथा जमीन जायदाद, ठेकेदारी, संन्यासी व नौकरियां  शनि के अधीन रहती है. इसी के साथ मनोरोग, अस्थि रोग, वात रोग, जोड़ों के दर्द, नसों से संबंधी रोग, खून की कमी, खून में लौह तत्व की कमी, दमा, हृदय, कैंसर, क्षयरोग, दंत रोग, गुप्तरोग, ज्वर आदि भी शनि से नियंत्रित होते हैं. आयुर्वेद शास्त्र में शरीर की रचना में अन्न से रस, रस से रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र का निर्माण बताया गया है.
शनि अस्थि का कारक ग्रह है. आयुर्वेद एवं ज्योतिष शास्त्र में शनि के गुणधर्म प्रभाव रोग एवं निदान एवं जैसे ही होते हैं. मनुष्य के शरीर में रोग के होने के कारण, रोग निदान, रोग के लक्षण, औषधि, औषधि के प्रभाव एवं स्वभाव आदि सभी में एकरूपता दिखाई देती है.
आयुर्वेद एवं ज्योतिषशास्त्र में शनि की समान रूप से वर्णित किया गया है. जिन्हें पांच भागों में विभक्त किया गया है.
निष्पति साधम्र्य : -
ज्योतिष शास्त्र में शनि की उत्पत्ति सूर्य पत्नी छाया से मानी गई है. तथा इस अवतार की उत्पत्ति आयुर्वेद के अनुसार आकाश एवं वायु महाभूत से मानी गई है. छाया भी शीत प्रधान एïवं आकाश प्रधान है. अत: दोनों की उत्पत्ति एक ही स्थान से हुई है।
प्रकृति साधम्र्य : -
ज्योतिष शास्त्र में शनि की प्रकृति धूल धूसरित केश, मोटे दांत, कृश, दीर्घ आदि वर्णित है. वहीं आयुर्वेद में वात की प्रकृति बतलाई गई है.अष्टांगहृदय में कहा गया है.
दोषात्मका: स्फुटितघूसकेशगात्रा
स्थान साधम्र्य
ज्योतिष शास्त्र में शनि का स्थान शरीर में कमर, जंघा, पिंडली, कान एवं अस्थि आदि है. चरक संहिता में भी इन्ही स्थानों को वात प्रधान बताया गया है.
व्याधि साधम्र्य : -
आयुर्वेद में वात का स्थान विशेष रूप से अस्थि माना गया है. शनि वात प्रधान रोगों की उत्पत्ति करता है. आयुर्वेद में जिन रोगों का कारण वात को बताया गया है. उन्हें ही ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभाव से होना बताया गया है. शनि के दुष्प्रभाव से केश, लोम, नख, दंत, जोड़ों आदि में रोग उत्पन्न होता है. आयुर्वेद वात विकार से ये स्थितियां उत्पन्न होती है.
प्रशमन एवं निदान साधम्र्य : -
ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए दान आदि बताए गए हैं.
 भाषाश्च तैलं मिलेंन्दुनीलं तिल: कुलत्था महिषी च लोहम।
कृष्णा ध धेनु: प्रवदन्ति नूनं दुघय दानं रविन्दनाय॥
तेलदान, तेलपान, नीलम, लौहधारण आदि उपाय बताए गए हैं. वे ही आयुर्वेद में अष्टïागहृदय में कहे गये हैं. अत: चिकित्सक यदि ज्योतिष शास्त्र का सहयोग लें तो शनि के कारण उत्पन्न होने वाले विकारों को आसानी से पहचान सकते हैं. इस प्रकार शनि से उत्पन्न विकारों की चिकित्सा आसान हो जाएगी.
शनि ग्रह रोग के अतिरिक्त आम व्यवहार में भी बड़ा प्रभावी रहता है. लेकिन इसका डरावना चित्र प्रस्तुत किया जाता है. जबकि यह शुभफल प्रदान करने वाला ग्रह है. शनि की प्रसन्नता तेलदान, तेल की मालश करने से, हरी सब्जियों के सेवन एवं दान से, निर्धन एवं मजदूर लोगों की दुआओँ से होती है. मध्यमा अंगुली को तिल के तेल से भरे लोहे के पात्र में डुबोकर प्रत्येक शनिवार को निम्र शनि मंत्र का 108 जप करें तो शनि के सारे दोष दूर हो जाते हैं तथा मनोकामना पूर्ण हो जाती है. ढैया या साढ़े साती शनि होने पर भी पूर्ण शुभ फल प्राप्त होता है.
शनि मंत्र ऊँ प्रां प्रां स: शनयै नम:।

जल से पूर्ण कलश का दान करें...भीमसेनी एकादशी को..

भीमसेनी एकादशी को जल से पूर्ण कलश का दान करने से 24 एकादशी व्रत का फल प्राप्त होता है।

-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
 18/6/2013
 मित्रों, नमस्कार,
सर्वप्रथम चारधाम की यात्रा पर निकले सभी तीर्थयात्रियों के साथ अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए, भारी बारीश के कारण जिन लोगों की मैत हो गई है उनकी आत्मा को शांति मिले इन्हीं कामनाओं के साथ , इन सभी पूण्यात्माओं को समर्पित यह आलेख आपके सामने रख रहा हुँ, मुझे विश्वास है  कि इस लेख को जितने लोग पढ़ेंगे और इस महा व्रत को करेंगें उस संचित पूण्य का, दसवाँ हिस्सा उन आत्माओं को भी प्राप्त होगा इस दैवीय आपदा में 58 लोग अपनी जान ग गंवा चुके है, तो आईए....चर्चा करते हैं, इस महान पूण्यदायी महा व्रत के महिमा की।

भारतीय संस्कृति में व्रत पर्वों का अत्यधिक महत्त्व दिया गया है, उन्हीं व्रतों में से एक है एकादशी व्रत हालाकि  एकादशी व्रत हर माह में आती है परन्तु ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति हर माह में आने वाली एकादशी का किन्हीं कारणों वशात् नहीं कर पाता उस भक्त को  केवल भीमसेनी व्रत (पाण्डव द्वादशी अथवा निर्जला एकादशी) करने मात्र से पूरे वर्ष के 24 एकादशी व्रत का पूण्यलाभ मिल जाता है। जो काशीस्थ हृषिकेश पंचांग के अनुसार 19 जून 2013 बुधवार को  निर्जला एकादशी का व्रत होना है.कुछ पंचांगों के अनुसार 20 जून को भीमसेनी एकादशी बताई गयी है परन्तु शास्त्र सम्मत सभी संविधान सूत्रों पर 19 जून 2013 को ही यह व्रत करना बेहतर होगा। 20जून 2013 को प्रातःकाल 7 बजकर 28 मिनट के पूर्व स्वाती नक्षत्र में ब्राह्मण को दान कर गो-भोजन कराकर पारण करना उत्तम है..आईए जानते है क्या है इस व्रत की विधि, महिमा और क्यों लोग इसे करते हैं... ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी अथवा भीमसेनी एकादशी कहते हैं...इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जरा सा भी जल ग्रहण नहीं करना चाहिए... एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि कर विप्रों को यथायोग्य दान देने और भोजन कराने के उपरान्त ही स्वयं भोजन करना चाहिए...एक एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है...
पूजा विधि :-
एकादशी के दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें...पश्चात् ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करे... इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह एक कलश में जल भर कर व सफेद वस्त्र उस पर ढक्कर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें...
इस एकादशी का व्रत करके यथा सामर्थ्य अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फलादि का दान करना चाहिए...इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है...इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा...
एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है... भक्ति भाव से कथा श्रवण करते हुए भगवान का कीर्तन करना चाहिए...
इसके अतिरिक्त इसका नाम भीमसेनी एकादशी क्यों पड़ा उसकी कथा आपको बताते है ---

भीमसेनी एकादशी व्रत कथा:
सभी जानते है की भीम को भूख कभी बर्दास्त नहीं होती थी...तो उन्होंने व्यासजी से पुछा की वो क्या करे जिससे वह भी पुण्य का भागी बन सके क्युकी भूख लगने के कारण वो कोई भी पूजा नहीं कर पाते थे...तब वेदव्यासजी कहने लगे: दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे... द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे...फिर नित्यकर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे...राजन्! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए...यह सुनकर भीमसेन बोले: परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिये...राजा युधिष्ठिर, माताकुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि: ‘भीमसेन! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी...भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना...भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ...एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ? मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है...इसलिए महामुने! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ...जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो  जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये...मैं उस का यथोचितरुप से पालन करुँगा...

व्यासजी ने कहा: भीम! ज्येष्ठमास में सूर्य वृषराशि पर हो या मिथुनराशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशीहो , उसका यत्नपूर्वक निर्जलव्रत करो...केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है...एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है...तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे...इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे...वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है...शंख, चक्र और गदाधारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है...’
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्डपाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते...अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्यस्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं...अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न कर के उपवास और श्रीहरि का पूजन करो...स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है...जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है...उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है...मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है....निर्जला एकादशी को विधि पूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है...जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है...इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है....
जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परमपद को प्राप्त होंगे...जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्म हत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं...
कुन्तीनन्दन! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है...पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए...ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं...जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जलाएकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परमधाम में पहुँचा दिया है...निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दरआसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए...जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है...जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है....चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस के श्रवण से भी प्राप्त होता है...पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि: ‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा...'द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए...गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे:
देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
‘संसार सागर से तारने वाले हे देव देवह्रषीकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परमगति की प्राप्ति कराइये।’
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभएकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए...उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए....ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है....तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे...जो इस प्रकार पूर्णरुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है...
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया....तब से यह लोक मे‘पाण्डवद्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई...!
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक-ज्योतिष का सूर्य, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई (छ.ग.) 9827198828

शुक्रवार, 14 जून 2013

श्री कनकधारास्तोत्रम् ..

मित्रों,इस स्तोत्र का भावपूर्वक पाठ करने से साधक को विपुल धनधान्य की प्राप्ति होती है,सभी प्रकार की दीनता,दरिद्रता,दुर्भाग्य,दुख क्लेश,आधिव्याधि आदि विपत्तियां मिट जाती हैं।सहस्रशः सहस्रों,साधकों के द्वारा अनुभूत अत्यन्त चमत्कारी स्तोत्र है।
 आर्थिक परेशानियों से उबरने के लिए....इस स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए.....

श्री कनकधारास्तोत्रम् ..
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् .
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः .. १..

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि .
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः .. २..
.
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दं
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् .
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः .. ३..
..
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति .
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः .. ४..

धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव .
मातुस्समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः .. ५..

प्राप्तं पदं प्रथमतः खलु यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन .
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः .. ६..

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षं
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि .
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः .. ७..

इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते .
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः .. ८..

दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे .
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः .. ९..
 ..
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति .
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै .. १०..
..
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै .
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै .. ११..

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूम्यै .
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै .. १२..
.
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै .
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै .. १३..
.
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै .
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै .. १४..

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै .
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै .. १५..

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि .
त्वद्वन्दनानि दुरितोद्धरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये .. १६..
 ..
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसंपदः .
संतनोति वचनाङ्गमानसैः
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे .. १७..

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे .
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् .. १८..
.
दिग् हस्तिभिः कनककुंभमुखावसृष्ट-
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् .
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् .. १९..

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः .
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः .. २०..
..
देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे .
दारिद्र्यभीतिहृदयं शरणागतं माम्
आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः .. २१..
 ..
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् .
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः .. २२..

.. इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृत
श्री कनकधारास्तोत्रं संपूर्णम् ..

यदि समयाभाव हो तो..नीचे दिये गये इन मंत्रों में से किसी एक मंत्र का 108 बर अथवा 21 या 51 बार पाठ कर लेना चाहिए।।।।
1.ॐ श्रीं ह्वीं दारिद्य विनाषिन्ये
धनधान्य समृद्धि देहि देहि नम:।।

2.ॐ ऎं श्रीं क्लीं सौं: श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।।

3..ॐ ऎं ऎं श्रीं श्रीं ह्वीं ह्वीं पारदेष्वरी सिद्धि ह्वीं ह्वीं श्रीं श्रीं ऎं ऎं।।

4. ॐ ह्वीं ह्वीं श्रीं श्रीं पारद श्री यंत्राय श्रीं श्रीं ह्वीं ह्वीं ॐ।।

5. ॐ श्रीं ह्वीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:।।

6. ॐ श्रीं श्रियै नम:।।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, संपादक '' ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई 9827198828


<MAA LAXMI>


रविवार, 2 जून 2013

कामिनी-दह से गेंद को आजाद करने के लिए भगवान कृष्ण को आना ही पड़ेगा।

कामिनी-दह से गेंद को आजाद करने के लिए भगवान कृष्ण को आना ही पड़ेगा।


यह इण्डिया है भाई, कुछ भी करो मनमर्जी चलेगी पूँजीपतियों की ही...और यदि यह पूँजीपति, उद्योगपति भारत में निवासरत रहते तो शायद..स्तीफा दे दिये होते...लेकिन उन्होंने अपने धर्म का निर्वाह किया है...क्योंकि भगावान कृष्ण के भारतीय पारंपरिक खेल को अब क्रिकेट ने हथिया लिया है..जिसकी बागडोर उलूक वाहन लक्ष्मीपतियों के हाथ में हैं....हालाकि कमलवासिनी लक्ष्मी माँ अथवा  विष्णु पत्नि माँ लक्ष्मी के दत्तक पुत्रों के हाथ में होता तो शायद...यह घिनौना कार्य नहीं होता....और इस मान मर्दन के लिए कामिनी-दह और  भ्रष्टाचार रुपी कालिय नाग के दमन के लिए प्रभु भगवान कृष्ण को आना ही पड़ेगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे